भाजपा का डर सही साबित हो रहा है। अरविंद केजरीवाल की सरकार ने तरह तरह की चुनौतियां पेश करनी शुरू कर दी है। सबसे पहले तो प्रदेश सरकार ने दिल्ली नगर निगम को एक सीमा से आगे धनराशि उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया और कह दिया कि अपने खर्च को पूरा करने के लिए निगम केन्द्र सरकार से पैसा मांगे या खुद उसका इंतजाम करे। गौरतलब है कि दिल्ली नगर निगम पर इस समय भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है और भारी भ्रष्टाचार के कारण यह निगम अकर्मण्यता का अखाड़ा बन गया है।

केजरीवाल ने जल आपूर्ति के मसले पर पर भी कुछ ऐसा आदेश जारी कर दिया, जो मोदी सरकार में शामिल लोगों को नागवार गुजरा होगा। गर्मियों के महीनों में दिल्ली में पानी की आपूर्ति कम हो जाया करती है। कमी को ध्यान में रखते हुए अधिकांश इलाको में पानी कम भेजा जाता है। दूसरी ओर अतिमहत्वपूर्ण इलाकों में पानी की आपूर्ति पहले की तरह जारी रहती है। केजरीवाल ने सभी इलाकों मे पानी की समान रूप से कटौती करने का आदेश दे दिया। गौरतलब है कि पानी आपूर्ति करने वाला दिल्ली जल बोर्ड दिल्ली सरकार के तहत है और यह केन्द्रीय कर्मचारियों और अधिकारियों पर राष्ट्रीय नेताओ ंके घरों में भी पानी की आपूर्ति करता है।

दिल्ली पुलिस को लेकर भी केजरीवाल ने केन्द्र सरकार से अनेक बार टकराव मोल लिया है। एक घटना जंतर मंतर पर हुई एक आत्महत्या का है, जिसे कुछ लोग नाटकबाजी के बीच हुआ एक हादसा भी बता रहे हैं। इस तरह की घटना की जांच दिल्ली पुलिस करती है, लेकिन केजरीवाल ने उसे घटना की मजिस्टेªट से जांच कराने का आदेश जारी कर दिया। उसके बाद बाद तो डीएम और दिल्ली पुलिस कमिश्नर आपस में उलझ गए। दोनों अपने अपने तरीके से अभी भी जांच कर रहे हैं।

टकराव का सबसे ताजा मामला मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के बीच दिखाई पड़ रहा है। दिल्ली एक केन्द्रशासित प्रदेश है। विधानसभा के साथ साथ इसकी इपनी एक प्रदेश सरकार भी है, लेकिन सरकार के अधिकार सीमित हैं। दिल्ली पुलिस तो इसके हाथ में है ही नहीं और इसके पास जो अधिकार हैं, उसके इस्तेमाल पर भी उपराज्यपाल का ब्रेक लग सकता है। जिस कानून के तहत दिल्ली को विधानसभा मिली है, उसमें उपराज्यपाल को अन्य राज्यों के राज्यपालों की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही अधिकार मिले हुए हैं, जबकि अरविंद केजरीवाल अपने आपको अन्य प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों के समकक्ष ही रखकर देख रहे हैं और वे चाहते हैं कि दिल्ली के उपराज्यपाल की भूमिका वही रहे, जो अन्य प्रदेशों के राज्यपालों की होती है।

अबतक मंत्रियों के अनेक सरकारी फाइलों को राज्यपाल के कार्यालय से गुजरना पड़ता था। लेकिन अरविंद केजरीवाल ने आदेश जारी कर कहा है कि अब फाइलों को उपराज्यपाल के कार्यालय में भेजने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अन्य प्रदेशों की सरकारें भी ऐसा नहीं करती।

पर उपराज्यपाल नजीब जंग को यह पसंद नहीं आया और उन्होंने आदेश जारी कर दिए हैं कि सारी फाइलें पहले की तरह ही उनके कार्यालय से होकर गुजरनी चाहिए।

उपराज्यपाल केन्द्रीय गृहमंत्री को रिपोर्ट करते हैं। जाहिर है वे केन्द्र सरकार के नुमाइ्रदे हैं, जबकि अरविंद केजरीवाल दिल्ली की जनता के चुने हुए मुख्यमंत्री। उपराज्यपाल से होने वाले टकराव को अरविंद केजरीवाल केन्द्र सरकार से होने वाले टकराव के रूप में ही देखेंगे और वे चाहेंगे कि लोग भी यही समझें।

आम आदमी पार्टी के आंतरिक विवाद से अरविंद केजरीवाल उबर चुके हैं। उनके विरोधी पार्टी से बाहर निकाले जा चुके हैं और जो नहीं निकाले गए हैं, वे खुद बाहर जा रहे हैं। उसके बाद अब अरविंद केजरीवाल अपने तरीके से दिल्ली के प्रशासन को चलाते हुए किए गए वायदों को पूरा करने में लगे हुए हैं। इस बीच केन्द्र सरकार ने उनका टकराव निश्चित है और वह शुरू भी हो गया है। (संवाद)