देश में कहीं न कहीं कोई न कोई रेल दुर्घटना की खबर हमेशा सुर्खियों में रहती है। हाल ही में मध्य प्रदेश के हरदा में वाराणसी से मुंबई जा रही कमायनी एक्सप्रेस और पटना से मुंबई जा रही जनता एक्सप्रेस के 4 अगस्त की आधी रात्रि मचहक नदी के बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में दुर्घटनाग्रस्त होने से 30 यात्रियों की मौत और कई के लापता होने की खबर चर्चा में रही। ये दोनों दुर्घटनाएं क्रॉसिंग स्थल पर ही हुई थी।
कुल मिलाकर रेलवे प्रशासन द्वारा इस दुर्घटना के लिए मौसम और बाढ़ को दोषी ठहराकर अपने कर्तव्य से इतिश्री कर लेने से कई सवाल खड़े हुए हैं। इस दुर्घटना ने यह साबित किया है कि रेलवे कर्मी मॉनसूनी टूट-फूट का दैनिक निरीक्षण करने में पूरी तरह विफल हैं और यह पूरी तरह मानवीय लापरवाही का मामला है। रेलवे को अपने ट्रैक की पूर्ण सुरक्षा-संरक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्पष्ट दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
इस तरह की दुर्घटना को रोकने के लिए रेल मंत्रालय ने जोनल रेलवे मैनेजरों के लिए उत्तरदायित्व का निर्धारण किया है। इसमें डीआएम को भी बराबर का उत्तरदायित्व सौंपा गया है कि वह रेलवे की सुरक्षा-संरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए हर संभव कदम उठाएंगे, क्योंकि वह बहु अनुशासनिक तंत्र का प्रमुख होता है। इस संदभ में पूर्व रेल मंत्री रामविलास पासवान द्वारा रेलवे दुर्घटनाओं के लिए जेनरल मैनेजर को उत्तरदायी बनाते हुए की गई कार्रवाई ने खूब सुर्खियां बटोरी थी।
श्री पासवान ने रेल दुर्घटना के लिए मध्य और दक्षिण पूर्व रेलवे प्रबंधकों को निलंबित कर दिया था। इसे लेकर उस समय बहुत हंगामा भी हुआ था। कुल मिलाकर रेलवे की सुरक्षा-संरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए एक तंत्र को जिम्मेदार बनाना बहुत जरूरी था क्योंकि रोज-ब-रोज होने वाली रेल दुर्घटनाओं में देश के जान माल का भरी नुकसान होता है। श्री पासवान द्वारा की गई कार्रवाई का प्रभव आगे चलकर सुखद रहा और रेलवे की सुरक्षा तंत्र में बहुत सुधार हुआ।
रेलवे द्वारा सुरक्षा के तीन तंत्र विकसित किए गए हैं, लघुकालीन, मध्यकालीन और दीर्घकालीन। इसके तहत रेलवे अपने तंत्र को सुचारू बनाए रखने, ट्रैफिक को बाधित होने से रोकने और अतिरिक्त ट्रैफिक बोझ को समायोजित करने जैसे महत्वपूर्ण कार्य करता है। इस तंत्र को सुचारू बनाए रखने के लिए रेलवे को कुछ महत्वपूर्ण संरक्षा उपायों पर अपनी प्राथमिकताएं तय करनी होगी जिसमें पुराने पड़ चुके तंत्र का नवीनीकरण करना और ट्रैफिक व्यवस्था को सुचारू बनाए रखना शामिल है। बहरहाल सुरक्षा निधि का मूल्य हस लागत 58,903 करोड़ है जिसमें रॉलिंग स्टॉक, सिंग्नलिंग, ट्रैक , पुल, विद्युतीय मशीनरी और प्लांट के सुधार के लिए राशि बकाया पड़ा है। इसमें से केवल ट्रैफिक सुधार के लिए 4,396 करोड़ रुपये भी यों ही पड़े हु हुए हैं। इसे लेकर रेलवे प्रशासन को निदान करने और क्रियान्वित करने के लिए विशेष ध्यान देना होगा।
रेलवे के लिए मानव रहित रेलवे क्रॉसिंग सबसे बड़ा दुर्भग्य स्थ्ल हैं जो दुर्घटनाओं के लिए सबसे ज्यादा दोषी हैं। यदि रेलवे सूत्रों की मानें तो मंत्रालय के लिए रेलवे क्रॉसिंग को मानवीय संसाधन से लैस करने के अलावा ओवर ब्रिज या अंडर ब्रिज बनाने जैसे कार्य प्रमुखता की सूची में शामिल है। वर्तमान वित्त वर्ष 2015-16 के दौरान रेलवे ने 600 मानव रहित और 150 मानवीय रेलवे क्रॉसिंग को समाप्त करने की योजना बनाई है। यही नहीं रेल मंत्री सुरेश प्रभ द्वारा 2015-16 के रेल बजट में रेलवे सुरक्षा-संरक्षा को लेकर की गई घोषणाओं में यह प्रमुखता से शामिल है। रेलवे यदि क्रॉसिंग को खत्म करने में सफल हो जाता है तो यह रेलवे की दशा-दिशा को सुधारने में अहम भूमिका अदा करेगा जो उसके प्रमुख चार लक्ष्यों में एक है।
कुल मिलाकर रेलवे सुरक्षा-संरक्षा को जमीनी धरातल पर उतारने के लिए यह जरूरी है कि रेलवे काकोदकर समिति की सिफारिशों को लागू करे, जिसमें यह सुझाव दिया गया है कि रेलवे की सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए बहुद्देशीय अवदान की जरूरत है, जिसमें बजटीय सहायता, रेलवे सुरक्षा निधि, वित्त मंत्रालय द्वारा पोषित विकास निधि और अवमूल्यन संचित निधि शामिल हैं। ये निधियां सिंग्नल सुधार, लेवल क्रॉसिंग समाप्त करने, लिंक हॉफमन बुश कोचों के निर्माण, बायो-टॉयलेट, वैक्यूम टॉयलेट, तौल ब्रिज, सूचना तकनीकी का विस्तार करने, सूचना तंत्र को दुरूस्त करने, ट्रैक मशीन लगाने, वैल्डिंग प्लांट लगाने, निर्माण में सुधार लाने, प्रशिक्षण तंत्र दुरूस्त करने और शोध एवं विकास जैसे महत्वपूर्ण कार्यो में खर्च की जाएंगी।
काकोदकर समिति की रेलवे से संबंधित सिफारिशों को प्रभावी रूप से अमल में लाने के लिए तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने 1700 करोड़ रुपये की विशेष रेलवे सुरक्षा निधि की स्थापना की थी। इसे दो चरणों में लागू करना था। पहला चरण 1,अप्रैल 2001 से 31 मार्च 2008 तक का था। विशेष रेलवे सुरक्षा निधि-2 की राशि गंभीर सुरक्षा तंत्रों पर खर्च करने की योजना थी, जिसमें ट्रैक, पुल और सिग्नल शामिल हैं।
रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने रेलवे सुरक्षा-संरक्षा को लेकर जिस तरह का उत्साह दिखाया है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि आने वाले दिनों में भारत को निकट भविष्य में सुखद रेल यात्रा का आनंद उठाने का सुअवसर मिलने लगेगा। रेलवे में यदि सभी सुरक्षा उपायों को एक साथ लागू कर दिया जाए तो उसकी क्षमता की मजबूरी, कम घनत्व रेल नेटवर्क और बहुद्देशीय आधुनिकीकरण की समस्या को दूर कर रेलवे की सेहत को बहुत हद तक सुधारने में सफलता मिलने में देर नहीं लगेगी।
अंग्रेजी से अनुवाद: शशिकान्त सुशांत, पत्रकार
भारत
रेलवे की मजबूत सुरक्षा-संरक्षा : लागू हो रेलवे कर्मियों पर दायित्व निर्वहन कानून
एम.वाई. सिद्दीकी - 2015-08-15 14:54
भारतीय रेलवे में सुरक्षा और संरक्षा का सवाल तब ही उठता है जब कहीं न कहीं रेल दुर्घटना होती है, जब सैकड़ों लोगों की जान और लाखों की संपत्ति का नुकसान हो चुका होता है। इस संदर्भ में यह कहना महत्वपूर्ण है कि 2009-10 से 2013-14 तक के पिछले पांच वर्षों के दौरान जितनी भी रेल दुर्घटनाएं हुई हैं वह या तो रेल के बेपटरी होने से संबंधित है या फिर लेवल क्रॉसिंग पर दुर्घटना होने काक मामले होते हैं। इससे यह प्रमाणित होता है कि 80 प्रतिशत से ज्यादा रेल दुर्घटनाएं रेलवे कर्मियों की मानवीय भल या लापरवाही के कारण होती हैं। इन पांच वर्षों के आंकड़ों में सुखद समाचार यही है प्रति 10 लाख किलोमीटर पर प्रति 10 लाख यात्रियों की मौत का ग्राफ घटा है।