पार्टी को यह अहसास हो रहा है कि 2012 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद पार्टी का विस्तार रूक गया है। इसके कारण पार्टी का संगठन अपने आपको कमजोर स्थिति में पा रहा है।
2014 के लोकसभा चुनाव ने तो पार्टी को हिलाकर ही रख दिया। उस चुनाव में पार्टी को एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हो पाई थी, जबकि सभी सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए गए थे।
मायावती की रणनीति दलितों और अगड़ी जातियों के लोगों का गठजोड़ बनाने की रही है। लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में उसके समर्थक अगड़ी जातियों के लोग भाजपा के खेमे में चले गए। दलितों का एक वर्ग भी नरेन्द्र मोदी से आकर्षित होकर भाजपा के साथ हो चला।
अब बहुजन समाज पार्टी केा भाजपा का डर सता रहा है। यदि लोगों की नजर में भाजपा ही समाजवादी पार्टी की मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी के रूप में दिखाई पड़ी, तो बसपा का काम और भी कठिन हो जाएगा और फिर तब तो वह सत्ता पाने के मुकाबले से ही अपने को बाहर होता महसूस करने लगेगी।
यही कारण है कि अब मायावती अपनी पार्टी का कैडर बनाने के लिए बहुत ही गंभीर हो गई है। इसके द्वारा ही बसपा के समर्थक आधार को भाजपा की ओर खिसकने से रोका जा सकता है।
आजकमल मायावती अपने आपको जनता से काटकर ही रखती है। दलितों में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए भारतीय जनता पार्टी उनसे सीधे संपर्क स्थापित कर रही है। उसके नेता दलित बस्तियों में जाते हैं, जबकि मायावती अपने आपको उनसे दूर ही रखती है।
जब मायावती सत्ता में थी, तो वह दलित नेताओं तक से अपने को दूर रखती थीं। उनका अपनी पार्टी के नेताओं से भी सीधा संबंध मुश्किल से ही हो पाता था। आम दलितों का उनसे सीधा संपर्क होने का तो सवाल ही नहीं था।
अब मायावती को महसूस हो रहा है कि यदि पार्टी के कैडर को तैयार नहीं किया गया, तो 2017 का विधानसभा चुनाव लड़ना उनके लिए मुश्किल हो जाएगा।
बसपा के संस्थापक कांशीराम पार्टी कैडर को प्रशिक्षित करने और एक अच्छी टीम बनाने पर बहुत जोर देते थे। लेकिन उनकी मौत के बाद यह काम रूक गया। मायावती का जोर जातीय समीकरण बनाने पर ज्यादा हो गया।
जब मायावती सत्ता में आई, तो उन्होंने अगड़ी जातियों के लोगों को ज्यादा तवज्जो देना शुरू कर दिया। अगड़ी जातियों में भी ब्राह्मणों पर उन्होंने ज्यादा जोर दिया। सतीश चन्द्र मिश्र बहुजन समाज पार्टी के उनके बाद सबसे ज्यादा शक्तिशाली नेता बन गए। उनके परिवार के 40 सदस्यों को उन्होंने सत्ता के पदों पर बैठा दिया।
उसके कारण भी दलित मतदाता मायावती ने नाराज हो गए। अब उन्हें मनाने के लिए मायावती ने कैडर निर्माण पर जोर देना शुरू कर दिया है। (संवाद)
अब कैडर तैयारी पर नजर है मायावती की
प्रदेश में फिर से केन्द्रीय भूमिका में आने की कोशिश
प्रदीप कपूर - 2015-09-04 11:01
लखनऊः मायावती मिशन 2017 के लिए शुरू से ही गंभीर रही है, पर उसके नजदीक आने के साथ ही बसपा सुप्रीमो की गंभीरता बढ़ती जा रही है। अब उस चुनाव मे जीतकर अपनी सरकार बनाने के लिए अपनी पार्टी का कैडर बनाने की योजना पर काम कर रही है।