अमेरिकी दस्तावेज से इन प्रस्तावित यात्राओं का विस्तार से पता चलता है। 1965 में हुए भारत और पाकिस्तान युद्ध को लेकर जब आज बहुत उत्तेजना का माहौल है, तो उन दस्तावेजों को देखना भी दिलचस्प हो जाता है।
लाल बहादुर शास्त्री जून 1964 में भारत के प्रधानमंत्री बने। उसके तुरंत बाद ही अमेरिकी राष्ट्रपति ने उन्हें अपने देश में आने के लिए आमंत्रित किया। शास्त्रीजी ने उस आमंत्रण को स्वीकार भी कर लिया। शास्त्रीजी चाहते थे कि वे अक्टूबर 1965 में अमेरिकी यात्रा पर जाएं, पर अमेरिकी राष्ट्रपति जाॅनसन ने जून 1965 का समय तय किया। उसी समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान भी अमेरिका की यात्रा पर जाने वाले थे। लेकिन एकाएक अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत और पाकिस्तान के सरकार प्रमुखों की यात्राएं स्थगित करवा दीं। भारत के अमेररिकी दूतावास को अमेरिकी विदेश मंत्री ने बताया कि राष्ट्रपति जाॅनसन दक्षिण पश्चिम एशिया और कुछ विधायी कार्यो के कारण व्यस्त हैं, इसलिए केन्यत्ता, अयूब और शास्त्री के अमेरिकी यात्राएं रद्द की जाती हैं। जाॅनसन ने शास्त्री जी को भी एक विनम्र पत्र लिखाए जिसमें यात्रा को स्थगित करने के कारणों की जानकारी दी गई थी।
उस समय भारत में अमेरिका के राजदूत चेस्टर बावल्स थे। उन्हें वह पत्र उस समय मिला, जब वे पाकिस्तान रेडियो के एक बुलेटिन के लिए उन यात्राओं की घोषणा कर चुके थे। उन्होंने तुरंत वाशिंगटन फोन किया और पत्र में लिखी बातों की पुष्टि करनी चाहिए। उन्हें बताया गया कि पत्र में जो कहा गया है, वही सच है। उसी रात वे प्रधानमंत्री शास्त्री से मिले। अमेरिका द्वारा यात्रा स्थगित किए जाने के कारण शास्त्रीजी बहुत ही दुखी थे और नाराज भी। बावल्स कहते हैं कि यदि उन्हें स्थगन के मामले को समय रहते बताया जाता, तो वे शास्त्रीजी की नाराजगी दूर कर सकते थे और उन्हें कह देते कि चूंकि वे खुद अक्टूबर महीने में अमेरिका आना चाहते थेे, इसलिए उन्होंने अपनी तरफ से कोशिश करके इस यात्रा को स्थगित करवाया है, ताकि आपके द्वारा बताए गए समय पर यात्रा हो। लेकिन भारत के अमेरिकी राजदूत के पास सूचना आने के पहले ही शास्त्री जी को पाकिस्तान की तरफ से वह खबर मिल चुकी थी।
बाद में बावल्स ने शास्त्रीजी और उनकी पत्नी को अमेरिकी यात्रा के लिए किसी तरह तैयार करवाया और फिर अमेरिका की ओर से यात्रा का प्रस्ताव आया। बावल्स चाहते थे कि गलतफहमियों को दूर करने के लिए शास्त्रीजी की अमेरिकी यात्रा जरूरी थी। शास्त्रीजी ने बावल्स से कहा था कि वे अयूब खान के पहले ही अमेरिका की यात्रा पर जाना चाहेंगे। बावल्स का मानना था कि शास्त्रीजी की नाराजगी का कारण यह था कि उन्हें और पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान को अमेरिका एक आॅख से देख रहा था। शास्त्रीजी की इच्छा के अनुसार बावल्स ने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री की अमेरिकी यात्रा पाकिस्तान के राष्ट्रपति की अमेरिकी यात्रा से पहले हो।
नवंबर में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम हो गया था। उसके बाद शास्त्रीजी की पाकिस्तान यात्रा की तैयारी जोर शोर से होने लगी। अमेरिकी शास्त्रीजी द्वारा युद्ध को समझदारी से हैंडिल करने के लिए उनका प्रशंसक बन गया था। बावल्स ने अमेरिका के विदेश विभाग को रिपोर्ट करते हुए कहा था कि हम किसी पागल आदमी से बात नहीं करने जा रहे हैं, जो सिर्फ भावनात्मक बातें करता हो।
अमेरिका ने शास्त्री जी की यात्रा तय करते समय ध्यान रखा कि पहले ताशकंद शिखर सम्मेलन हो जाय। वह सोवियत संघ को भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता करने की इजाजत तो दे रहा था, लेकिन ताशकंद में क्या होने वाला है, इस पर नजर टिकाए हुए था। (संवाद)
शास्त्री की वाशिंगटन यात्रा को दो बार टाला गया
प्रदेश में भारत पाक संबंध द्विपक्षीय एजेंडे में सबसे ऊपर था
कल्याणी शंकर - 2015-09-04 11:04
ताशकंद समझौते के बाद तब के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की वाशिंगटन यात्रा तय की गई थी, पर यात्रा हो न सकी। सच कहा जाय तो उनके प्रधानमंत्रित्वकाल में वाशिंगटन की यात्रा दो बार हुई थी। पहली यात्रा जून 1965 के लिए तय की गई थी। पर उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति जाॅनसन ने उसे स्थगित कर दिया। वह शास्त्रीजी के लिए बहुत ही निराशाजनक था। दूसरी यात्रा 31 जनवरी, 1966 से 5 फरवरी, 1966 के लिए तय हुई थी। यदि शास्त्री जी जिंदा रहते, तो वे एक विजयी राजनेता के रूप में वाशिंगटन की यात्रा करते।