सीरिया संकट के मूल में बशर अल असद का सत्ता में होने का सवाल है। अमेरिका चाहता है कि उन्हें हटा दिया जाय, जबकि रूस असद के बने रहने का समर्थन करता है। यह संकट 4 साल से चल रहा है और इसके कारण सीरिया और उसके लोगों का भारी नुकसान हो रहा है। जब ओबामा और पुतिन की बातचीत के लिए जमीन तैयार की जा रही थी, तो उसी समय अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रांसिसी राष्ट्रपति के साथ मिलकर असद को सत्ता से हटाने पर सहमति जता रहे थे। उन दोनों का कहना था कि इस्लामिक स्टेट का सामना करने के लिए असद को हटाया जाना जरूरी है, जबकि पुतिन इस प्रस्ताव का विरोध करते हैं। उनका मानना है कि इस्लामिक स्टेट के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए असद सहयोगी साबित हो सकते हैं।

यह बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि सीरिया संकट से अबतक ढाई लाख सीरियाई मारे जा चुके हैं। एक करोड़ 10 लाख से भी ज्यादा लोग वहां बेघर हो चुके हैं। 55 लाख बच्चे उस संकट से प्रभावित हुए हैं। 30 लाख बच्चे तो बेघर हो चुके हैं। शरणार्थी बच्चों की संख्या वहां 12 लाख हो चुकी है। सवा चार लाख वैसे बच्चों की उम्र तो 5 साल से भी कम है। अब तक 38 लाख सीरियाई अपना देश छोड़ चुके हैं। 72 लाख सीरियाई अपने देश के अंदर ही रहकर अपना मूल आवास छोड़ चुके हैं।

रूस ने सीरिया के पास अपने बेस में हथियारों का भारी जखीरा जमा कर रखा है, ताकि असद की सत्ता गिरने की स्थिति में वह अपनी सेना को आगे बढ़ा सके। सीरिया रूस की पश्चिम एशिया नीति का एक मुख्य हिस्सा रहा है। उसने 2013 में अमेरिका के सीरिया में बमबारी करने की मंशा पर पानी फेर दिया था।

रूस के राष्ट्रपति अमेरिका और उसके पश्चिमी दोस्तों की सीरिया नीति की आलोचना करते रहे है। उनकी असद विरोधी गतिविधियो का वे लगातार विरोध करते रहे हैं। सद्दाम हुसैन और कर्नल गद्दाफी को लेकर अमेरिका की अपनाई गई नीति का भी उन्होंने विरोध किया था। सीरिया का गृहयुद्ध अमेरिका की उन गलत नीतियो का ही नतीजा है।

प्ुाुनित अब इस्लामिक स्टेट के खिलाफ उसी तरह का गठबंधन बनाना चाहते हैं, जिस तरह का गठबंधन हिटलर के खिलाफ बनाया गया था। लेकिन अमेरिका रूस के इस प्रस्ताव को संदेह की दृष्टि से देखता है। उसका कहना है कि रूस सीरिया में दुहरा खेल खेल रहा है। एक तरफ वह असद का समर्थन कर रहा है, तो दूसरी तरफ उस इलाके में वह एक हवाई बेस बनाना चाह रहा है।

अमेरिका पर इस्लामिक स्टेट को खड़ा करने का आरोप भी लगाया जा रहा है। कहा जा रहा है कि जिस तरह अफगानिस्तान में अमेरिका ने तालिबान खड़ा किया था, उसी तरह उसने इस्लामिक स्टेट खड़ा किया। अमेरिका के कारण ही उस पूरे क्षेत्र में अनिश्चय और अस्थिरता का माहौल बन गया है।

रूस की चिंता समझने की कोशिश किए बिना अमेरिकी विदेश मंत्री ने चेतावनी दी है कि रूस की ताजा गतिविधियों के कारण वहां टकराव और बढ़ेगा और स्थितियां और भी अप्रिय रूप धारण कर सकती हैं। उसका कहना है कि अमेरिका के नेतृत्व में वहां इस्लामिक स्टेट से लड़ रहे देशों का टकराव रूस के साथ हो सकता है।

यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि अमेरिका असद को पसंद नहीं करता। इसका कारण यह है कि उसे लगता है कि असद सद्दाम हुसैन का समर्थन किया करते थे।

असद को सत्ता से उखाड़ने के लिए अमेरिका ने उनके विरोधियों को बढ़ावा देना शुरू कर दिया। उन्हें भारी मात्रा में हथियार दिए गए। इसके कारण ही वहां गृह युद्ध शुरू हुआ, जिसका फायदा इस्लामिक स्टेट ने उठाया।

बराक ओबामा ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन से बातचीत करने का मन तब बनाया, जब उन्हें लगा कि असद अब सत्ता से बाहर होने वाले हैं। जुलाई महीने में ओबामा ने कहा था कि सीरिया में असद की सत्ता समाप्त होने वाली है।

रूस से सहयोग करने के बदले ओबामा उस पर ही गुृंडागर्दी करने का आरोप लगा रहे हैं। रूस के राष्ट्रपति ने ओबामा के इस आरोप का खंडन किया है और इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। (संवाद)