पाकिस्तान बार बार कहता है कि मुंबई हमले में हफीज सईद की भूमिका को लेकर भारत के पास कोई ठोस सबूत नहीं है और इसके कारण वह सईद के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकता। आज भी सईद खुला घूम रहा है। भारत के खिलाफ वह सभाएं और रैलियां कर रहा है। भारत के खिलाफ आग उगल रहा है। लेकिन पाकिस्तान सरकार उसके खिलाफ कुछ नहीं कर रही है। अंतरराष्ट्रीय दबाव भी उस पर इतना नहीं पड़ रहा है कि वह हफीज के खिलाफ कोई कार्रवाई करे। हफीज के खिलाफ कार्रवाई का मामला ही सिर्फ भारत की चिंता का विषय नहीं है, बल्कि पाकिस्तान द्वारा भारत में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने की अन्य हरकतों से भी परेशान है। भारत के खिलाफ अनेक प्रकार की हरकतों में लिप्त होने के बावजूद पाकिस्तान चाहता है कि भारत उसके साथ शांति समझौते के लिए बातचीत करता रहे।

बातचीत करनी अच्छी बात है। समस्या का हल बातचीत से ही निकलता है, लेकिन बातचीत का उद्देश्य समस्या का हल हो, तभी यह संभव है, लेकिन सिर्फ बातचीत के लिए बातचीत करने से कभी कोई फायदा नहीं हुआ है। पाकिस्तान भारत को बातचीत में शामिल कर यह साबित करने की कोशिश करता रहता है कि वह शांति का पुजारी है और भारत को ही बातचीत से परहेज है, लेकिन बातचीत के पहले बातचीत का माहौल बिगाड़ने में भी पाकिस्तान कोई कोर कसर नहीं छोड़ता है।

जब जब भारत ने पाकिस्तान के साथ बातचीत में गंभीरता दिखाई है, तब तब पाकिस्तान ने भारत के साथ विश्वासघात किया है। जब अटलबिहारी वाजपेयी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से साथ समझौता वार्ता कर रहे थे, तो उसी बीच पाकिस्तान करगिल में घुसपैठ कर रहा था। करगिल के एक हिस्से पर पाकिस्तान ने कब्जा भी कर लिया था, हालांकि उसने आधिकारिक तौर पर यह कभी स्वीकार नहीं किया कि पाकिस्तानी सेना की वह करतूत थी, लेकिन उस समय सेना के अध्यक्ष रहे परवेज मुशर्रफ ने हाल ही में कहा कि भारत करगिल के दर्द को कभी भूल नहीं पाएगा।

एक तरफ बातचीत और दूसरी तरफ भारत के खिलाफ अघोषित युद्ध- यही पाकिस्तान की कूटनीति रही है। एक तरफ तो वह भारत के साथ बातचीत की पेशकश करता रहा है और दूसरी तरह वह बातचीत के माहौल को खराब करने के लिए कुछ न कुछ हरकतें जरूर कर देता है। बातचीत की पेशकश वह उन देशों के दबाव में करता है, जहां से उसे लगातार आर्थिक और सैन्य सहायता मिलती रहती है। भारत के पास भी बातचीत के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव जबतक पड़ता रहता है, क्योंकि पाकिस्तान इसके लिए स्थिति बनाता रहता है।

दरअसल पाकिस्तान बार बार भारत के साथ अपने रिश्ते में तीसरे पक्ष को खींचने की कोशिश करता रहता है। ऐसा कर वह भारत के साथ अपने रिश्ते का अंतरराष्ट्रीयकरण करना चाहता है। उसकी नजर हमेशा कश्मीर पर लगी रहती है। कश्मीर के मसले का अंतरराष्ट्रीयकरण करना पाकिस्तान की भारतीय नीति का केन्द्र बिन्दु है। वह लगातार इसी केन्द्र बिन्दु के इर्द गिर्द भटकता रहता है। वह कश्मीर को एक विवादित भूमि मानता है, जबकि भारत उसे अपना एक अविभाज्य हिस्सा मानता है। कश्मीर में वह जनमत संग्रह की मांग करता है और कहता है कि वहां के लोगों को यह चुनने का मौका मिलना चाहिए कि वे भारत में रहना चाहते हैं या पाकिस्तान में। पर भारत कश्मीर के भारत में विलय को अंतिम मानता है और वह पाकिस्तान की उस राय को खारिज करता है कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के विभाजन का अधूरा एजेंडा है।

जाहिर है कि पाकिस्तान भारत के लिए लगातार सिरदर्द बना हुआ है। नरेन्द्र मोदी सरकार के गठन के बाद वह और भी ज्यादा बौखला गया है। उसके बाद उसने भारत में घुसपैठ को और तेज कर दिया है। जम्मू और कश्मीर में सईद सरकार के गठन ने उसकी बेचैनी को और भी बढ़ा दिया है और उसे लगता है कि यदि सईद सरकार ने 6 साल पूरे कर लिए, तो कश्मीर में उग्रवादियों को मिल रहा समर्थन और कमजोर हो जाएगा। इसलिए वह अपनी हरकतों को तेज कर रहा है।

लेकिन अब एक पाकिस्तानी आतंकी भारत के कब्जे में है और उसके बयान पाकिस्तान के झूठ को बेनकाब करने के लिए काफी है। सच कहा जाय, तो पाकिस्तान का झूठ पहले से ही बेनकाब है, लेकिन उसके कुछ मित्र देश अभी भी उसका साथ देते रहते हैं। ताजा घटना के बाद उसके मित्र देशों का उसके साथ खड़ा रहना मुश्किल हो जाएगा। देखना दिलचस्प होगा कि अपने नागरिक आतंकी की भारत में गिरफ्तारी पर पाकिस्तान क्या कहता और करता है। (संवाद)