याकूब की फांसी ने यह संदेश साफ तौर पर भेज दिया है कि देश अपनी आंतरिक सुरक्षा या बाहरी खतरो ं से बचने के लिए कड़े कदम लेने में हिचक नहीं दिखाएगा। कानून व्यवस्था की रक्षा करने की जिम्मेदारी राज्य की है और इस जिम्मेदारी को पूरी करने के लिए वह उसे सजा देगा, जो दूसरे नागरिकों को मारता है। मेमन को मौत की सजा देकर भारत ने अपराधों के प्रति अपनी दृढ़ता का इजहार किया है।
रामेश्वरम से पूरे देश में संदेश गया है कि भारत एक सेकुलर देश है और हमें इस बात का फख्र है कि देश के सबसे बड़े पद पर भी देश के अल्पसंख्यक समुदाय के लोग बैठ सकते हैं। यह पद पुरुष और स्त्री के लिए समान रूप से उपलब्ध है। भारत इस बात के लिए गर्व कर सकता है कि सिर्फ दंड ही नहीं, बल्कि पद देते समय भी यहां किसी सांप्रदायिक या धार्मिक लगाव को महत्व नहीं दिया जाता।
इसमें कोई शक नहीं कि कलाम एक महान राष्ट्रपति थे। अपने जीवन काल में उन्हें जितनी ख्याति मिली, उससे भी ज्यादा ख्याति उन्हें मरने के बाद मिली। राष्ट्रपति के रूप में उनकी नियुक्ति का एक विशेष संदर्भ है। वाजपेयी की 2002 में सरकार थी। वे एनडीए सरकार का नेतृत्व कर रहे थे। एनडीए के पास किसी को राष्ट्रपति बनाने के लिए पर्याप्त वोट नहीं थे। उसे विपक्ष का भी वोट अपने उम्मीदवर को जिताने के लिए चाहिए था। विपक्ष में बैठे मुलायम सिंह यादव ने कलाम का नाम उस पद के प्रस्तावित किया।
2002 में ही गुजरात में गोधरा में एक ट्रेन को जलाए जाने के बाद भारी मुस्लिम विरोधी दंगा हुआ था। उस समय देश भर के मुसलमानों मे असुरक्षा का भाव जाग गया था। अटल बिहारी वाजपेयी को लगा कि कलाम को राष्ट्रपति बनाकर गुजरात दंगों से पैदा हुए माहौल को बदला जा सकता है। मुलायम कलाम को राष्ट्रपति बनाने की माग पहले से ही कर रहे थे। फिर वाजपेयी को इससे बेहतर मौका और क्या मिल सकता था, क्योंकि मुलायम के समर्थन के कारण एनडीए कलाम को आसानी से राष्ट्रपति का चुनाव जितवा सकता था। वाजपेयी ने कलाम को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाकर गुजरात दंगों से उत्पन्न माहौल को बदलने का काम कर डाला।
याकूब मेमन की बात करें, तो उसकी फांसी के पहले बहुत नाटक हुआ। सुप्रीम कोर्ट को रात में भी काम करना पड़ा। अंत में लोग दो तरह की प्रतिक्रिया देते दिखाई पड़े। कुछ लोग कह रहे थे कि फांसी देना गलत था, क्योंकि इस तरह हिंसा के खिलाफ किसी देश का अपने नागरिक के खिलाफ हिंसा करना उचित नहीं, तो कुछ लोग यह कह रहे थे कि फांसी देकर बिल्कुल सही किया गया, क्योंकि हत्यारे को फांसी मिलनी ही चाहिए। (संवाद)
भारत
दो मौतों की कहानी: कलाम के लिए सभी ने मातम मनाया
हरिहर स्वरूप - 2015-08-07 10:38
पिछला वृहस्पतिवार एक कष्टदायी दिन था। उस दिन दो अलग अलग तरह के मुसलमान को दफनाया गया था। नागपुर के जेल में याकूब अब्दुल रजाक मेमन नाम के एक मुस्लिम को फांसी पर लटकाया गया और उसे उसी दिन दफना भी दिया गया। याकूब को फांसी दिए जाने के कुछ समय बाद ही रामेश्वरम में अबुल फकीर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम को पूरे राष्ट्रीय सम्मान के साथ दफनाया गया। मेमन को फांसी पर चढ़ते हुए किसी कैमरा को फोटो या विडियो सूट करने की इजाजत नहीं दी गई, लेकिन कलाम की अन्त्येष्टि को देश भर में दिखाया गया।