दिल्ली की हार की तरह कंपकंपी पैदा करते हुए मोदी सरकार की दो महिला मंत्रियों और उनकी पार्टी के तीन मुख्यमंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले सामने आए और मोदी सरकार के एक साल पूरा होने का जश्न परवान नहीं चढ़ पाया। उसके बाद तो नरेन्द्र मोदी ने भ्रष्टाचार के मसले पर अपने मुह पर लगभग ताला लगा रखा है और भाजपा के मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों के भ्रष्टाचार पर तो वे मुह तक नहीं खोल रहे हैं।
संसद का चालू सत्र भ्रष्टाचार के मुद्दे की भेंट चढ़ जाए, इसकी पूरी पूरी संभावना है। भ्रष्टाचार पिछले कुछ सालों से देश का सबसे बड़ा राजनैतिक मुद्दा रहा है। आजादी के बाद का सबसे बड़ा आंदोलन कुछ साल पहले ही अन्ना हजारे के नेतृत्व में हुआ और उसके कारण कांग्रस की जड़ें हिल गई। कांग्रेस की पिछले लोकसभा चुनाव में दुर्गति भ्रष्टाचार के खिलाफ चले आंदोलन के कारण ही हई। भ्रष्टाचार के मसले पर पार्टी और उसके नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ने जो रवैया अपनाया, उससे देश की जनता उससे नाराज हो गई और उसका फायदा नरेन्द्र मोदी को मिला।
नरेन्द्र मोदी ने भले ही विकास को अपने चुनाव का मसला बनाया हो, लेकिन उनकी जीत भ्रष्टाचार विरोधी माहौल के कारण हुई। लोगों को लगा कि नरेन्द्र मोदी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं। परिवार नेताओं को भ्रष्ट बनाता है ओर नरेन्द्र मोदी परिवार से ऊपर आ चुके हैं, इसलिए लोगों को लगा कि वे न तो भ्रष्ट हो सकते हैं और न ही भ्रष्टाचारियों को बर्दाश्त कर सकते हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने कहा कि वे न तो खाएंगे और न ही किसी को खाने देंगे। उनके उस बयान से लोगों को लगा कि सही व्यक्ति प्रधानमंत्री बने हैं।
लेकिन मोदी सरकार की दो मंत्रियो के भ्रष्टाचार के मामले सामने आने के बाद लोगों का मन डिगने लगा है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पर भ्रष्ट तरीके अपनाकर कानून के एक भगोड़े का साथ देने का आरोप है, जिसे सुश्री स्वराज ने स्वीकार भी कर लिया है। हां, भ्रष्टाचार की एक नई परिभाषा बनाकर वह कह रही हैं कि उन्होंने जो किया, वह भ्रष्टाचार नहीं था, जबकि भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत उन्होंने किया, उसे भ्रष्टाचार के अलावा और कुछ कहा ही नहीं जा सकता। भ्रष्टाचार में वे, उनकी बेटी और उनका पति तीनों लिप्त पाए गए हैं। मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी पर भी अपने चुनावी हलफनामे में गलत जानकारी देने का आरोप है, जो कानूनन जुर्म है। वसुधरा राजे सिंधिया पर भ्रष्टाचार के अनेक आरोप लग चुके हैं, जिसके दस्तावेजी सबूत तक जारी कर दिए गए हैं। मध्य प्रदेश में सर्वव्यापी व्यापम घोटाला तहलका मचा रहा है और उसके घोटाले के छींटे मध्यप्रदेश के राज्यपाल सहित मुख्यमंत्री पर भी पड़ रहे हैं। छतीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह पर भी जन वितरण प्रणाली से संबंधित 36 अरब रुपये के घोटाले के आरोप लगे हैं।
इन घोटालों पर भाजपा ने वही रवैया अपना रखा है, जो अपनी सरकार के जमाने में कांग्रेस अपनाया करती थी। कांग्रेसी जुमले का दुहराते दुहराते भाजपा प्रवक्ता व अन्य नेता कांग्रेस काल के भ्रष्टाचार का गाना गाने लगते हैं, मानों कांग्रेसी काल के भ्रष्टाचार ने उन्हें भ्रष्ट होने की छूट दे रखी हो और वे भ्रष्टाचार को विरासत में मिला अपना अधिकार समझ रहे हों।
संसद से बाहर तो भारतीय जनता पार्टी और केन्द्र सरकार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घिर ही रही है। उसके प्रवक्ता ऐसे ऐसे बयान जारी कर रहे हैं, जिससे उनका लोगों के बीच में मजाक उड़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन मसलों पर जबर्दस्त चुप्पी साध रखी है। वे चुप रहने वाले नेता नहीं हैं, बल्कि बोलते रहने के लिए वे जाने जाते हैं, इसलिए उनकी यह चुप्पी भी लोगों में मजाक का विषय बन गई है।
जो संसद के बाहर हो रहा था, अब वही संसद के अंदर होना है। विपक्ष भ्रष्ट मंत्रियों और मुख्यमंत्रियो ं के इस्तीफे मांगेगा ही। सरकार ने जो रुख अपना लिया है, उससे साफ है कि वह विपक्ष की बात मानने वाली नहीं है। इसलिए टकराव तय है और इस टकराव में संसद का कामकाज बाधित होगा।
भ्रष्टाचार के अलावा जाति जनगणना का मामला भी सरकार के गले की फांस बन गया है। पिछले 3 जुलाई को जाति जनगणना के आंकड़े जारी करते हुए वित्त मं़त्री अरुण जेटली ने कहा था कि जाति के आंकड़े जारी ही नहीं किए जाएंगे। जाति जनगणना के लिए पिछली सरकार ने 4 हजाार करोड़ रुपये खर्च किए और अब यह सरकार कह रही है कि ये आंकड़े जारी ही नहीं किए जाएंगे। बिहार चुनाव को ध्यान में रखते हुए जेटली ने टालू रवैया अपनाते एक कमिटी बनाने की घोषणा कर दी, जिसका कोई मतलब नहीं है।
गौरतलब हो कि लोकसभा में दबाव का सामना करते हुए ही पिछली यूपीए सरकार को जाति जनगणना कराना पड़ा था। लोकसभा ने इस पर सर्वसहमति दिखाई थी और भाजपा भी उस सहमति में सबके साथ थी, लेकिन अब उसकी सरकार पीछे हट रही है। इस पर हंगामा होना स्वाभाविक है।
इन हंगामों के बीच केन्द्र सरकार अनेक महत्वपूर्ण विधेयक पास कराना चाहेगी। भूमि अधिग्रहण विधेयक लटका पड़ा है और जीएसटी विधेयक का मसला भी काफी महत्वपूर्ण है। दोनों मसलों पर पहले से ही विवाद चल रहा है। इधर कुछ और विवाद पैदा होने के कारण लगता है कि संसद का मानसून सत्र हंगामे की भेंट चढ़ जाएगा। (सवाद)
भारत
संसद का मानसून सत्र
जाति जनगणना और भ्रष्टाचार के मामले छाये रहेंगे
उपेन्द्र प्रसाद - 2015-07-20 16:56
मोदी सरकार के लिए संसद का मानसून सत्र भारी पड़ रहा है। सरकार के एक साल पूरा होने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शान से कहा था कि उनकी सरकार के पहले साल की सबसे बड़ी उपलब्धि भ्रष्टाचार मुक्त शासन की रही है। दिल्ली विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान भी श्री मोदी ने दावा किया था कि उनकी सरकार में भ्रष्टाचार नहीं चल रहा है। दिल्ली के लोगों ने उनकी बात को माना या नहीं, यह तो कहा नहीं जा सकता, लेकिन भ्रष्टाचार के मसले पर अरविंद केजरीवाल नरेन्द्र मोदी से ज्यादा विश्वसनीय दिखाई पड़े और दिल्ली के लोगों ने केजरीवाल को ही पसंद किया और भारतीय जनता पार्टी को दिल्ली में ऐसी हार का सामना करना पड़ा, जो उसके विरोधियों के लिए भी अविश्वसनीय था।