क्या नेतृत्व परिवर्तन में कोई समस्या आ रही है? पार्टी आखिर टालमटोल क्यों कर रही है? आखिर राहुल के हाथ में कांग्रेस को देने का फैसला टाल क्यों दिया गया? क्या इसका कारण यह है कि पार्टी अभी मां की जगह बेटे को स्वीकार करने को तैयार नहीं है और वह बेहतर समय का इंतजार कर रही है? अथवा क्या राहुल गांधी खुद अभी पार्टी का अध्यक्ष नहीु बनना चाहते?
ब्दलाव करने में समस्या पैदा हो रही है। इसे साफ साफ देखा जा सकता है। सोनिया गांधी चाहती हैं कि राहुल कांग्रेस का नेतृत्व संभाल लें और जो कांग्रेस में जो ऊंचे पदों पर हैं, उन्हें भी अपना लें, लेकिन राहुल चाहते हैं कि पार्टी के पुराने सामंतों को हटाया जाए और उनकी जगह पर नये लोंगों को लाया जाय। कहने का मतलब है कि कांग्रेस के अंदर दो पीढ़ियो के बीच संघर्ष चल रहा है। आधिकारिक रूप से तकनीकी मामलों का हवाला दिया जाता है, लेकिन सच्चाई यही है कि पुरानी और नई पीढ़ी में छिड़ी जंग ही नेतृत्व के बदलाव को रोक रही है, हालांकि सभी वंशवाद को स्वीकार करने को तैयार हैं।
नेताओं की पुरानी पीढ़ी जो अपने अस्तित्व के लिए सोनिया गांधी पर निर्भर है, राहुल गांधी को उनकी शर्ताे पर कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभालते नहीं देखना चाहती और फिलहाल वह पीढ़ी राहुल गांधी की ताजपोशी को टालने में सफल हो गई है। दूसरा युवा गुट ’’ राहुल लाओ और काग्रेस बचाओ’’ का नारा लगा रहा है। वह राहुल गांधी को पार्टी का अध्यक्ष जल्द से जल्द बन जाते देखना चाहता है। लेकिन उस गुट को एक बार फिर निराशा हाथ लगी है। जाहिर है कि निहित स्वार्थो की फिलहाल जीत हुई है। चूंकि मां और बेटे के बीच में भावनात्मक लगाव है, इसलिए समय का निर्धारण वे दोनों मिलकर ही करेंगे।
इसके अलावा कांग्रेस के अंदर के लोग यह भी कह रहे हैं कि राहुल गांधी खुद भी इस समय अध्यक्ष बनने में झिझक रहे हैं। वे नहीं चाहते कि अपनी राजनैतिक सक्रियता के दिनों मंे ही सोनिया गांधी इस पद को छोड़ दें। उनका कहना है कि राहुल जिस किसी पद पर रहें, कांग्रेस के सुप्रीमो तो वही हैं। वह पार्टी के काम में दिलचस्पी ले रहे हैं। वे प्रदेश कांग्रेस कमिटियों, युवा कांग्रेस और एनएसयूआई के पदाधिकारियों के संपर्क में हैं और वे ही उन्हें दिशा निर्देश जारी करते रहते हैं। अनेक राज्यों में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल द्वारा ही मनोनित किए हुए हैं। वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को चुनौती देते रहते हैं। इसलिए यह कोई मायने नहीं रखता है कि राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष बनते हैं या उपाध्यक्ष बने रहते हैं।
वे यह भी कह रहे हैं कि राहुल गांधी इस समय केन्द्र सरकार के साथ टकराव की मुद्रा हैं। उनके पार्टी अध्यक्ष बनने के साथ ही पार्टी में भी उनके खिलाफ एक मोर्चा खुल सकता है और पार्टी ऐसे समय में नहीं चाहती के राहुल एक साथ दो मोर्चे पर टकराव का सामना करता दिखाई दें।
यह भी कहा जा रहा है कि वर्तमान राजनैतिक माहौल राहुल गांधी द्वारा पार्टी का नेतृत्व संभालने के लिए अनुकूल नहीं है। अभी बिहार में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं और वहां कांग्रेस का कुछ भी दांव पर नहीं लगा हुआ है। वह एक गठबंधन का हिस्सा है। यदि गठबंधन हारता है, तो उसका दोष राहुल गांधी पर आ सकता है कि अध्यक्ष के रूप में वे बिहार में गठबंधन का प्रदर्शन बेहतर कराने में नाकाम रहे।
अगले दो सालों में अनेक विधानसभाओं में चुनाव होने वाले हैं और लगभग उन सभी में कांग्रेस की हालत पतली है। पार्टी के प्रदर्शन उन लगभग उन सभी चुनावों मंे खराब होने वाले हैं। इसलिए पार्टी नहीं चाहती कि उनमें कांग्रेस के खराब प्रदर्शन का ठीकरा राहुल के सिर पर फूटे। इसके कारण भी कांग्रेस चाहती है कि राहुल गांधी इस समय संगठन का अध्यक्ष नहीं बनें। (संवाद)
कांग्रेस को अभी भी सोनिया का सहारा
बदलाव में हो रही है समस्या
कल्याणी शंकर - 2015-09-11 11:10
राहुल गांधी के छुट्टी से वापस आने के बाद चर्चा बहुत जोरों पर थी कि कांग्रेस की कमान उनके हाथ में आने वाली है। पर पिछले दिनों कांग्रेस की कार्यसमिति ने सोनिया गांधी को एक साल और पार्टी अध्यक्ष बनाए रखने का फैसला किया। इस फैसले ने राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने को लेकर चल रही अटकलबाजियों पर विराम लगा दिया है। इसका मतलब है कि कांग्रेसी नेता और सोनिया गांधी कांग्रेस में यथा स्थिति को बदलना नहीं चाहते और राहुल गांधी पर अभी बाजी लगाने को तैयार नहीं हैं।