मोदी सरकार के पहले साल में शिवराज सिंह चौहान ने न केवल अपनी पकड़ पार्टी पर बनाए रखी है, बल्कि उन्होंने अपनी ताकत और भी बढ़ा ली। उन्होने प्रदेश में अपनी पसंद के व्यक्ति को पार्टी अध्यक्ष बनाने में सफलता हासिल की। इस तरह उन्होंने प्रदेश में पार्टी के निर्विवाद नेता के रूप में अपनी स्थिति और मजबूत कर ली है। उनके द्वारा चुने गए प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार चैहान और उनके बीच जबर्दस्त तालमेल बना हुआ है।

जब नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने, तो अनेक लोग अटकलबाजी कर रहे थे कि मोदी उन्हें अस्थिर बना सकते हैं, क्योंकि आडवाणी ने नरेन्द्र मोदी के सामने शिवराज सिंह चैहान को वैकल्पिक प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश कर दिया था। लेकिन वैसा करने की जगह मोदी ने तो उनकी तारीफों के पुल बांधने शुरू कर दिए। मोदी ही ने नहीं, बल्कि अमित शाह ने भी चौहान के नेतृत्व की कई बार तारीफ की है।

ळालांकि व्यापम घोटाले के कारण प्रदेश को लगातार कुख्याती प्राप्त हो रही है, लेकिन सच्चाई जानने के लिए पार्टी के उच्च कमान ने कभी भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। खुद चौहान पर भी भ्रष्टाचार में शामिल होने के आरोप लगे हैं, लेकिन उसके बावजूद उन्हें केन्द्रीय नेतृत्व का विश्वास हासिल है।

मोदी सरकार के कार्यकाल का यह सकारात्मक पक्ष है, जहां तक मध्यप्रदेश का सवाल है। लेकिन नकारात्मक पहलू भी है। और उसका संबंध समाज कल्याण के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों में की गई भारी कटौती से है। इसके कारण सरकार द्वारा चलाए जा रहे अनेक कार्यक्रम प्रभावित हुए हैं।

विशेषज्ञों द्वारा किए गए विश्लेषण के अनुसार केन्द्र सरकार द्वारा कल्याण कार्यक्रमों में की गई कटौती के कारण 89 योजनाएं प्रभावित हुई हैं। अनेक ऐसी योजनाएं थीं, जिनमें केन्द्र सरकार 100 फीसदी सहायता देती थी। अनेक में सहायता की राशि में 50 फीसदी की कटौती कर दी गई है। ये योजनाएं हैं खाद्य सुरक्षा मिशन, हाॅर्टिकल्चर मिशन, सस्टेनेबल कृषि, राष्ट्रीय कृषि मिशन, ग्रामीण पेय जल, शहरी पेय जल, स्वास्थ्य क्षेत्र, शहरी आवास, प्राथमिक शिक्षा, माध्यमिक शिक्षा, उच्च शिक्षा, व्यवसायिक शिक्षा, इन्दिरा आवास, ग्रामीण रोजगार, सिंचाई प्रबंधन, औद्योगिक विकास और पर्यटन विकास।

इसके अलावा कुछ योजनाओं को तो समाप्त ही कर दिया गया है। उनमें पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष भी शामिल है। सबसे ज्यादा प्रभावित योजना है जवाहरलाल नेहरू नेशनल अरबन मिशन। एक अनुमान के अनुसार कटौती की राशि करीब 11 हजार करोड़ की है। पिछले साल इन योजनाओं के तहत केन्द्र सरकार ने 24 हजार करोड़ रूपये की अनुदान राशि जारी की थी। अब यह घटकर 13 हजार करोड़ की हो गई है। कटौती के कारण विकास की अनेक योजनाएं प्रभावित हुई हैं और अनेक चल रही योजनाओं पर भी ब्रेक लग रहा है।

अनेक योजनाएं ऐसी हैं, जिनपर केन्द्रीय सहायता के अभाव में अमल ही नहीं किया जा सकता है। जाहिर है, जनकल्याण के लिए चल रही अनेक योजनाओं को बंद करना पड़ रहा है। (संवाद)