आखिर इस बदलाव के कारण क्या हैं? नरेन्द्र मोदी से मिलने वाली ममता बनर्जी सबसे अंतिम नेता थीं। उनके प्रधानमंत्री बनने के 10 महीनों के बाद ही वे उनसे मिलीं। दोनों एक दूसरे को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे। दोनों व्यक्तिवादी नेता हैं। दोनों एक दूसरे के खिलाफ दिल खोलकर बोला करते थे। ममता बनर्जी मोदी को हिटलर और हत्यारा कहा करती थीं। नरेन्द्र मोदी ममता के खिलाफ बोलते हुए शारदा घोटाले की चर्चा कर दिया करते थे। पश्चिम बंगाल मे घुसपैठ को बढ़ावा देने के लिए भी वे ममता बनर्जी को जिम्मेदार बताया करते थे।
लेकिन राजनैतिक विवशताओं ने दोनों को एक दूसरे के साथ संबंध ठीक करने के लिए बाध्य कर दिया। मोदी ने ममता से संबंध ठीक करने के लिए हद को तोड़ दिया और ममता बनर्जी उनसे संबंध ठीक करने के लिए उनके साथ बांग्लादेश जाने को तैयार हो गईं। ममता की उपस्थिति में ही भारत और बांग्लादेश के बीच भूमि सीमा समझौते पर दस्तखत किया गया। बांग्लादेश के नेता यह विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि ममता बनर्जी प्रधानमंत्री की टीम में उनके देश में आएगी, क्यांेकि उन्होंने 2011 में तब के प्रधानमत्री मनमोहन के साथ बांग्लादेश की यात्रा करने से इनकार कर दिया था।
यह स्पष्ट है कि संबंध ठीक करने के लिए दोनों पक्षों ने बहुत कठिन मेहनत की है। उसके बाद ही ममता बनर्जी पिछले मार्च महीने मे दिल्ली जाकर नरेन्द्र मोदी से मिलीं और उसके बाद प्रधानमंत्री पश्चिम बंगाल गए। मई महीने में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहली औपचारिक यात्रा हुई। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, वित्त मंत्री अरुण जेटली और कुछ अन्य नेताओं ने इस साल की शुरुआत से ही माहौल ठीक करने की कोशिश शुरू कर दी थी। इसके कारण ही ममता बनर्जी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बांग्लादेश की यात्रा पर जाने को तैयार हुई।
ममता बनर्जी और नरेन्द्र मोदी दोनों इस बात को समझ गए हैं कि टकराव करते रहने से बेहतर दोनों के बीच सहयोग करना होगा। ममता बनर्जी की उपस्थिति मे उन्होंने भूमि सीमा समझौते पर दस्तखत करते हुए कहा कि उन्हें पूरी उम्मीद है कि राज्य सरकारों के सहयोग से वे तीस्ता तथा फेनी नदी समझौते को भी संभव बना पाएंगे। मोदी नवीन पटनायक और जयललिता के साथ भी संबंध बेहतर करने की कोशिशों में लग गए हैं।
नरेन्द्र मोदी इन तीनों क्षेत्रीय नेताओं के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना चाहते हैं, ताकि ये यूपीए के खेमे में नहीं जाएं। यदि उनकी तीनों पार्टियां फिर एनडीए में वापस आ जाएं, तो इससे मोदी की ताकत बढ़ेगी ही। इसके अलाव मोदी का जादू अब उतार पर है। इस साल के प्रारंभ में दिल्ली विधानसभा चुनाव मे आम आदमी पार्टी की जबर्दस्त जीत ने मोदी को हिला कर रख दिया है। नगर निकायों के चुनाव में पश्चिम बंगाल में भी भारतीय जनता पार्टी पस्त हो गई। वहां बाजी ममता बनर्जी के हाथों में रही। इसके अलावा राज्य सभा में एनडीए के पास बहुमत नहीं है और नरेन्द्र मोदी आगामी तीन सालों तक इन तीनों पार्टियों की सहायता से वहां अपनी सरकार की स्थिति बेहतर करना चाहते हैं। भाजपा तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन के विकल्प को भी खुला रखना चाहती है। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि मोदी ने इस बात को महसूस किया है कि पश्चिम बंगाल में उनकी अपनी भाजपा से बेहतर विकल्प उनके लिए ममता बनर्जी ही हैं।
जहां तक ममता की बात है, तो उनकी अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा भी है। लोकसभा चुनाव के दौरान मुस्लिम वोटों के लिए उन्होंने नरेन्द्र मोदी के साथ टकराव की राजनीति अपनाई। इसका उनको फायदा भी हुआ। उन्हें यह भी लग रहा था कि भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा और तब उनका महत्व देश की राजनीति में बढ़ जाएगा। पर भाजपा पूर्ण बहुमत में आ गई और अपने प्रदेश से बहुत सारी सीटें जीतकर भी ममता बनर्जी लोकसभा चुनाव के बाद कोई भूमिका सरकार गठन में निभा नहीं सकी। लेकिन अब उन्हें अगली विधानसभा के आमचुनाव में जीत हासिल करने के लिए केन्द्र से वित्तीय सहायता की जरूरत है। गांवों की बांग्लादेश से अदलाबदल के लिए मोदी की केन्द्र सरकार ने पश्चिम बंगाल को 3000 करोड़ रुपये की राशि सहायता भी की। ममता की सरकार को केन्द्र से और वित्तीय सहायता चाहिए और इसे सुनिश्चित करने के लिए मोदी के साथ उनका बेहतर संबंध बने रहना जरूरी है। (संवाद)
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राष्ट्रीय राजनीति में एक बड़ी भूमिका की तलाश में ममता
मोदी के साथ उसका खट्टा मीठा रिश्ता चलता रहेगा
कल्याणी शंकर - 2015-06-13 05:10
प्रायः कहा जाता है कि राजनीति में कोई स्थाई दोस्त या स्थाई दुश्मन नहीं होता। राजनेताओं ने इसे बार बार साबित किया है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बांग्लादेश में जाकर इसे एक बार फिर साबित किया। यह सबको पता था कि कुछ दिन पहले तक दोनों के संबंध बहुत ही खराब थे।