केरल हाई कोर्ट के एक सदस्यीय बेंच ने प्रदेश में 69 नये ग्राम पंचायतों के निर्माण पर रोक लगा दी थी। तिरुअनंतपुरम और कोझिकोडे के कुछ हिस्सों को काट कर राज्य सरकार द्वारा उन्हें विभाजित करने के फैसले को भी कोर्ट ने रद्द कर दिया था।
उस फैसले के मानने के बदले प्रदेश सरकार ने उसके खिलाफ दो सदस्यीय बेंच में अपील कर डाली थी। उसकी वह अपील भी खारिज हो गई है। उसके बाद कांग्रेस के नेता बहुत ही परेशान हो गए हैं और अनाप शनाप बयान देने लगे हैं, जो न्यायपालिका के खिलाफ अवमानना के रूप में भी देखा जा सकता है।
न्यायपालिका और जजो के खिलाफ बोलने वाले कांग्रेसी नेताओं में खुद मुख्यमंत्री चांडी भी शामिल हैं। वे आरोप लगा रहे हैं कि फैसला देते समय जज राजनैतिक भावनाओं से प्रेरित थे। मुख्यमंत्री के बेहद करीबी माने जाने वाले मंत्री के सी जोसफ तो बेहद तल्ख टिप्पणी कर कर रहे हैं।
गौरतलब हो कि पहले भी कांग्रेस के नेता अदालत द्वारा अपने मनमाफिक फैसले नहीे आने से जजों के खिलाफ टिप्पणियां करते रहे हैं। पामोलिन घोटाले के मुकदमे में जब फैसला आया था, तब भी उन्होंने वैसा ही किया था और अब जब बार घूसखोरी मामले में कोई विपरीत फैसला आता है, तब भी वे उसी तरह की टिप्पणियां किया करते हैं।
उनकी टिप्पणियों से जाहिर हो जाता हो जाता है कि न्यायपालिका के प्रति उनमें सम्मान नहीं है।
कांग्रेस और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के नेताओं की हताशा को समझा जा सकता है। यदि अदालत के फैसले का पालन किया गया, तो मुस्लिम लीग का हित मारा जाएगा। मुस्लिम लीग इस फैसले को लेकर कुछ ज्यादा ही दुखी है और उसके दबाव में कांग्रेस को भी वैसा ही रुख अपनाना पड़ रहा है।
दरअसल प्रदेश सरकार ने नया पंचायत बनाते समय अनेक गांवों को ही दो पंचायतों में डाल दिया। यानी गांव का एक हिस्सा एक पंचायत में तो दूसरा हिस्सा दूसरे पंचायत में। ऐसा मुस्लिम लीग को फायदा पहुंचाने के लिए किया गया, जो सम्प्रदाय के आधार पर गांव को दो अलग अलग पंचायतों में विभाजित करना चाहती है। अदालत का फैसला था कि किसी गांव को दो पंचायतों में डालना पंचायती कानून का उल्लंघन है, जो किसी गांव को ही किसी ग्राम पंचायत की ईकाई मानता है, उसके हिस्से को नहीं।
उसी तरह दो नगरनिगमों को भी मुस्लिम लीग के वोट बैंक का ख्याल करते हुए बांट दिया गया। इसे भी हाई कोर्ट ने रद्द कर दिया और वह चाहता है कि स्थानिय निकायों के चुनाव संविधानसम्मत तरीके से अपनी नियत अवधि की सीमा में ही करा दिया जाय।
कांग्रेस के नेता भी यही कहते हैं कि स्थानीय निकायों के चुनाव समय पर ही होंगे, लेकिन वे ठीक इसका उलटा कर रहे हैं। चुनाव को विलंबित करने के लिए उन्होंने एक सदस्यीय बेंच के फैसले को दो सदस्यीय बेंच में चुनौती दे डाली और उससे मांग की कि चुनाव पर रोक लगा दी जाय। पर चुनाव पर रोक लगाने की उसकी मांग को कोर्ट ने ठुकरा दिया।
अब प्रदेश चुनाव आयोग चुनाव करवाना चाहता है, लेकिन राज्य सरकार उसे सहयोग नहीं कर रही। उल्टे सरकार के लोग चुनाव आयुक्त के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं और उन्हें सीपीएम का पूर्व सदस्य तक बता रहे हैं। (संवाद)
भारत: केरल
निर्वाचन आयोग के साथ चांडी सरकार का टकराव जारी
मुस्लिम लीग के दबाव में यूडीएफ झुका
पी श्रीकुमारन - 2015-08-27 13:18
तिरुअनंतपुरमः कांग्रेस के नेतृत्व वाला सत्ताधारी यूडीएफ बार फिर अपने एक घटक इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के दबाव में आ गया है। इसके कारण वह न्यायपालिका के प्रति अपने आदरभाव को भी भूल रहा है और राज्य निर्वाचन आयोग जैसे संवैधानिक निकाय की भी बेइज्जती कर रहा है।