यह बहुत ही चिंता की बात है कि आजादी के 7 दशकों के बाद भ नेताजी की मौत से संबंधित रहस्य पर पर्दा पड़ा हुआ है। यदि बोस जिंदा होते, तो उनकी उम्र आज 117 साल होती। इसलिए अब समय आ गया है कि सरकार उनकी मौत के बारे में जो रहस्य बना हुआ है, उस पर से पर्दा हटा दे।
नेताजी की मौत को लेकर अनेक तरह की बातें की जाती रही हैं और अनेक जांच आयोग उसके बारे में पता लगाने के लिए बनाए गए हैं। वे कहां, कब और किस हालत में मरे, इस बात को लेकर कोई भी निश्चित तौर पर कुछ कह नहीं सकता। एक थ्योरी के अनुसार नेताजी की मौत 18 अगस्त, 1945 के दिन ताइवान में एक हवाई दुर्घटना में हुई। दूसरी थ्योरी के अनुसार उनकी मौत साइबेरिया में सोवियत संघ की कैद में हुई। एक तीसरी थ्योरी भी है, जिसके अनुसार उत्तर प्रदेश में वे गुमनामी बाबा के रूप में रह रहे थे और उनकी मौत 1985 में हुई।
नेताजी का परिवार और 2006 की मुखर्जी आयोग यह नहीं मानते हैं कि उनकी मौत हवाई दुर्घटना में हुई। केन्द्र सरकार किसी को नेताजी से संबंधित गोपनीय सूचनाएं उपलब्ध नहीं कराती है। न्यायमूर्ति मुखर्जी को भी उनसे संबंधित दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए गए थे।
प्रधानमंत्री कार्यालय में 41 गोपनीय फादलें हैं, जिनमें से 20 नेताजी से संबंधित हैं। गृहमंत्रालय के पास उस तरह की एक लाख फाइलें हैं। विदेश मंत्रालय के पास 29 फाइलें हैं। गृह मंत्रालय की फाइलों के 10 हजार पन्नों को सार्वजनिक करते हुए राष्ट्रीय अभिलेखागार में रखा गया है।
सबसे आश्चर्य की बात है कि भारतीय जनता पार्टी चुनाव के पहले नेताजी से संबंधित फाइलों को सार्वजनिक करने की बात कर रही थी। खुद नरेन्द्र मोदी चुनाव अभियान के दौरान लोगों से वायदा कर रहे थे कि सत्ता में आने के बाद वे नेताजी से संबंधित सारी गोपनीय सूचनाओं को सार्वजनिक कर देंगे, लेकिन सत्ता में आने के बा उनके सुर बदल गए थे। सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार कहने लगी थी कि सूचनाओं के सार्वजनिक होने पर कुछ मित्र देशों के साथ भारत के रिश्ते खराब हो सकते हैं। यूपीए सरकार का भी यही कहना था।
नेताजी से संबंधित विवाद ने उस समय नया मोड़ ले लिया जब यह बात सामने आई कि नेहरू सरकार ने नेताजी के परिवार के कुछ सदस्यों की जासूसी करवाई थी और वह जासूसी 1968 तक चलती रही। यह जानकारी पिछली यूपीए सरकार द्वारा राष्ट्रीय अभिलेखागार में भेजकर की गई 10 हजार पेजों के बंडल में मिली। नेताजी पर शोध कर रहे एक शोधार्थी ने उसे सार्वजनिक किया। अब उस पर भारी बवाल मच रहा है।
इस बवाल को शांत करने के लिए जरूरी है कि नेताजी से संबंधित सभी गोपनीय दस्तावेज को सरकार सार्वजनिक करे। विदेशी मित्रों से संबंध खराब होने का हवाला देकर उन सूचनाओं को गोपनीय बनाया रखना कतई उचित नहीं है। किसिंजर के सार्वजनिा हुए दस्तावेजों में तब के अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन को इंदिरा गांधी को डायन और न छापे जाने वाले एक शब्द का इस्तेमाल करते हुए दिखाया गया है। अमेरिका ने उस पत्र को सार्वजनिक कर दिया और उसके बाद भी भारत और अमेरिका के संबंध खराब नहीं हुए, तो फिर नेताजी से संबंधित कुछ दस्तावेज सार्वजनिक करने से किसी देश से भारत का संबंध कैसे खराब हो सकता है?
सभी देशों मंे गोपनीय दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की व्यवस्था होती है। किसी देश में 25 साल के बाद, तो किसी में 50 साल बाद और किसी में 75 साल के बाद गोपनीय दस्तावेज सार्वजनिक किए जा सकते हैं। लेकिन भारत में इस तरह की कोई व्यवस्था ही नहीं है। अब भारत में तो सूचना के अधिकार का कानून बन गया है। उसके बावजूद अंग्रेजों के जमाने में बना सरकारी गोपनीयता कानून का हवाला देकर दस्तावेजों को गोपनीय बनाए रखना अनुचित की कहा जाएगा। (संवाद)
भारत
नेताजी के परिवार की जासूसी का मामला
सुभाषचन्द्र बोस की फाइलें सार्वजनिक हों
कल्याणी शंकर - 2015-04-17 11:41
क्या मोदी सरकार नेताजी सुभाषचन्द्र बोस से सबंधित गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करेगी और उनको लेकर आजकल चल रही बहस को समाप्त कर पाएगी? यह एक अच्छी खबर है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनके परिवार के लोगों को आश्वस्त किया है कि वे इस मसले में निजी दिलचस्पी दिखाते हुए इस पर विचार करेंगे कि उन गोपनीय दस्तावेजों को सार्वजनिक किया जाय या नहीं। जर्मनी में प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए इस आश्वासन के बाद यह उम्मीद जगी है कि नेताजी से संबधित रहस्यों का पर्दाफाश हो जाएगा।