अगले दिन सुबह ही मुझे पता चला कि चैधरी चरण सिंह कितने सही थे। मेरे प्रधान संपादक ने मुझे बताया कि देश में आपातकाल लगाया जा चुका है और विपक्षी नेताओे की गिरफ्तारियां हो रही हैं। मुझे विपक्ष के नेताओं के बारे में खबर लाने को कहा गया। मैं सबसे पहले यूपी निवास चैधरी साहब से मिलने पहुंचा। वहां मुझे उनके अंगरक्षक ने बताया कि सुबह पुलिस चैधरी साहब को अपने साथ ले गई है। उसके बाद मैं वहां से युवा तुर्क चन्द्रशेखर के साउथ एवेन्यू स्थित आवास पर गया। मुझे पता चला कि उन्हें भी पुलिस अपने साथ ले गई।
एजेंसी ने आपातकाल लागू किए जाने और विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी की खबरें चलाईं। शाम को छपने वाले अखबारो मे ंवह खबर प्रमुखता के साथ छपी। उसके बाद सेंसर लगाया गया। प्रेस सूचना केन्द्र के वे अधिकारी, जो हमें प्रेस विज्ञप्तियां छापने के लिए दिया करते थे, अखबार में दफ्तरों में काबिज हो गए और समाचारों को किल करने लगे। उसके बाद तो पत्रकारों के पास रिपोर्ट लिखने के लिए कुछ था ही नहीं।
आपातकाल के समाप्त होने की खबर भी सही रास्ते से नहीं आई। एक सुरक्षा अधिकारी ने धीरे से मेरे कान में कहा कि आपातकाल हटाया जाने वाला है और चुनाव करवाए जाने वाले हैं। मैंने उससे पूछा कि उसे कैसे पता, तो उसने बताया कि मंत्री लोगों को उन्होंने इस तरह की बातें कहते सुनी हैं।
छापने के लिए वह एक अच्छी खबर थी, लेकिन प्रेस पर तो संेसरशिप लगी हुई थी। मैंने अपने प्रधान संपादक से बात की। उन्होंने कहा कि आपातकाल का हटना और चुनाव होना असंभव है। लेकिन बहुत जल्द ही हम सबको पता चल गया कि सुरक्षा अधिकारी ने जो कहा था, वह सही था।
प्रेस संेसर लगाने के बाद देश की चार समाचार एजेंसियों को मिलाकर एक कर दिया गया। ये चार एजेंसियां थीं- पीटीआई, यूएनआई, समाचार भारती और हिन्दुस्तान समाचार। चारों को एक करके उसका नाम रखा गया समाचार। एजेंसी के दफ्तर में सरकार के आदमी होते थे। बहुत जल्द ही एजेंसी का महाप्रबंधक एक सरकारी आदमी को बना दिया गया। एजेंसी का कार्यकारी निदेशक भी एक सरकार के आदमी ही बन बैठे। संवेदनशील खबरों को चलाने के पहले प्रधानमंत्री कार्यालय से अनुमति ली जाती थी। एक बार तो कांग्रेस के गौहाटी अधिवेशन में इन्दिरा गांधी के दिए गए भाषण को जारी करने पर भी अधिकारी रोक लगाने लगे और कहने लगे कि बिना इस खबर को जारी करने की अनुमति मिले, इसे कैसे जारी किया जा सकता है। तो उनसे कहा गया कि प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी से इसके बारे में पूछ लें, तो फिर वह अधिकारी चुप हुआ और इन्दिरा गांधी के भाषण की खबर को जारी किया गया।
समाचार के स्टाफ पर लगातार दबाव बना रहता था। एक बार सरकार का एक अधिकारी आकर कहने लगा कि हरियाणा के एक जिला संवाददाता को बर्खास्त कर दिया जाय, क्योंकि उसने रक्षा मंत्री वंशीलाल की खबर को गलत छापा है। जांच करने पर पता चला कि उसने वहीं छापा था, जो वंशीलाल ने कहा था, लेकिन उसके कारण वंशीलाल की किरकिरी हो रही थी, इसलिए उस संवाददाता को बलि का बकरा बनाया जा रहा था। उस संवाददाता को बर्खास्त करने की मांग अस्वीकार कर दी गई।
आपातकाल समाप्त होने के बाद चारों एजेंसियांे को फिर से अलग अलग कर दिया गया और फिर पीटीआई एक स्वतंत्र एजेंसी के रूप में अस्तित्व में आ गई। (संवाद)
भारत
आपातकाल में कैसा था प्रेस पर पहरा
हरिहर स्वरूप - 2015-06-29 15:08 UTC
आज जब आपातकाल पर चर्चा चल रही है और पत्रकार बता रहे हैं कि उन्होंने उसका सामना कैसे किया और क्या देखा, तो मैं भी अपनी बात कहने से अपने और को रोक नहीं पा रहा हूं। उस समय मैं पीटीआई में संवाददाता था। जिस रोज आपातकाल लागू किया गया, उसके पहले वाली रात मैं चाणक्यपुरी स्थिति उत्तर प्रदेश निवास में चैधरी चरण सिंह के कमरे में बैठा हुआ था। कुछ समय पहले दिल्ली के रामलीला मैदान में एक बहुत बड़ी सभा हुई थी। उस सभा से निकले संदेश को इन्दिरा गांधी कैसे लेती हैं और उससे निकली चुनौती का सामना कैसे करती हैं, इसी पर बातचीत चल रही थी। अपने ग्रामीण अंदाज में चैधरी साहब ने तक कहा था कि बिल्ली जब चारों तरफ से घिर जाती है, तो वह अपनी पूरी ताकत लगाकर अपने विरोधियों पर हमला करती है और वह हमला बेहद ही खतरनाक होता है।