किसानों ने सबसे ज्यादा आत्महत्याएं 2004-05 में की। उस साल कुल 18 हजार किसानों ने आत्महत्याएं की थीं। गौरतलब है कि उस समय देश में सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली यूपीए की मनमोहन सरकार थी। पिछले 20 साल के दौरान कांग्रेस ने 10 सालों तक केन्द्र में शासन किया है। उस दौरान कम से कम 1 लाख 60 हजार किसानों ने आत्महत्याएं की। तो आखिर क्या कारण है कि राहुल गांधी अब एकाएक किसानों की आत्महत्याओं को लेकर चिंतित हो गए हैं और इसे देश का एक बहुत बड़ा राजनैतिक मसला बनाने पर तुले हुए हैं। क्या वे अल्पशिक्षित समुदाय की सहानुभूति पाने के लिए तो ऐसा नहीं कर रहे हैं? कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूपीए जब 10 सालों तक शासन में था, तो राहुल ने उस समय इस मसले पर ध्यान क्यों नहीं दिया था।

राजनीति को दूर रखते हुए भी किसी भी देश में जब इतनी भारी संख्या में किसान आत्महत्या कर रहे हों, तो इसके बारे में चिंता की जानी चाहिए। और आत्महत्याएं आर्थिक कारणों से हो रही हों, तब तो और भी चिंतित होने की बात है। किसानों की आत्महत्याएं मानसून के विफल होने के कारण फसले के नुकसान का नतीजा हो सकती है। जीएम फसलों से प्रतिस्पर्धा मंे टिकने की इसकी विफलता के कारण भी यह हो सकती है। फसलों के उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण भी किसान आत्महत्या कर रहे होंगे। बिचैलिए के शोषण के शिकार होकर भी वे यह कदम उठाने के लिए बाध्य हो रहे होंगे। कर्ज के बोझ से दबकर भी आत्महत्याएं हो रही होंगी। सरकार द्वारा उन्हें नीतिगत समर्थन नहीं मिलना भी उनकी इस समस्या का एक कारण हो सकता है। आखिरकार, उनकी आत्महत्याओं के लिए कौन सा कारण कितना जिम्मेदार है? इससे संबंधित कोई आंकड़ा हमारे पास नहीं है। केन्द्र और राज्य सरकारें शायद ही कभी किसानो की समस्याओं पर ध्यान दे पाती हैं। चुनाव का समय आता है, उनकी सुध ली जाती है। कभी उनके उत्पादो का समर्थन मूल्य बढ़ा दिया जाता है, तो कभी कर्ज माफ कर दिए जाते हैं। लेकिन सरकार की इन नीतियो का सबसे ज्यादा फायदा अमीर किसान ही उठाते हैं। छोटे और मंझोल किसानो को फिर भी ज्यादा फायदा नहीं मिल पाता।

खेत और खेतिहर किसानों को राजनीति का हिस्सा तो बनाया जा रहा है, लेकिन उनकी राजनीति करने वाले नेता इस बात का ध्यान नहीं रख रहे हैं कि किसानो के पढ़े लिखे बच्चे अब शहर जा रहे हैं अथवा जाना चाह रहे हैं, जहां वे अपने लिए बेहतर भविष्य के सपने संजोते हैं। भारत में जो हो रहा है, वह कोई नई बात नहीं है। विकास के साथ सभी देशों में ऐसा ही होता है। सभी देश पहले कृषि प्रधान देश ही होते हैं। विकास के साथ साथ कृषि का योगदान घटता जाता है। उसकी जगह उद्योग लेने लगते हैं।

भारत सरकार की मेक इन इंडिया कार्यक्रम इसी की दिशा में उठाया गया कदम है। खेती पर श्रम का जरूरत से ज्यादा बोझ पड़ा हुआ है, जिसके कारण खेती नुकसान का धंधा बन कर रह गई है। वहां से लोगों को हटाकर उद्योगों में लगाने की जरूरत है और उसके लिए मेक इन इंडिया एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है। पर इसकी सफलता के लिए मजबूत इन्फ्रास्ट्रक्चर चाहिए और उद्योग स्थापित करने के लिए जमीन भी चाहिए। और इसके लिए सही भूमि अधिग्रहण कानून भी चाहिए। इस तरह के कानून का विरोध कर राहुल किसानों का भला नहीं कर रहे हैं, बल्कि उनका नुकसान पहुंचा रहे हैं। (संवाद)