इस समय राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को मोदी सरकार से नाराज दिखना केन्द्र के लिए घातक साबित हो सकता था।

आखिर संघ मोदी सरकार से खुश क्यों है? क्या संघ के एजेंडे पर नरेन्द्र मोदी पूरी तरह खरे उतर रहे हैं? इसमें सच्चाई नहीं है और संघ के संतुष्ट होने का कारण यही हो सकता है कि अब उसने नरेन्द्र मोदी से अपनी उम्मीदें कम कर दी होगी।

जब अटल बिहारी वाजपेयी केन्द्र में प्रधानमंत्री थे, तो उस समय संघ की ओर से उनपर लगातार दबाव पड़ता रहता था कि वे राम मन्दिर के निर्माण के लिए कुछ करें। उस समय अयोध्या से हटकर एक जगह शिल्पकारों और मूर्तिकारों ने अपना काम भी शुरू कर दिया था। खंभे तैयार हो रहे थे। उन पर पालिश का काम भी होने लगा था। मूर्तियां तैयार की जाने लगी थीं और भवन निमार्ण के लिए जो काम किया जाता है, वह सबकुछ किया जा रहा था।

वाजपेयी सरकार के कार्यकाल में ही कनाडा की एक टीम को यह पता करने का काम सौंपा गया था कि बाबरी मस्जिद के स्थल के नीचे कोई पुराना भवन था या नहीं। टीम ने पता करके बताया कि उसके नीचे पुराने भवन के अवशेष हैं। वे पुराने भवन किस तरह के थे, इसके बारे में तो नहीं बताया गया और कहा गया कि उसे पता लगाने के लिए और भी अध्ययन की जरूरत है। यह सब वाजपेयी सरकार ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को खुश और शांत रखने के लिए किया।

वाजपेयी सरकार के वे प्रयास कहीं नहीं पहुंचे। उसके आगे इसलिए भी कोई काम नहीं हो सका, क्योंकि 2004 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की हार हो गई और भाजपा सरकार से बाहर हो गई।

इस समय मोदी सरकार का ध्यान बड़े बदलाव लाने का है। उसका वायदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उस सम्मेलन के दौरान दिए गए अपने 15 मिनट के भाषण में किया। अब हिन्दुत्व के एजंेडे पर मन्दिर पहली प्राथमिकताओं में शामिल नहीं है। वाजपेयी ने सत्ता में आने के साथ ही संघ परिवार के तीन मसलों को छोड़ दिया था। आज भी वही नीति पर मोदी सरकार चल रही है।

भारतीय जनता पार्टी द्वारा तीन मसलों को छोड़ दिए जाने के कारण ही वह 24 पार्टियों का मोर्चा बनाने में सफल हुई। उसके बाद ही धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देने वाली पार्टियां भी उसके साथ जुड़ीं।

अब जब भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर सत्ता में है, तो संघ ने अपनी वह जिद छोड़ दी है, जिसके कारण वह वाजपेयी सरकार पर लगातार दबाव बनाया करता था। यह अपने छोटे मोटे शौक को पूरा करके ही खुश है। मध्यप्रदेश के विद्यालयों में लंच में अंडा को समाप्त कर वह खुश है, तो महाराष्ट्र में गोमांस पर प्रतिबंध लगाकर उसकी बांछें खिली हुई हैं। इधर दिल्ली में औरंगजेब रोड का नाम बदलकर वह अपनी पीठ थपथपा रही है। (संवाद)