संविधान को लागू करने को संविधान सभा के 90 फीसदी सदस्यों की सहमति प्राप्त हो चुकी है। नेपाल की महिला काॅकस की समन्वयक उषा काला राय ने इस संविधान को एक बड़ा प्रगतिशील कदम बताया है। उन्होंने कहा है कि यह नेपाल के लोगों के संघर्ष का परिणाम है और उनके बदलाव की इच्छा का मूर्त रूप है। संविधान सभा को एक ऐसा संविधान बनाने को कहा गया था, जो व्यवस्था में लोगों की भागीदारी को सुनिश्चित कर सकें। दावा किया जा रहा है कि दक्षिण एशिया के सभी देशों में यह सबसे ज्यादा लोकतांत्रिक संविधान है।

इस संविधान की एक विशेषता यह है कि यह विधायिका में महिलाओं की एक तिहाई भागीदारी को सुनिश्चित करने वाला है। दक्षिण एशिया के किसी भी अन्य देश में ऐसा नहीं है। संविधान में उन सबके लिए विशेष व्यवस्था की गई है, जिनके अधिकारों को कुचल कर रखा जा रहा था और जिसके कारण वे बहुत पिछड़े हुए थे। इसमें सबको समान अधिकार तो दिए ही गए हैं, पर जो पिछड़े हुए हैं, उन्हें कुछ विशेष अधिकार भी दिए गए हैं।

विधायिका में महिलाओं की 33 फीसदी भागीदारी से नेपाल के समाज में दूरगामी प्रभाव पड़ेंगे। इससे सभी प्रकार के भेदभाव को मिटाने का रास्ता साफ होगा। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो महिलाओं की भागीदारी मात्र 33 फीसदी रखे जाने से संतुष्ट नहीं है। महिलाओं की तादाद नेपाल की कुल आबादी का लगभग आधा है, इसलिए उन्हें लगता है कि 50 फीसदी महिलाओं की उपस्थिति विधायिका में सुनिश्चित की जानी चाहिए थी।

लेकिन कुछ ऐसे तत्व भी हैं, जो इस संविधान से संतुष्ट नहीं हैं। वे इस संविधान को उचित संविधान नहीं मानते। वे इसे गैरकानूनी भी बता रहे हैं। एक संपादकीय में इस संविधान का स्वागत करते हुए कुछ चेतावनियां भी दी गई हैं। उसका कहना है कि संविधान समाज के हाशिए पर चले गए लोगों के लिए कुछ खास प्रावधान नहीं कर पाया है और शक है कि वे इसके लागू होने पर मुख्यधारा में आ भी सकेंगे। संपादकीय में कहा गया है कि संविधान तो बहुत लंबा चैड़ा है और इसमें बातें भी बहुत लंबी लंबी की गई है, लेकिन इसकी सफलता नेताओं के राजनैतिक संकल्प पर निर्भर करती है। आगे कहा गया है कि 1990 के संविधान में भी हाशिए पर रह रहे लोगों के सशक्तीकरण की बातें की गई थीं, लेकिन हुआ क्या? यदि लोगों का सशक्तिकरण किया जाता और जो वंचित थे, उन्हें उनका अधिकार दिया जाता, तो फिर नेपाल में गृहयुद्ध होता ही नहीं।

यह डर वास्तविक है। सद्भावना पार्टी के अध्यक्ष राजेन्द्र महतो इस संविधान को एक वर्ग विशेष का संविधान बतो हैं। वे कहते हैं कि इसमंे खसों, कोइरालाओं और दहलों को ही प्राथमिकता दी गई है और यह संविधान उनका हित साधने के लिए ही बना है। इससे मधेसियों, थारुओं, दलितों और मूलवासियों के हित नहीं सधेंगे। लेकिन सद्भावना पार्टी संविधान निर्माण को अपने तरीके से प्रभावित नहीं कर पाई, क्योंकि इसके संविधान सभा में सिर्फ 7 सदस्य ही है और उनमें से सिर्फ एक ही जीतकर आए है, शेष 6 नामांकित सदस्य हैं।(संवाद)