बिहार में सरकार और पार्टी कैसे चलाना है, इसका फिक्र नीतिश से ज्यादा किसको हो सकता है। लेकिन प्रदेश अध्यक्ष और सांसद होने के दंभ में ललन मुख्यमंत्री से यह अपेक्षा करने लग गए थे कि उनके हर निर्देश और सलाह का आदर किया जाएगा और उनसे पूछ कर ही नीतिश पार्टी के बारे में कोई फैसला ले सकते हैं। रोज रोज के इस झक झक और बक बक से मुक्ति पाने के लिए जद यू के राष्ट्ीय अध्यक्ष शरद यादव ने उनका इस्तीफा आज स्वीकार कर लिया।

ज्ञात हो कि मुख्यमंत्री नीतिश कुमार अपने बदौलत ही आर्थिक विकास तथा स्वच्छ प्रशासन के दृष्टिकोण से देश के अन्य राज्यों के बीच बिहार की एक पहचान बनाने में कामयाबी हासिल कर रहे हैं। एक समय बिहार के शासन केा जंगल राज से तुलना की जाती थी,लेकिन पिछले चार साल में बिहार बदल ही नहीं रहा है बल्कि चमक रहा है,यह संदेश पूरी दुनिया में जाना शुरू हो गया है। लेकिन जब चुनाव आने वाले हो,चुनौतियां सामने खड़ी हो,तब राज्य के पार्टी अध्यक्ष ही बचकानी बातें करने लगे तो कोई क्या कह सकता है।

संसद राजीव रंजन सिंह का अड़ियल रवैया पार्टी व सरकार के हित में कतई नहीं थी, अंततः मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने उनसे किनारा करना ही उचित समझते हुए संगठन से संबधित निर्णय खुद लेने शुरू कर दिए। मीडिया के चंद दोस्तों की चाटुकारिता भरी बातों में आ कर ललन को यह गलतफहमी हो गयी कि बिहार में संगठन उनके बल बूते ही चल रहा है। इसलिए मुख्यमंत्री को पार्टी में किसे शामिल किया जाए किसे नहीं,यह निर्णय करने का अधिकार सिर्फ उन्हें हीं है। लेकिन जबकी मुख्यमंत्री उनकी धौंस में नहीं आए तो वह इस्तीफे जैसा कार्ड खेल कर उन पर दबाब बनाने का खेल चालू रखने का तरीका अपनाया जो उन्हें भारी पड़ गया। इस्तीफा स्वीकार कर ली गयी।

पार्टी के कुछ नेता बंद जुबान यह भी कहते हैं कि ललन के सिफारिशी पत्रों से सरकार चलाने में कई मंत्रियों को काफी दिक्कते आ रही थीं। मंत्रियांे और अधिकारियों के तरफ से ऐसी शिकायतें काफी अर्सें से आ रही थी लेकिन मुख्यमंत्री ने इसे नजरअंदाज कर दिया था,जब ललन हद पार कर गएं तो नीतिश ने ललन केा अपना औकाद दिखा दिया। तबसे नीतिश मुख्यमंत्री की कार्यशैली का आलोचना खुलेआम करने लगे। पार्टी में अनुशासन बरकरार रहे इसके लिए ललन का इस्तीफा स्वीकार करनेा शरद यादव के लिए जरूरी हो गया।

ललन इस्तीफा सौंपने के लिए दिल्ली पहुचे और शरद यादव के निवास पर उनसे करीब दो घंटे बातचीत करते रहे। मुलाकात के बाद संवाददाताअ¨ं से उन्होंने कहा कि मैंने बिहार प्रदेश अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को सौंप दिया है। मुंगेर से पार्टी सांसद ललन ने कहा कि शरद यादव चाहते थे कि मैं अपना इस्तीफा वापस ले लूं। उनका कहना था कि दस दिन का समय दिया जाये। मैंने साफ कह दिया कि इस्तीफा वापस नहीं लूंगा अ©र इस पद पर नहीं रहूंगा। इसलिए उनके इस्तीफे को तत्काल प्रभाव से स्वीकार कर लिया जाये।
जद-यू छोड़ने की अटकलों को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि कई तरह के प्रचार चल रहे हैं अ©र तरह-तरह के भ्रम फैलाए जा रहे हैं। मैं यह साफ कर देना चाहता हूं कि यह घर (जद-यू) मेरा है। इस घर को बनाने में मेरा योगदान किसी से ज्यादा नहीं तो कम भी नहीं है। मैं इस घर में हूं अ©र आखिरी दिन तक रहूंगा।

ललन ने कहा कि उनके कुछ सुझाव हैं मसलन पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र कैसे कायम हो इसकी संस्थागत संरचना हो और पार्टी सामूहिक निर्णयों से कैसे चले। वह चाहते हैं कि अध्यक्ष पद से उन्हें मुक्त करने के बाद पार्टी इन मुद्दों पर विचार करे।

उल्लेखनीय है कि नीतीश कुमार पर एक तानाशाह की तरह व्यवहार करने का आरोप लगाते हुए ललन सिंह ने जद-यू के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की पेशकश की थी।ललन ने नीतीश कुमार पर पार्टी के बारे में लिए जाने वाले निर्णयों में उनसे विचार-विमर्श नहीं करने का आरोप लगाया है और कहा है कि पार्टी के निर्णयों के बारे में उन्हें जानकारी अखबारों के माध्यम से मिलती है।

ललन ने जद यू में उपेंद्र कुशवाहा को दोबारा शामिल किए जाने पर एतराज जताते हुए कहा था कि उस समय नीतीश कहां थे जब कुशवाहा ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा था।#