गृह मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि 14वें वित आयोग की सिफारिशों के आलोक में, और अलग से आवंटन नहीं मिलने होने के कारण केंद्र सरकार के लिए यह मुश्किल है कि वह राज्य सरकारों को जेल सुधार एंव आधुनिकीकरण के लिए अलग से पैसा मुहैया करा सके।

पहले चरण के जेल सुधार कार्यक्रम के तहत कुल 1800 करोड़ रूपये आवंटित किए गए थे जिसके समाप्ति की अंतिम तिथि 31 मार्च 2009 थी। गृह मंत्रालय का प्रयास है कि वह राज्यों को प्रथम चरण के जेल सुधार कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित कर सके। जब तक राज्य सरकारों को अलग से जेल सुधार कार्यक्रम के लिए बजट आवंटित नहीं होता संभावना यही है कि नकारा राज्य सरकारें जेल सुधार व आधुनिकीकरण कार्यक्रम को रद्दी की टोकरी में डाल देंगी।

भारत के संविधान में जहां लोकतांत्रिक शासन की परिकल्पना की गई है। संविधान के सातवीं अनुसूची की क्रम संख्या 11 में स्पष्ट उल्लेख है कि जेल राज्य सूची में रहेंगे और इसके प्रशासन की जिम्मेदारी भी राज्योंध्केंद्र शासित प्रदेशों की होगी।
जहां तक राज्य व केंद्र शासित प्रदेशों की प्राथमिकताएं जनहित और लोकहित से दूर होती जा रही हैं और जेल सुधार जैसे कार्यक्रम तो उनकी सूची में भी शामिल नहीं है। इसका कारण यह है कि गृह मंत्रालय द्वारा कठोर आदेश जारी नहीं किए जाने के कारण राज्य सरकारें जेल सुधार जैसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम को खटाई में डाल दे रही हैं। एक और बड़ा कारण देश में एक स्थाई मानक का नहीं होना भी है जो लोगों को उसके अधिकार से वंचित करता है। कुल मिलाकर देश की जेलों की दुर्दशा वैसे ही बनी रहेगी जिसके लिए वह अभिशप्त है।

देश में 1382 जेले हैं। वर्तमान समय में इन जेलों में कुल 3,85,135 कैदी बंद हैं जबकि इन जेलों की वास्तविक कुल क्षमता 3,43,169 है। देश की जेलें भरी पड़ी हैं। गृह मंत्रालय का कहना है कि जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी होने की मुख्य वजह विचाराधीन कैदियों की संख्या ज्यादा होना है।

विचाराधीन कैदियों की संख्या को कम करने के लिए गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारों को परामर्श दिया है कि वे सीआरपीसी के अनुच्छेद 436ए के तहत विचाराधीन कैदियों की अधिकतम कैद अवधि का निर्धारण करें। माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी इस मामले को आगे बढ़ाते हुए भीम सिंह केस में नरमी बरतने का आदेश दिया है। जेलों में अमानवीय स्थिति पर दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान माननीय उच्चतम न्यायालय ने देश भर के जिला जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों के मामले को सुलझाने के लिए कमेटी के गठन करने और जून 2015 तक पूरा करने का आदेश दिया है।

जेल सुधार व आधुनिकीकरण को लेकर चार केंद्रीय रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। 1983 में मुल्ला कमेटी, 1986 में कपूर कमेटी, 1987 में अय्यर कमेटी और 2001 में महिला सशक्तीरण की संसदीय समिति ने भारतीय जेलों की नारकीय स्थिति, क्षमता से अधिक कैदियों की संख्या को कम करने लिए कई सुझाव दिए हैं।
कमेटी ने जीर्ण जर्जर जेलों को बदलने, आवास सुधार उन्नयन, मेडिकल सेवाओं की उपलब्धता बहाल करने, व्यवासायिक प्रशिक्षण, लाभप्रद रोजगार, शैक्षणिक कार्यक्रम, महिला जेलों को बेहतर बनाने, अलग सेल बनाने और कैदियों को मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्ध कराने, स्पीडी ट्रायल की व्यवस्था करने और मानवीय स्तर पर कैदियों का इलाज सुनिश्चित करने आदि शामिल हैं।

भारतीय जेलों की दुर्दशा को सुधारने के लिए कब तक देश की जेलों को सुधारा जाएगा कहा नहीं जा सकता है। भारतीय लोकतंत्र में लोकतांत्रिक मूल्यों का तकाजा तो यही कहता है कि देश की जेलों में बंद कैदियों को भी शासन के नियमों में हिस्सेदार बनाया जाए उसे सुविधाएं मुहैया कराई जाए। कब तक कहना मुश्किल है!

अंग्रेजी से अनुवादः शfशकान्त सुशात, पत्रकार