इन आरोपों के कारण संसद का मानसून सत्र बाधित रहा और लगभग पूरे विपक्ष ने सरकार के ऊपर जबर्दस्त हमला बोला। वे हमले अभी भी जारी हैं। बिहार चुनाव के ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी के लिए भ्रष्टाचार के आरोप मुसीबत का कारण बन सकते थे। खुद भारतीय जनता पार्टी की लोकसभा में जीत का एक बड़ा कारण, संभवतः सबसे बड़ा कारण भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना के नेतृत्व में चला एक बड़ा आंदोलन था। उस आंदोलन ने कांग्रेस और उसके सहयोगियों की चूलें हिला दी थीं। उसका फायदा भारतीय जनता पार्टी को अपने आप मिल गया था। अब भाजपा खुद भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रही है। जाहिर है बिहार विधानसभा चुनाव में यदि भ्रष्टाचार मुद्दा बने, तो इसका निश्चय ही भाजपा को भारी नुकसान होगा।

गौरतलब है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव मंे भ्रष्टाचार के मसले पर भारतीय जनता पार्टी आम आदमी पार्टी के सामने कमजोर पड़ गई थी। अपने 49 दिनों के पहले कार्यकाल मंे अरविंद केजरीवाल सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कई कदम उठाए थे और उसका फायदा भी दिल्ली की जनता को हुआ था। जल माफिया और चालक लाइसेंस माफिया पर सबसे ज्यादा मार पड़ी थी। बिजली वितरण में हो रहे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए भी अरविंद केजरीवाल सरकार ने वितरण कंपनियों के खाते की आॅडिटिंग के आदेश जारी किए थे और भाजपा पर सबसे बड़ा हमला करते हुए उसके प्रदेश अध्यक्ष पर ही तेज चलने वाले मीटरों को दिल्ली के घरों में लगवाने का आरोप लगा दिया गया था। उन सबके कारण दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी लड़खड़ा गई और बहुत ही बड़ी शर्मनाक हार का सामना उसे दिल्ली में करना पड़ा था।

दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी उस समय हारी थी, जब उसके नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के कोई बड़े बड़े आरोप नहीं थे। उसके प्रदेश अध्यक्ष के खिलाफ एक आरोप आम आदमी पार्टी ने लगाए थे। इसके अलावा उस पर आरोप यह था कि केन्द्र में सत्ता संभालने के बाद जब राष्ट्रपति शासन के तहत दिल्ली में एक तरह से भाजपा की ही सरकार चल रही थी, तो उसने केजरीवाल सरकार द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू की गई मुहिम को जारी नहीं रखा था। मात्र इन सबके कारण ही भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में धराशाई हो गई थी।

तो इस समय तो भाजपा के नेताआंे के खिलाफ बहुत ही गंभीर आरोप लग रहे हैं। बिहार में यदि केजरीवाल जैसा कोई नेता होता तो इन आरोपों को चुनावी मुद्दा बनाकर भारतीय जनता पार्टी को भारी चुनावी नुकसान पहुंचा सकता था। पर वहां भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में नीतीश कुमार हैं और उनकी समस्या यह है कि वे बिहार विधानसभा चुनाव गठबंधन करके लड़ रहे हैं। गठबंधन मंे उनके साथ लालू यादव हैं, जो भ्रष्टाचार के मुकदमे में सजा पाकर जेल की हवा भी खा चुके हैं और इस समय जमानत पर चल रहे हैं।

लालू यादव का साथ नीतीश कुमार को भ्रष्टाचार के मसले को उठाने की इजाजत नहीं देता। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं पर तो सिर्फ आरोप ही लग रहे हैं। सच तो यह है कि उनके खिलाफ कोई मुकदमा किसी अदालत में चल नहीं रहा है, जबकि लालू यादव मुकदमे का सामना कर सजा भी पा चुके हैं। इसलिए यदि नीतीश कुमार भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं के भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाते हैं, तो उनके ऊपर खुद एक भ्रष्ट नेता के साथ गठबंधन करने का आरोप लगेगा। यही कारण है कि वह इस समय भ्रष्टाचार के मसले को उठाने की स्थिति में नहीं हैं।

लालू यादव अकेले नीतीश के लिए समस्या नहीं हैं। पिछले दिनों वे जनता दल परिवार के दलों को एक करने की कोशिश कर चुके हैं और सैद्धांतिक रूप से उन्हें एक भी करने का दावा कर चुके हैं, हालांकि व्यवहारिक रूप से अभी भी परिवार के सभी दलों का वजूद है और नीतीश खुद अपने पुराने दल से ही चुनाव लड़ रहे हैं। पर उन्होंने जनता दल परिवार का अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को मान लिया है। और उधर मुलायम सिंह यादव खुद सुषमा स्वराज के पक्ष में खड़े हैं। सुषमा का भ्रष्टाचार उन्हें भ्रष्टाचार नहीं लगता। वे भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ अपना मुलायम रुख दिखा रहे हैं। उनका यह दृष्टिकोण संसद में नीतीश की पार्टी के दृष्टिकोण से मेल नहीं खाता।

अब जब नीतीश के नेता मुलायम सिंह खुद भाजपा के नेताओं के भ्रष्टाचार को कोई भ्रष्टाचार नहीं मान रहे हैं, तो फिर नीतीश बिहार के चुनाव में उस मसले को कैसे भुना सकते हैं? यही कारण है कि नीतीश कुमार के लिए लालू और मुलायम का साथ फायदा के साथ साथ नुकसान का सबब भी बना हुआ है। हालांकि सच यह भी है कि मुलायम का साथ चुनाव तक रह पाएगा, इसे लेकर भी संदेह व्यक्त किया जा रहा है। लालू के साथ भी टिकट वितरण के मसले पर गठबंधन टूटने की कुछ लोग भविष्यवाणी कर रहे हैं। पता नहीं, यह टूटता है या नहीं टूटता है, लेकिन इतना तो तय है कि लालू का साथ रहने से नीतीश कुमार भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ उसके कुछ नेताओं के कथित भ्रष्टाचार को बिहार में मुद्दा बनाने की स्थिति में हैं ही नहीं। इसके कारण वे भ्रष्टाचार के खिलाफ एक औसत आदमी में व्याप्त असंतोष को भुनाने में विफल हो रहे हैं। (संवाद)