बिहार विधानसभा के आमचुनाव
हो रही है व्यक्तित्वों की लड़ाई
कल्याणी शंकर - 2015-08-15 14:51
बिहार में विधानसभा के चुनावी युद्ध की रणभेरी बज चुकी है। योद्धा एक दूसरे से लड़ने को तैयार हो गए हैं। सच तो यह है कि लड़ाई शुरू भी हो गई है। यहां की लड़ाई इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दो व्यक्तित्वों की लड़ाई के रूप में बदल गई है। एक व्यक्तित्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का है, तो दूसरा व्यक्तित्व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का है।
आम तौर पर विधानसभा के आमचुनाव स्थानीय मुद्दे पर लड़े जाते हैं। इसके साथ साथ स्थानीय नेताओं के करिश्मा भी आपस में टकराते हैं। लेकिन इस बार कोई स्थानीय मुद्दा यहां काम नहीं कर रहा है। दो स्थानीय नेताओं की लड़ाई भी कहीं नहीं दिखाई दे रही है। यहां एक तरफ एक राष्ट्रीय नेता मोर्चा संभाल रहे हैं, तो दूसरी तरफ एक स्थानीय नेता नीतीश कुमार अपने पूरे दमखम के साथ मैदान में डटे हुए हैं।
जब दिल्ली का विधानसभा चुनाव हो रहा था, तो उस समय भारतीय जनता पार्टी ने अरविंद केजरीवाल के सामने किरण बेदी को खड़ा कर दिया था। जाहिर है, उस समय नरेन्द्र मोदी केजरीवाल के सामने नहीं आना चाहते थे। लेकिन बिहार में नरेन्द्र मोदी को उस तरह की कोई झिझक नहीं है। वे भारतीय जनता पार्टी के लिए मोर्चा संभाल चुके हैं। वे नीतीश कुमार को ही नहीं, लालू यादव को भी चुनौती दे रहे हैं। ये तीनों नेता जबर्दस्त भाषणबाज हैं। भाषण देने के अलावा प्रचार के सबसे नये साधनों का इस्तेमाल वे चुनावी जंग जीतने में कर रहे हैं।
बिहार का चुनाव नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार दोनों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह लालू यादव के लिए भी जिंदगी और मौत का मामला है। कांग्रेस ने भी अपना सबकुछ इस यहां दांव पर लगा दिया है। पिछले विधानसभा चुनाव में वह अकेली लड़ गई थी और उसे मात्र 4 सीटें प्राप्त हुई थीं। इस बार वह कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती। इसलिए उसने लालू और नीतीश से समझौता कर लिया है और 40 सीटो ंपर ही चुनाव लड़ने के लिए राजी हो गई है।
पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने बिहार में अपना वर्चस्व कायम कर लिया था। उसने अपने मोर्चे के सहयोगी दलों के साथ बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 31 पर जीत पाने में कामयाबी हासिल कर ली थी। इस बार उसके मोर्चे में जीतनराम मांझी भी शामिल हो गए हैं। लेकिन दूसरी तरफ लालू और नीतीश के एक साथ आ जाने से उसकी चुनौती और भी बढ़ गई है।
भारतीय जनता पार्टी के लिए यह चुनाव जीतना बहुत जरूरी है। इसके पहले दिल्ली में विधानसभा का चुनाव हुआ था। उसमें भाजपा की करारी हार हुई थी और उसके खिलाफ देश भर में एक माहौल बनता दिखाई पड़ रहा था। यदि बिहार में भी उसकी हार हो जाती है, तो आने वाले समय में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी उसकी जीत की संभावना धूमिल होती जाएगी। इसलिए देश का माहौल अपने पक्ष में बनाने के लिए बिहार में उसकी जीतना बहुत जरूरी है।
बिहार के बाद पश्चिम बंगाल में चुनाव होने हैं। पश्चिम बंगाल के चुनाव के साथ ही तमिलनाडु में भी विधानसभा के चुनाव होने हैं। दोनों राज्यों में भाजपा अपनी स्थिति मजबूत करना चाहती है। यदि बिहार में उसकी हार हो जाती है, तो एक पराजित पार्टी के रूप में वह दोनों राज्यों मंे चुनावों का सामना करती दिखाई देगी, जबकि बिहार में जीतने के बाद वह बुलंद हौसले से दोनो राज्यों में अपनी स्थिति बेहतर करने की कोशिश करेगी।
2017 में उत्तर प्रदेष में विधानसभा के चुनाव हैं। उत्तर प्रदेश देश की सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य है और केन्द्र की सत्ता में इसका सबसे बड़ा योगदान होता है। आज यदि भाजपा अपने बूते ही लेाकसभा में बहुमत में है, तो इसका कारण उत्तर प्रदेश में हुई उसकी जबर्दस्त जीत थी। भाजपा उत्तर प्रदेश में भी अपनी सरकार बनाना चाहेगी और इसके लिए जरूरी है कि पहले वह बिहार को जीते। बिहार की हार उसके उत्तर प्रदेश केा जीतने के सपने को धराशाई कर सकता है। इसलिए वह किसी भी हालत में बिहार का चुनाव जीतना चाहेगी। (संवाद)