लेकिन इस पर सर्वसहमति नहीं हो पाई है। संविधान सभा के 10 फीसदी सदस्यों ने इस संविधान का विरोध किया। विरोध करने वाले लोग मुख्य रूप से नेपाल के तराई क्षेत्र के लोग हैं, जिन्हें मधेशी के नाम से भी जाना जाता है। वहां थारू जनजाति के लोग भी रहते है। वे भी इस संविधान का विरोध कर रहे हैं। मधेशियों की पड़ोसी भारत के लोगो के साथ करीबी रिश्ता रहा है। उनकी भाषा और संस्कृति भारत के लोगों से मेल खाती है, लेकिन वह तराई के मूल वासी ही हैं। वे नये संविधान का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि उनके साथ भेदभाव किया गया है और आबादी के अनुपात में उन्हें सत्ता में भागीदारी करने से रोकने का प्रबंध वर्तमान संविधान में कर दिया गया है। इसके कारण वे इसे खारिज कर रहे हैं।

वैसे नेपाल का यह संविधान अनेक मामलों मंे सराहनीय है। यहां हिन्दू धर्म के लोगांे की संख्या बहुत ज्यादा है। राजशाही के काल में इसे हिन्दू राष्ट्र के रूप में मान्यता प्राप्त थी। इस बार भी कुछ लोग इसे हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की मांग कर रहे थे। लेकिन उनकी उस मांग को नकारते हुए संविधान निर्माताओं ने इसे धर्मनिरपेक्ष देश घोषित किया।

संविधान की दूसरी विशेषता इसका संघीय स्वरूप है। नेपाल विविधताओं का देश है, जिसमें लगभग 100 भाषाएं बोली जाती हैं और अनेक नस्लों के लोग यहां रहते हैं। यह विभिन्नताओं का देश है और उन्हंे सम्मान देने के लिए संघीय ढांचा जरूरी है। नेपाल में 7 प्रांत होंगे। यह एक गणतंत्र होगा।

इसलिए इस संविधान को एक अच्छा लोकतांत्रिक संविधान कहा जा सकता है, पर मधेशियों और थारू समुदाय के लोगों की चिंताओं को दूर करना भी जरूरी है। उनकी जनसंख्या देश की कुल जनसंख्या का 50 फीसदी या उससे भी ज्यादा है, भले ही वर्तमान संविधानसभा में उनकी मांग के समर्थकों की संख्या कम हो। उतनी बड़ी आबादी की आकांक्षाओं को नकारना गलत है।

मधेशियों का कहना है कि 2008 के अंतरिम संविधान में जो मुल व्यवस्था थी, उसे वापस ले लिया गया है, जिसके कारण उनके साथ न्याय नहीं हो पाएगा। वे संघीय व्यवस्था के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन उनका कहना है कि पूरे मधेश को एक प्रांत बनाया जाय, न कि उसके टुकड़े टुकडे किया जाय और उन टुकड़ों को पहाड़ी इलाकों से जोड़ दिया जाय। प्रत्येक राज्यों के लिए केन्द्रीय संसद में बराबर बराबर संख्या मंे प्रतिनिधित्व की व्यवस्था यह संविधान करता है। मधेशियों की मांग है कि प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों की संख्या उस राज्य की आबादी के आधार पर हो। यानी जिस राज्य में ज्यादा आबादी हो, वहां के ज्यादा प्रतिनिधि केन्द्रीय संसद मंे होने चाहिए। यह मांग जायज है। इस तरह की मांगों को शामिल करते हुए संविधान में बदलाव किए जाने की जरूरत है और संविधान का जो विरोध हो रहा है, उससे निजात पाए जाने की जरूरत है।

मधेशियों के अलावा महिलाओं के लिए भी संविधान के कुछ प्रावघान खटकने वाले हैं। संविधान में व्यवस्था की गई है कि गैरनेपाल से शादी करने वाली नेपाली महिलाओं के बच्चे अपने आप नेपाल के नागरिक नहीं माने जाएंगे। सिंगल महिलाओं के बच्चों को भी नेपाल की नागरिकता नहीं मिल पाएगी। जाहिर है, यह प्रावधान महिलाओं को दूसरे दर्जे का नागरिक बना देता है। इसमें भी बदलाव की जरूरत है। (संवाद)