लेकिन उसके बाद एकाएक राहुल के विदेश चले जाने के कारण अनेक लोगों की भौहें तन गई हैं। इस समय बिहार में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। यह चुनाव कांग्रेस के लिए भी चुनौतीपूर्ण है, हालांकि वहां उसके सिर्फ 41 उम्मीदवार ही चुनाव में हैं। वहां भारतीय जनता पार्टी को हराना मुख्य चुनौती है।

बिहार में कांग्रेस गुटबाजी की शिकार है। लेकिन वहां बेहतर प्रदर्शन करना कांग्रेस के लिए बहुत जरूरी है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सभी सीटो पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे, जिनमें मात्र 4 में ही उसकी जीत हुई थी। उसे एक अन्य सीट पिछले साल हुए विधानसभा के एक उपचुनाव में भी मिली थी। इस प्रकार निवर्तमान विधानसभा में कांग्रेस के 5 विधायक ही हैं। अब 41 उम्मीदवारों मंे से ज्यादा से ज्यादा की जीत दिलवाना कांग्रेस के सामने एक बड़ी चुनौती है।

बिहार ही नहीं, असम और बंगाल में भी कांग्रेस के सामने चुनौतियां आ रही हैं। वहां कांग्रेस के एक प्रमुख नेता हिम्मत बिस्वास सरमा ने पार्टी छोड़ दी है और वे भाजपा में चले गए हैं। वह कोई अकेला मामला नहीं है। कांग्रेस के अनेक लोग वहां पार्टी छोड़ चुके हैं और उनमें से ज्यादातर भाजपा मे शामिल हो रहे हैं।

पंजाब में भी गुटबाजी और असंतोष के कारण कांग्रेस की स्थिति बिगड़ती जा रही है। कैप्टन अमरीन्दर सिंह वहां बगावत कर रहे हैं। वे वहां एक नई पार्टी बनाने की धमकी दे रहे हैं। मध्यप्रदेश की हालत भी ठीक नहीं है। यदि बिहार में कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहा, तो अन्य प्रदेशों में भी कांग्रेस की स्थिति और बिगड़ सकती है और वहां भी पार्टी नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह के स्वर उभर सकते हैं।

अमरीन्दर सिंह और सरमा विद्रोह करने वाले लोगों की लंबी सूची में महज दो नाम हैं। तमिलनाडु में जी के वासन पार्टी विरोध करते हुए उसे छोड़ चुके हैं। उड़ीसा में गिरिधर गोमांग भी उसी रास्त पर जा चुके हैं। हरियाणा के चैधरी बीरेन्द्र सिंह तो बहुत पहले ही कांग्रेस छोड़ चुके हैं। वासन ने अपनी नयी पार्टी बना ली है और गिरिधर गमांग भाजपा में शामिल हो चुके हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में करारी हार खाने के बाद कांग्रेस से बाहर जाने वाले नेताओं का तांता लगा हुआ है। कुछ तो भाजपा में शामिल हो गए हैं और कुछ ने अपनी पार्टी बनाने का फैसला किया है। इसलिए यदि कांग्रेस को देश की राजनीति में वापसी करनी है, तो उसे आत्ममंथन करना होगा।

कांग्रेस की दुर्गति का कारण प्रदेश के नेताओं को केन्द्रीय आलाकमान द्वारा एक के बाद एक हाशिए पर डाल दिया जाना है। केन्द्र स्तर पर भी पार्टी के सामने नेतृत्व का संकट आ खड़ा हुआ है। अब नेहरू- गांधी परिवार का जादू लोगों के ऊपर नहीं चल पा रहा है। अब कांग्रेस पहले वाली कांग्रेस रही भी नहीं। इसमें प्रतिबद्ध लोग अब रहे नहीं और यहां अब अवसरवादियों की भरमार हो गई है। पार्टी अब युवाओं को आकर्षित नहीं कर पा रही है।

ऐसी स्थिति में राहुल गांधी का बार बार छुट्टी मनाने के लिए विदेश चला जाना पार्टी के लिए निश्चय ही दुर्भाग्य की बात है। उन्हें ज्यादा से जयादा समय पार्टी पर देना चाहिए, लेकिन वे इस मायने में गंभीर नहीं दिखाई पड़ते हैं। (संवाद)