अखबार में छप रही खबरों के अनुसार तिवारी और दिग्विजय को पुलिस पूछताछ करनें के लिए नोटिस जारी कर सकती है। तिवारी ने तो पहले ही अंटिसिपेटरी जमानत के लिए आवेदन कर डाला है। पुलिस ने उन दो अफसरों को पहले ही गिरफ्तार कर लिया है, जिन पर अनियमितता से पद पर नियुक्ति के आरोप हैं। विधानासभा नियुक्ति फ्राड में जब विधानसभा के दो बर्खास्त अतिरिक्त सचिवों को गिरफ्तार किया गया था, तो उसी समय सरकार का इरादा स्पष्ट हो चुका था।

विधानसभा प्रशासन ने पहले ही इन दो अधिकारियों सत्यनारायण शर्मा और कमलकान्त शर्मा को बर्खास्त कर रखा था। हाई कोर्ट के आदेश पर उन्हें बर्खास्त किया गया था। वे दोनों उस पद पर आसीन होने की योग्यता नहीं रखते थे। उस समय के स्पीकर तिवारी ने उन दोनों के साथ अन्य अनेक लोगों की नियुक्ति की थी। विवेक लखेरा ने उन नियुक्तियों के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।

पिछले 28 फरवरी को विधानसभा के डिपुटी स्पीकर श्यामलाल मैथिल ने उन नियुक्तियों को लेकर दिग्विजय सिंह, श्रीनिवास तिवारी व अन्य 17 लोगों के खिलाफ जहांगीरबाद पुलिस थाने में प्राथिमिकी दर्ज कराई थी।

2004-05 में भाजपा सरकार ने द्विवेदी कमिटी का गठन 1993 से 20013 तक की नियुक्तियों की जांच के लिए की थी। उस दौरान दिग्विजय सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और श्रीनिवास तिवारी विधानसभा के अध्यक्ष। उस कमिटी की रिपोर्ट 2006 में सरकार को पेश कर दी गई थी।

17 कर्मचारियों में विधानसभा के प्रमुख सचिव ए के पयासी भी शामिल थे। वे चीफ म्युनिसपल अधिकारी हुआ करते थे। उन्हें वहां से डेपुटेशन पर विधानसभा में भेज दिया गया। उसके बाद उनका विधानसभा में स्थानांतरण ही कर दिया गया। उसके बाद तो वे विधानसभा के प्रमुख सचिव ही बन गए।

इधर कांग्रेस ने एक बयान जारी कर दिग्विजय सिंह और श्रीनिवास तिवारी के साथ अपने समर्थन का इजहार किया है।

विधानसभा में विपक्ष के नेता सत्यदेव कटारे ने प्रदेश सरकार और भोपाल पुलिस की आलोचना करते हुए उन पर पक्षपात का आरोप लगाया है।

कटारे में मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि राज्य सरकार को राजनैतिक ब्लैक मेल से बाज आना चाहिए और यदि उसे हिम्मत है, तो वे दिग्विजय सिंह और श्रीनिवास त्यागी को गिरफ्तार करके दिखा दे।

उन्होंने कहा कि 1993 से 2003 के बीच हुई नियुक्तियों पर तो पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की है, लेकिन 2004 और उसके बाद की हुई नियुक्तियों के खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया गया है। ऐसा प्रदेश सरकार के निर्देश पर किया गया है। गौरतलब हो कि पिछले दरवाजे से नियुक्तियां 2004 और उसके बाद भी हुई है।

उन्होंने आरोप लगाया कि प्रदेश सरकार दिग्विजय सिंह व अन्य कांग्रेसी नेताओं पर दबाव बना रही है कि वे व्यापम घोटाले पर अपनी आवाज शांत रखें। उन्होंने चेतावनी दी कि पुलिस पक्षपात करने के रवैये से बाज आए, अन्यथा उसके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी।

गौरतलब है कि सरकार ने विधानसभा की नियुक्ति के इस मामलों को उस समय उठाया है, जब दिग्विजय सिंह व्यापम घोटाले में शामिल होने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पर सीधा आरोप लगा रहे हैं और अपने आरोपों में पक्ष में सबूत होने का दावा भी कर रहे हैं। (संवाद)