सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी से शुरू करें, तो संदिग्ध रिकाॅर्ड वाले अपने मंत्रियों की रक्षा करना इसे शोभा नहीं दे रहा है। ऐसा कर वह बहुत ही गलत काम कर रही है और परंपराओं का उल्लंघन कर रही है।
यह अयोग्य लोगों द्वारा अनेक सरकारी संस्थाओं को भर रही है। उनकी योग्यता यही है कि वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ जुड़े रहे हैं।
सरकार इस बात को महसूस नहीं कर पा रही है कि अयोग्य लोगों से उन संस्थाओं को भर देने से उनका नुकसान होगा। सरकार की समस्या यह है कि उसके पास ऐसे योग्य लोगों की कमी है, जो वहां पदस्थापित किए जा सकते हैं। संघ परिवार में बौद्धिक लोगों का अकाल है। यही कारण है कि इंडियन काउंसिल आॅफ हिस्टाॅरिकल रिसर्च और फिल्म एंड टेलिविजन इंस्टीट्यूट आॅफ इंडिया के प्रमुख के रूप में उसने अयोग्य लोगों को पदस्थापित कर दिया है।
भगवा ब्रिगेड को लगता है कि जिस तरह राज्यपाल के पदों पर किसी को भी बैठाया जा सकता है, उसी तरह इन संस्थाओं के प्रमुखों के पदों पर भी किसी को बैठाया जा सकता है। जिस तरह वे राज्यपालों के पदों पर हिन्दुत्व की रक्षा करने वालों को बैठा रहे हैं, उसी तरह उन पदों पर भी वे उन्हीें को बैठा रहे हैं, जो तथाकथित हिन्दुत्व की पैरवी करते रहे हैं।
लेकिन इस प्रक्रिया में लोगों की नजरों में उन संस्थाओं की छवि खराब हो जाती है। आजादी के बाद राज्यपाल के पदों को भरने के लिए भी इस बात का ध्यान रखा जाता था कि बहुत सोच समझकर योग्य व्यक्तियों को ही उन पदो पर बैठाया जाय। लेकिन भारतीय जनता पार्टी उस परंपरा को फिर से जीवित करना नहीं चाहती।
नरेन्द्र मोदी सरकार के बायोडेटा में एक और गड़बड़ी है। वह जिसे नापसंद करती है, उस पर प्रतिबंध लगाने लगती है। जैसे गैंगरेप की शिकार एक लड़की पर जब एक डाॅक्यूमंट्री किसी ने बनाई थी, तो उसने उसे बैन कर दिया और मुबई में उसने गोमांस को प्रतिबंधित कर दिया।
इसके अलावा यह वैसे लोगो को भी परेशान कर रही है, जिसे वह नापसंद करती है। उदाहरण के लिए वह तीस्ता शीतलवाड़ को इसलिए परेशान कर रही है, क्योंकि उन्होने गुजरात दंगे के बाद वहां की सरकार पर सवाल उठाए थे और दंगापीड़ितो की सहायता की थी। अटलबिहारी वाजपेयी के शासनकाल में तहलका से जुड़े लोगो के साथ वैसा ही किया गया था।
यदि सरकार उच्च पदों पर बहाली के लिए संघ परिवार से बाहर के लोगों पर भी नजर दौड़ाए तो वह देश के लोगों की प्रशंसा का पात्र बन सकती है।
सुषमा के मामले में भाजपा अड़ी हुई है। लालकृष्ण आडवाणी तक ने संकेत दे दिए हैं कि उसे क्या करना चाहिए। जब वे एक सांसद थे और हवाला डायरी में उनका नाम आया था, तो उन्होने संसद की सदस्यता से ही इस्तीफा दे दिया था। अपने इस्तीफा की याद दिलाकर आडवाणी ने जाहिर कर दिया है कि सुषमा स्वराज को क्या करना चाहिए। लेकिन उनकी न तो सुषमा सुन रही है और न ही भाजपा। सत्ता में रहकर कांग्रेस भी लगभग ऐसा ही करती थी। इसलिए अब हमारे देश्ज्ञ के मतदाताओ के पास विकल्प सीमित हो गए हैं। (संवाद)
भाजपा और कांग्रेस दोनों तीखी गोली
शासन की कमी लोकतंत्र के लिए खतरनाक
अमूल्य गांगुली - 2015-08-12 11:12
एक औसत भारतीय मतदाता के लिए देश की दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों कांग्रेस और भाजपा में से किसी एक को चुनना बहुत ही अनाकर्षक काम है। इसका कारण है कि दोनों के बोयोडेटा में खामियां हैं। दोनों का इतिहास जानकार यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है।