उनका यह आंदोलन तेज ही नहीं हो रहा है, बल्कि लगातार मजबूत भी होता जा रहा है। अब तो तीन पूर्व सैनिक दिल्ली के जंतर मंतर पर आमरण अनशन पर भी बैठ गए हैं। उनके साथ अन्य पूर्व सैनिक भी भारी संख्या में वहां मौजूद हैं और समान पद समान पेशन की मांग कर रहे हैं।
इस आंदोलन का हमारे सैनिकों पर भी बुरा असर हो सकता है। इससे चिंतित होकर 10 पूर्व सेना अध्यक्षों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक पत्र लिखा है और उनसे मांग की है िकवे इस मामले में जल्द से जल्द हस्तक्षेप करें और पूर्व सैनिकों के इस आंदोलन को लंबा खींचने नहीं दें।

2008 से ही पूर्व सैनिक अपनी इस मांग पर अड़े हुए हैं। सभी सरकारों को इस बारे में जानकारी है। 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले भारतीय जनता पार्टी ने इस मांग को पूरा करने का वायदा किया था। इसके अलावा उसने दो अन्य वायदे भी किए थे। एक वायदा वेटरन आयोग बनाने का था, तो दूसरा वायदा दिल्ली में युद्ध स्मारक बनाए जाने का था। इन दोनों वायदों को तो सरकार भूल ही चुकी है और समान पद समान पेशन के अपने वायदे को याद करते हुए भी पूरा नहीं कर पा रही है।

हमारे देश में 20 लाख पूर्व सैनिक हैं। वे सभी समान पद से रिटायर हुए सैनिकों के लिए समान पेशन की मांग कर रहे हैं। वे बहुत दिनों से अपनी इस मांग पर जोर दे रहे हैं। 2009 में 300 पूर्व सैनिकों ने राष्ट्रपति भवन तक इस मांग को लेकर मार्च किया और युद्ध में भाग लेने के लिए मिल अपने पदकों को भी वापस कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने भी उसी साल सरकार को आदेश दिया कि वह इस मांग को पूरा करे। एक संसदीय स्थायी समति और राज्य सभा की एक समिति ने उनकी मांग के पक्ष में अपनी अनुशंसाएं दीं। लेकिन यूपीए सरकार टाल मटोल करती रही। जब 2014 का लोकसभा चुनाव नजदीक आया, तो यूपीए सरकार ने उनकी मांग मानने का फैसला कर लिया और 2014 के बजट में उनके लिए 500 करोड़ रुपये की राशि का प्रावधान भी कर डाला। कहते हैं कि यूपीए सरकार ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के हस्तक्षेप के बाद ही इस मांग को स्वीकार किया था।

बाद में अपने बजट में अरुण जेटली ने भी इस योजना को अमल में लाने के लिए 1000 करोड़ रुपये की रकम का प्रावधान किया, लेकिन वह राशि खर्च नहीं की गई, क्यांेंकि योजना पर अमल ही नहीं किया गया। इस साल के लिए तैयार किए गए बजट में उस योजना के लिए किसी राशि का प्रावधान ही नहीं किया गया।

अपनी सरकार के एक साल पूरा होने के उपलक्ष्य में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मथुरा में एक रैली को संबोधित करने वाले थे, तो उम्मीद की जा रही थी कि वे उसमे कुछ घोषणा करेंगे। लेकिन उसमें वैसा कुछ हुआ नहीं। पिछले 15 अगस्त को लालकिला से दिए गए अपने भाषण में भी मोदी जी ने जोरशोर से उस योजना की वकालत की, लेकिन उस पर अमल करने की बात को वे टाल गए। इसके कारण पूर्व सैनिकों में निराशा छा गई है और वे गुस्से में हैं। इसके कारण उनका आंदोलन और भी तेज हो रहा है और अब तो तीन पूर्व सैनिक आमरण अनशन पर भी बैठ गए हैं। उन्हें लग रहा है कि सरकार समान पद समान पेंशन की परिभाषा को ही बदलने का विचार रखती है।

आखिर समस्या कहां आ रही है? सबसे बड़ा कारण पेंशन की अतिरिक्त राशि जुटाने का है। रक्षा मंत्रालय के अनुसार इसके लिए 82 अरब रुपये से भी ज्यादा राशि की जरूरत है और वित्त मंत्रालय इतनी राशि का प्रबंध करने के लिए तैयार नहीं है। इसके अलावा सरकार को लगता है कि यदि पूर्व सैनिकों को समान पद समान पेशन दिया गया, तो इसी तरह की मांग असैनिक कर्मचारियों की ओर भी आएगा और अद्र्घसैनिक बल भी इसी तरह की मांग करेंगे। पर सवाल उठता है कि सरकार आखिर कबतक इस मसले को लटकाकर रखेगी। इस तरह की नीति अपनाने से पूर्व सैनिकों ही नहीं, बल्कि सैनिकों में भी रोष पैदा हो सकता है, जिससे बचा जाना चाहिए। (संवाद)