इन पराजयों के बीच अमर सिंह अब मुलायम का साथ छोड़ चुके हैं। कहने को तो वे अभी भी पार्टी में ही हैं, लेकिन कभी भी उनका पार्टी से संबंध खत्म हो सकता है। समाजवादी पार्टी में अमर सिंह के विरोधियों की संख्या बहुत है। उनका कहना है कि अमर सिंह के कारण ही समाजवादी पार्टी कमजोर हुई। उनके कारण पार्टी की छवि बदली और जमीन से जुड़े अनेक नेता पार्टी से बाहर हो गए।
उनका मानना है कि अमर सिंह के पार्टी छोड़ने के बाद फिर सपा मजबूत होगी। इसलिए वे पाह रहे हैं कि अमर सिंह जल्द ही पार्टी भी छोड़ दें अथवा मुलायम सिंह यादव उन्हें पार्टी से ही निकाल दें। दूसरी तरफ कल्याण सिंह का कहना है कि मुलायम सिंह अपनी राजनीति के लिए अमर सिंह पर इतना निर्भर हो गए थे कि उनके बिना अब राजनीति ही नहीं कर सकते हैं।
यह सच है कि मुलायम सिंह की राजनीति के बहुत ही बुरक दौर शुरू हो गए हैं। वे मुस्लिम यादव समीकरण की राजनीति करते रहे हैं, लेकिन मुसलमान उनका साथ छोड़ने लगे हैं। मुसलमान उन्हें छोड़कर कांग्रेस में ही नहीं बल्कि बहुजन समाज पार्टी का रुख भी करने लगे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने कल्याण सिंह को अपने साथ जोड़ा था। उसके कारण मुसलमानों द्वारा सपा को छोड़ने की रफ्तार और तेज हो गई।
पार्टी के साथ मुसलमानों को फिर जोड़ना मुलायम की आत की सबसे बड़ी चुनौती है। इस चुनौती का सामना करने के लिए उन्होंने अपने को तैयार करना शुरू भी कर दिया है। आजम खान को पार्टी में फिर से लाने के लिए उन्होंने कोशिशें फिर तेज कर दी हैं। मुसलमानों के धार्मिक नेताओं के साथ भी उन्होंने बैठक करने का सिलसिला शुरू कर दिया है।
मुयलमानों को पार्टी से जोड़ने का जो सबसे बड़ा पत्ता मुलायम के पास है, वह बाबरी मस्जिद ाके फिर से निर्माण की मांग है। उन्होंने न केवल फिर से मस्जिद के निर्माण की मांग शुरू की दी है, बल्कि मस्जिद के खुद निर्माण की बात भी करने लग गए हैं।
अमर सिंह के हटने के बाद ठाकुरों के भी पार्टी से अलग हो जाने के खतरे हैं। उन्हें पार्टी के साथ जोड़े रखने के लिए मोहन सिंह जैसे ठाकुर नेताओं को पार्टी में महत्वपूर्ण पद देने होंगे।
पार्टी का आधार फिलहाल यादवों तक सिमटा दिखाई दे रहा है। एक जाति के बूते पार्टी नहीं चलाई जा सकती। जाहिर है पिछड़े वर्गों की अन्य जातियों को भी पार्टी से जोड़ना होगा। इसमें सबसे बड़ी समस्या यह है कि पार्टी के सभी महत्वपूर्ण पदों पर मुलायम सिंह यादव के परिवार के सदस्य ही बैठे हुए हैं। पार्टी के विस्तार में सबसे बड़ी समस्या फिलहाल यही है। (संवाद)
भारत्
मुलायम के कठिन दिन शुरू
परिवार पार्टी के विकास में सबसे बड़ी बाधा
प्रदीप कपूर - 2010-01-25 11:49
लखनऊः वैसे समाजवादी पार्टी पिछले कई चुनाव हार चुकी है। विधानसभा चुनाव हारने के बाद उसने लोकसभा में भी पराजय का सामना किया। लोकसभा चुनाव के बाद हुए उपचुनावों में भी मुलायम की पार्टी हारी। फिरोजाबाद की प्रतिष्ठा भरे चुनाव में सपा अध्यक्ष की पुत्रवधू ही चुनाव हार गई। कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश की 36 विधान परिषद की सीटों के लिए चुनाव हुए थे। उनमें मात्र एक ही सपा का उम्मीदवार जीता, जबकि 2004 में उनमें से 24 में सपा उम्मीदवारों की जीत हुई थी।