ताजा मसला केरल हाई कोर्ट के दो फैसलों से संबंधित है। एक फैसले में हाई कोर्ट ने हाई कोर्ट ने नये पंचायतों के गठन पर रोक लगा दी थी। दूसरे फैसले में कोर्ट ने तिरुअनंतपुरम और कोझिकोडे नगर निगमों को दो भागों में बांटने के फैसले पर रोक लगा दी थी। ये दोनों फैसले 10 दिनों के अंदर ही आए थे।

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग कोर्ट के फैसले से खुश नहीं थी और वह चाहती थी कि प्रदेश सरकार उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट मंे अपील दायर करे। चांडी सरकार को उसकी मांग माननी पड़ी और उन दोनों फैसलों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट मं अपील दायर करने का निर्णय लेना पड़ा।

हाई कोर्ट के उन दोनों फैसलों से चांडी सरकार को भारी झटका लगा था। चांडी सरकार ने अपने सहयोगी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को खुश करने के लिए और उसके राजनैतिक हितों को साधने के लिए मालाबार क्षेत्र में पंचायतों का पुनर्सीमन कर दिया था और और दो नगर निगमों को भी दो दो भागों मंे बांट दिया था।

सरकार के उस फैसले का विपक्षी एलडीएफ विरोध कर रहा था। उसका आरोप था कि प्रदेश सरकार ने वे फैसले अपने सहयोगी मुस्लिम लीग के हितों को साधने के लिए लिए थे, ताकि उसे चुनावी लाभ मिल सके। गौरतलब हो कि आगामी अक्टूबर महीने में केरल में स्थानीय निकायों के चुनाव होने हैं।

हाई कोर्ट के फैसले ने विपक्ष द्वारा लगाए जा रहे उस आरोप को सही साबित कर दिया है।
सरकार इसलिए भी परेशान हो गई है, क्योंकि राज्य निर्वाचन आयोग ने कहा है कि चुनाव 2010 में हुए सीमांकन के आधार पर ही होगा और वह अपने तय समय पर ही होगा। संविधन के अनुसार आगामी नवंबर महीने तक नये निकायों का गठन हो जाना चाहिए। निर्वाचन आयोग ने कहा है कि यदि प्रदेश सरकार ने उसे अपने संवैधानिक दायित्वों का पालन करने से रोका, तो वह अदालत का दरवाजा खटखटाएगा।

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का कहना है कि वार्डों और पंचायतों के फिर से सीमांकन किए जाने से कांग्रेस को भी फायदा होगा। हालांकि सच्चाई यह है कि इससे कांग्रेस को कोई फायदा नहीं होगा। मालबार क्षेत्र में इसका फायदा सिर्फ इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को ही होगा। यही कारण है कि लीग प्रदेश सरकार पर हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का दबाव बना रही थी।

मुख्यमंत्री चांडी परस्पर विरोधी बातें कर रहे हैं। कभी वे कहते हैं कि चुनाव को स्थगित किए जाने का कोई सवाल ही नहीं है और कभी कहते हैं कि उनकी सरकार यथा स्थिति बनाए रखने में समर्थ नहीं है।

मुख्यमंत्री लीग का नाखुश नहीं रखना चाहते हैं और यही कारण है कि उन्होंनंे हाई कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ अपील करने का निर्णय किया है।

दूसरी तरफ विपक्ष का कहना है कि चांडी समय पर चुनाव करवाने के प्रति गंभीर नहीं हैं। यदि वह वास्तव में गंभीर होते, तो फिर हाई कोर्ट के फैसलों के खिलाफ अपील करने का निर्णय नहीं लेते। इसकी जगह वे लीग के दबाव का सामना करने की हिम्मत जुटाते। लेकिन मुख्यमंत्री के पास उस दबाव का सामना करने की हिम्मत नहीं है।

अपने फैसले में हाई कोर्ट ने सरकार द्वारा वोट बैंक राजनीति के लिए गांवों को विभाजित करने के सरकार के निर्णय को गलत बताया है। फैसले में कहा गया है कि गांव के दो हिस्सों को दो अलग अलग पंचायतों में नहीं डाला जा सकता। (संवाद)