जाहिर है, देश के लोग यह चाहेंगे कि हमारा देश पूरी तरह से सुरक्षित रहे। खासकर पश्चिमी मोर्चे पर पाकिस्तान और उत्तरी मोर्चे पर चीन से वह अपने आपको सुरक्षित रखे। इस समय उत्तरी सीमा से कुछ ज्यादा ही खतरा है। सदियों से हम हिमालय को अपना रखवाला मानते रहे हैं और हम समझते रहे कि उधर से कोई भारत पर हमला नहीं कर सकता। लेकिन 1962 में हमारी वह मान्यता ध्वस्त हो गई। उस साल उसी दिशा से चीन ने हमपर हमला किया और हम अपनी सीमा की रक्षा नहीं कर सके।
उस हार के बाद हमने महसूस किया कि हमें उत्तरी सीमा की सुरक्षा के लिए भी गंभीरता से प्रयास करना होगा। वहां हमें सैनिकों की सही संख्या में तैनाती करनी होगी। वहां के इन्फ्रास्ट्रक्चर का भी हमें विकास करना होगा, ताकि जरूरत पड़ने पर हमारी सेना एक स्थान से दूसरे स्थान पर तेजी से जा सके। खासकर अरुणाचल प्रदेश को लेकर हमें सबसे ज्यादा सतर्क रहना होगा, ऐसा हमने महसूस किया।
लेकिन यह हमारा दुर्भाग्य है कि 1962 की हार से भी हमने सबक नहीं सीखी। उसके बाद चीन ने तो तिब्बत में अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर को काफी विकसित किया, लेकिन हम समस्या को हल्के ढंग से लेते रहे। भारत और चीन की रक्षा तैयारियों में लगातार अंतराल बढ़ता गया। उसकी तैयारियां लगातार बढ़ती रही और हम लगातार सोए रहे।
पिछले कुछ सालों से चीन लगातार आक्रामक रुख दिखा रहा है। जब तब उसकी सेना भारतीय क्षेत्र में प्रवेश कर जाती है और जब इच्छा होती है, चीन की तरफ से भारत के खिलाफ भड़काऊ बयान आने लगते हैं। इसके कारण मनमोहन सिंह सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में हिमालय की तरफ से आने वाले खतरो के बारे में सोचना शुरू कर दिया था। उसने एक माउंटेन स्ट्राइक काॅप्र्स के गठन का फैसला किया, जिसमें दो डिविजन होने थे। एक आर्मर्ड ब्रिगेड तैयार करने की योजना भी बनाई गई थी। उसमें 90 हजार जवानों को तैनात करने के बारे में सोचा गया था। उस पर कुल खर्च के लिए 64 करोड़ रुपये का अनुमान लगाया गया था। इसका मुख्यालय पश्चिम बगाल के पानगढ़ में बनाया जाना था। यह भी निर्णय किया गया था कि सीमा पर एक सड़क बनाई जाएगी और अरुणाचल प्रदेश में रेल की पटरियां बिछाई जाएंगी।
जब मोदी सरकार 2014 में सत्ता में आई, तो इससे उम्मीद की गई कि उत्तरी सीमा पर रक्षा तैयारियों की गति और भी तेज करेगी। लेकिन दुर्भाग्य से उलटा हुआ है। सत्ता में आने के साथ ही मोदी सरकार ने उस प्रोजेक्ट की फिर से समीक्षा करना शुरू कर दिया। उसके बाद उसने उस काॅप्र्स मंे जवानों की संख्या 90 हजार से घटकार 35 हजार की दी। इसका कोई कारण उसने अभी तक नहीं बताया है।
इस बीच रक्षा मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्थाई समिति ने कुछ चिंताजनक तस्वीर अपनी एक रिपोर्ट में पेश की है। उसने कहा है कि किसी टकराव की स्थिति में चीन अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर दो या तीन घंटे में अपनी सेना को ला सकता है, जबकि हमें वहां अपनी सेना लाने में एक दिन लग जाएगा। आखिर क्यों? तो इसका कारण बताते हुए कहा गया है कि चीन ने अपने क्षेत्र में सड़कों और रेल लाइनों का निर्माण कर डाला है, जबकि हमने वैसा अभी तक नहीं किया है। तवांग हमारे लिए आज बेहद संवेदनशील क्षेत्र बन गया है। वहां तो हम अपनी सेना को एक दिन में भी नहीं भेज सकते, जबकि चीन वहां भी दो से तीन घंटे में अपनी सेना भेज सकता है। (संवाद)
अरुणाचल प्रदेश में कमजोर इन्फ्रास्ट्रक्चर
चीन उसके पास रेल लाइन बिछा रहा है
बरुण दास गुप्ता - 2015-09-11 11:07
देश की सुरक्षा के लिए भारतीय करदाता हर साल बहुत बड़ी राशि देते रहते हैं। चालू वित्त वर्ष में रक्षा बजट 40 अरब डाॅलर का था, जो पिछले साल की अपेक्षा 11 फीसदी ज्यादा था। यह राशि चीन द्वारा प्रति वर्ष खर्च की जाने वाली 132 अरब डाॅलर की राशि की अपेक्षा बहुत कम है। चीन दुनिया का दूसरा सबसे ज्यादा रक्षा पर खर्च करने वाला देश है। इस मामले में पहले स्थान पर अमेरिका है।