दिल्ली के पिछले विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का समर्थन किया था। समर्थन के कारण उनके दल ने अपने उम्मीदवार नहीं खड़े किए थे। बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने बिहार में नीतीश के समर्थन के संकेत देने शुरू कर दिए थे।

एक समय तो कयास यह भी लगाया जा रहा था कि 30 अगस्त को पटना में होने वाली स्वाभिमान रैली में अरविंद केजरीवाल भी शिरकत करेंगे। नीतीश कुमार के पक्ष में बयानबाजी कर रहे अरविंद केजरीवाल के बारे में इस तरह की बातें नीतीश के दल के लोग भी उड़ा रहे थे। हालांकि कुछ राजनैतिक पर्यवेक्षकों को नीतीश समर्थकों के उस दावे में दम नहीं लग रहा था। इसका कारण यह था कि उस रैली में सोनिया और राहुल में से किसी एक के शामिल होने की संभावना थी और लालू भी उसे संबोधित करने वाले थे और भ्रष्टाचार के आंदोलन की उपज अरविंद केजरीवाल से यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वे कांग्रेस के किसी नेता और लालू यादव के साथ मंच शेयर करें।

कांग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चलाकर ही केजरीवाल अपने वर्तमान राजनैतिक मुकाम पर पहुंचे हैं। वे कांग्रेस के साथ अपने आपको नहीं दिखाना चाहेंगे। लालू यादव तो भ्रष्टाचार के मामले में दोषी होकर जेल की सजा भी पा चुके हैं। फिलहाल जमानत पर होने के कारण वे जेल से बाहर हैं।

कांग्रेस और लालू का साथ होने के बावजूद केजरीवाल नीतीश कुमार का साथ देने को तैयार थे। वे उनके पक्ष में बयानबाजी भी कर रहे थे और पटना जाकर उन्होंने कुछ दिन पहले नीतीश के साथ मंच भी शेयर किया था। मंच शेयर कर वे 30 अगस्त की रैली में अपनी संभावित अनुपस्थिति की भरपाई कर रहे थे। लेकिन इसके बावजूद वे साफ साफ संकेत दे रहे थे कि चुनाव अभियान के दौरान वे भाजपा को हराने के लिए नीतीश कुमार के पक्ष मे ंप्रचार करेंगे।

लेकिन 30 अगस्त की रैली में जिस तरह लालू यादव ने जाति का कार्ड खेला, उसके बाद तो केजरीवाल के लिए उस गठबंधन के साथ किसी भी तरह से जुड़ना मुश्किल हो गया। वे सजा पाए हुए लालू यादव का साथी होने के बावजूद नीतीश के पक्ष में प्रचार कर सकते थे, लेकिन लालू द्वारा बिहार विधानसभा चुनाव के अपर कास्ट और लोअर कास्ट की लड़ाई बनाने के बाद नीतीश से जुड़ना उनके लिए नामुमकिन हो गया था। इसके कारण उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश को समर्थन नहीं करने का फैसला कर लिया।

आम आदमी पार्टी के साथ साथ कांग्रेस नेताओं में भी लालू की जातिवादी राजनीति के लिए हलचल है। बिहार में कांग्रेस का अभी भी अगड़ी जातियों में थोड़ा जनाधार है। उसके अधिकांश बिहारी नेता अगड़ी जातियों के ही हैं। लालू द्वारा जाति की खुली राजनीति करने के कारण कांग्रेस का वहां जो कुछ भी थोड़ा आधार है, उसके समाप्त हो जाने की पूरी पूरी आशंका है। यही कारण है कि अब कांग्रेस के नेता भी बिहार चुनाव को लेकर अपनी रणनीति बदलने के लिए विचार विमर्श करने लग गए हैं। वे लालू के साथ अब दिखना शायद पसंद नहीं करें और उनकी राजनीति से अपने को अलग करने की घोषणा भी कर दें। (संवाद)