इसमें दो मत नहीं कि सरकार के पास एक से बढ़कर एक योजनाएं हैं। उन सबमें लोगों के भला करने की बहुत संभावनाएं हैं। उनको अमल में लाया जाय, तो हमारा देश दुनिया के पहली कतार के देशों में शामिल हो जाएगा। लेकिन आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को अभी भी आगे बढ़ाया जाना बाकी है। मोदी सरकार उन कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने में अपने आपको विफल पा रही है।
प्रधानमंत्री ने दुनिया के अनेक देशों की यात्राएं की हैं। उन यात्राओं से देश को फायदा हुआ है, इसका दावा भी किया जा रहा है। इन दावों में सच्चाई भी है। कोशिश की जा रही है कि भारत को विश्व की उत्पादन भूमि बनाया जाय और वैश्विक निवेश का बहुत बड़ा हिस्सा भारत की ओर आकर्षित किया जाय।
लेकिन उसके लिए बहुत कुछ करना होगा। उसे देश का माहौल ऐसा बनाना पड़ेगा, जिससे विदेशी निवेशक भारत को निवेश का एक सुरक्षित स्थान समझ सके। यह सच है कि अभी देश में राजनैतिक स्थिरता है और सरकार गिरने का कोई खतरा नहीं है, लेकिन सामाजिक स्तर पर होने वाला उथल पुथल भी विदेशी निवेश को रोकने का काम करता है।
मोदी सरकार विदेशों से संबंध अच्छा करने की हर संभव कोशिश कर रही है। उसने दक्षिण एशिया के देशों के साथ भी संबंध मधुर करने के प्रयास किए हैं, लेकिन अपने दो पडोसी देशों के साथ बेहतर संबंध की ओर बढ़ना अभी भी बाकी है। चीन और पाकिस्तान के साथ हमारे रिश्तों में अभी भी खटास है। पाकिस्तान भारत के प्रति अपना शत्रुतापूर्ण रवैया छोड़ने के लिए तैयार नहीं है और चीन अपने विस्तारवादी रवैये से बाज नहीं आ रहा है।
नरेन्द्र मोदी के करिश्मे पर कोई सवाल खड़ा नहीं कर सकता, पर सवाल यह है कि क्या उनकी सरकार और पार्टी विकास के लिए वास्तव में बहुत गंभीर है और यदि गंभीर है, तो सरकार के मंत्री और पार्टी के नेता विभाजक बयान क्यों देते रहते हैं? वे अनेक संस्थाओ और प्रतिष्ठानो को अपने वक्तव्यों और हरकतों से नुकसान पहुंचा रहे हैं। लोकतांत्रिक अधिकारों पर भी हमला किया जा रहा है और मीडिया को भी नहीं बख्सा जा रहा है।
संसद मं जिस तरह का माहौल बना हुआ है, उससे लगता नहीं है कि सरकार अनेक आर्थिक सुधार कार्यक्रमों की दिशा में आगे बढ़ पाएगी। सरकार को संसद चलाने से ज्यादा फिक्र विपक्षी पार्टियों पर हमला करने की है। वह टकराव को घटाने की बजाय टकराव को और बढ़ावा देने का काम कर रही है। इससे लगता है कि संसदीय कार्यवाहियों को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बहुत गंभीर नहीं है।
भाजपा के मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों पर भ्रष्टाचार के एक के बाद एक आरोप लग रहे हैं। उन आरोपो पर सरकार और पार्टी को विवेकपूर्ण रवैया अपनाते हुए विचार करना चाहिए और विपक्ष के साथ संवाद कर कोई ऐसा रास्ता निकालना चाहिए, जिससे संसद चल सके। पर सरकार को संसद चलाने की चिंता ही नहीं और प्रधानमंत्री का लक्ष्य चुनावों में जीत हासिल करना है। (संवाद)
भारत
मोदी ने चुनावी लड़ाई के लिए संसद की उपेक्षा की
ताकत के आक्रामक तेवर से राज्य व्यवस्था को नुकसान
एस सेतुरमन - 2015-07-30 11:13
मोदी सरकार के लिए क्या अच्छा और क्या खराब चल रहा है? इसका शासन दूसरे साल में प्रवेश कर गया है। पर एक साल में ही मतदाताओं की अनेक अपेक्षाएं धूल धूसरित हो गई हैं। इसके कारण देश का राजनैतिक माहौल खराब होता जा रहा है। सामाजिक उथलपुथल तेज हो गई है। शिक्षा और संस्कृति की संस्थाओं का भगवाकरण हो रहा है और सरकार तानाशाह की तरह काम कर रही है।