मतदाताओं के पास बहुत विकल्प नहीं हैं। उन्हें खराब और ज्यादा खराब में से किसी एक को चुनना पड़ेगा।

प्रदेश में चार प्रमुख राजनैतिक ताकतें हैं। वे हैं- तृणमूल कांग्रेस, वाम मोर्चा, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी। इन राजनैतिक ताकतों में तृणमूल कांग्रेस बेहतर स्थिमि में दिखाई पड़ रही है।

तृणमूल कांग्रेस की प्रदेश सरकार के चार साल पूरे हो चुके हैं। इस बीच उसका प्रदर्शन कभी अच्छा तो कभी खराब रहा है। प्रदेश की छवि देश और दुनिया में खराब हुई है। बड़े निवेशक यहां निवेश नहीं करना चाहते। सबसे चिंता की बात यह है कि सरकार की नीतियां शहरी और ग्रामीण विभाजन को बढ़ावा दे रही हैं।

लेकिन सच यह भी है कि प्रदेश की अर्थव्यवस्था में थोड़ा सुधार भी हुआ है। विकास दर कुछ तेज हुई है। जब पूरे देश में मंदी का माहौल है, तो प्रदेश की अर्थव्यवस्था में तेजी कोई छोटी बात नहीं हो सकती। यह तथ्य सरकार के आलोचकों के मुह बंद करने का काम भी करता है।

इसका कारण यह है कि प्रदेश सरकार गरीब लोगों के सशक्तिकरण की कोशिश कर रही है। जमीनी स्तर पर प्रशासन काम कर रहा है। प्रदेश सरकार ने पहली बार कुछ ऐसी प्रचार सामग्रियों का प्रकाशन कराया है, जिनसे पता चलता है कि गांवों के विकास के लिए किन परियोजनाओं को पूरा किया गया है और किन परियोजनाओं पर अभी भी काम चल रहा है।

बर्दमान जिले के बारे में बताया गया है कि वहां 114 परियोजनाओं पर काम हुए और उनमें 22 लाख रुपये से 230 करोड़ रुपये तक के निवेश हुए। पूरी या आंशिक तौर पर पूरा की गई 90 परियोजनाओं का उसमें उल्लेख किया गया है।

इसमें कोई शक नहीं कि इन योजनाओं से गांवों और ग्रामीणों को फायदा होता है। वहां के लोगों के जीवन का स्तर सुधरता है। इसमें दिलचस्प बात यह है कि इन परियोजनाओं के पैसा ज्यादातर केन्द्र सरकार की तरफ से ही आया है। इसके बावजूद इन परियोजनाओं का लाभ तृणमूल कांग्रेस को ही मिलेगा। भारतीय जनता पार्टी के पास संगठन का अभाव है और इसके कारण वह लोगों को यह बताने में समर्थ नहीं है कि उन परियोजनाओं के लिए श्रेय भाजपा की केन्द्र सरकार को मिलना चाहिए।

बर्दमान स्थित पत्रकार तपन घोस का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस में हमेशा की तरह गुटबाजी हो रही है और उनके कार्यकत्र्ताओं के बीच आपसी मारपीट की घटनाएं भी आम हैं। उनके बीच होने वाली हिंसा की घटनाएं मीडिया में भी आती रहती हैं। लेकिन इसके बावजूद तृणमूल के प्रति लोगों का समर्थनभाव कम नहीं हुआ है। इसका कारण यह है कि 2007 से 2012 तक वाम मोर्चा की सरकार के दौरान यहां विकास के काम नहीं हुए थे। उस समय भ्रष्टाचार भी ज्यादा था। यही कारण है कि तृणमूल कांग्रेस की आपसी गुटबाजी का लाभ भी वाम मोर्चा उठाने की स्थिति में नहीं दिखता। जहां तक भारतीय जनता पार्टी की बात है, तो वह अभी भी संगठनात्मक दृष्टि से बहुत कमजोर है। कांग्रेस की स्थिति भी लगातार बदतर बनी हुई है।

तृणमूल सरकार बर्दमान की तर्ज पर ही प्रदेश के अन्य जिलों के लिए भी प्रचार सामग्री तैयार कर रही है। उनसे पता चलता है कि तृणमूल कांग्रेस ने किस तरह अपना ग्रामीण आधार मजबूत कर लिया है। 34 साल के अपने कार्यकाल में वाम मोर्चा सरकार ने कभी भी इस तरह की प्रचार सामग्री का प्रकाशन नहीं किया था।

राज्य में 294 विधानसभा क्षेत्र है, जिनमें 200 तो ग्रामीण क्षेत्र हैं। वहां तृणमूल कांग्रस अपने विरोधियों पर बहुत भारी पड़ने वाली है। (संवाद)