कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की नजर में भारत पूरी तरह से दो भागों में बंटा हुआ है। एक भारत गांवों का भारत है और दूसरा भारत शहरों का भारत है। शहरों का भारत समृद्ध है, जबकि गांवों वाला भारत उजड़ा हुआ है और उसके उजड़ने के लिए शहरी भारत जिम्मेदार है। यह राहुल गांधी की सोच है। उसके अनुसार गांवों की दुर्दशा के लिए शहरी उद्योगपति और रियल इस्टेट एजेंट जिम्मेदार हैं।

राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस पार्टी का उद्देश्य किसानों के हितों की रक्षा करना है, भले इसके लिए वे किसानों को किसान ही बनाए रखने का काम करें। इसके लिए राहुल चाहते हैं कि देश के औद्योगिकरण को बढ़ावा ही नहीं मिले।

जोतों का तेजी से विभाजन हो रहा है, क्योंकि लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है और पीढ़ी दर पीढ़ी अधिकांश किसान परिवार खेती पर ही निर्भर हैं। इस समस्या के हल के लिए यह जरूरी है कि किसान खेती को छोड़कर उद्योगों की ओर बढ़ें, लेकिन राहुल गांधी चाहते हैं कि वे खेती में ही बने रहें। उन्हें इस बात की परवाह नहीं है कि खेती उतनी बड़ी आबादी का पोषण करने में विफल हो रही है।

हमारे देश में 1894 का भूमि अधिग्रहण कानून था, जो अंग्रेजों ने बनाया था। वह कानून किसानों के खिलाफ पूर्वाग्रह रखता था। उसे मनमोहन सिंह सरकार ने 2013 में बदल दिया और एक ऐसा कानून बना दिया, जिसके कारण उद्योगों द्वारा जमीन पाने का काम अत्यंत ही कठिन हो गया।

चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस ने वह कानून बनाया था। कांग्रेस ने अनेक अन्य लोकप्रियतावादी कदम भी उठाए थे। लेकिन चुनाव में उसे ने तो भूमि अधिग्रहण कानून ने बचाया और न ही अन्य लोकप्रियतावादी कानूनों ने। वह लोकसभा चुनाव में हारी और उसकी हार भी ऐसी थी, जिसकी कल्पना उसके विरोधियों तक ने नहीं की होगी।

इसी तरह कांग्रेस का प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण कानून का विरोध कांग्रेस के लिए हानिकारक हो सकता है, क्योंकि लोगों के पास संदेश यही जाएगी कि कांग्रेस नरेन्द्र मोदी की मेक इन इंडिया योजना को परास्त करने के लिए यह सब कर रही है।

इसमें कोई शक नहीं कि यदि राहुल गांधी अपने आर्थिक सुधार विरोधी अभियान में सफल हुए, तो फिर सरकार विकास के लिए जमीन का अधिग्रहण करने में सफल नहीं होगी। उसका मेक इन इंडिया अभियान जोर नहीं पकडे़गा, क्योंकि औद्योगिक इकाइयों के लिए जमीन मिलना बहुत ही कठिन बना रहेगा। इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास का काम भी लगभग असंभव हो जाएगा। इसके कारण विकास की दर तेज नहीं हो पाएगी।

सबसे विचित्र बात यह है कि ऐसा पहली बार हो रहा है कि कांग्रेस अपने आपको एक दकियानूसी पुरातनपंथी पार्टी के रूप में पेश कर रही है। वह भारत को बैलगाड़ी युग में वापस ले जाना चाहती है। जवाहरलाल नेहरू भी औद्योगिकरण के पक्ष में थे और बड़े बड़े बांधों के निर्माण के पक्ष में बात करते थे। उनका नाती राजीव गांधी भी अपने प्रधानमंत्रित्व काल में भारत को 21वीं सदी में ले जाने की बातें किया करते थे।

लेकिन राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी के पास यह सब समझने का वक्त ही नहीं है। (संवाद)