दादरी की घटना को उनलोगों ने अंजाम दिया, जो उत्तर प्रदेश के समाज का सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण करना चाहते हैं, ताकि उसका लाभ 2017 में होने वाले विधानसभा चुनाव में उठाया जा सके।

लोकसभा चुनाव के पहले मुजफ्फरनगर में दंगे हुए थे। उसके कारण मतदाताओं का सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण हो गया था। उस ध्रुवीकरण का लाभ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को हो गया था।

अब भारतीय जनता पार्टी की नजर उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव पर है। उसके पहले प्रदेश में पंचायतों के चुनाव हो रहे हैं। भाजपा की नजर उस पर भी है और उसके कारण ही दादरी की इस बीफ हत्या को अंजाम दिया गया है।

उधर बिहार में भी विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं। उसमें भी दादरी की यह हत्या मुद्दा बन गई है। वहां बीफ खाने या न खाने को चुनावी मुद्दा बना दिया गया है।

उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार इस तरह की हत्या को रोकने में एक बार फिर विफल हो गई है। मुजफ्फरनगर में भी वह दंगों को रोक नहीं पाई थी। राजनैतिक पंडितों का कहना है कि यदि अखिलेश सरकार ने अपने खुफिया विभाग को मुस्तैद कर रखा होता, तो इस घटना को रोका जा सकता था।

मुजफ्फरनगर दंगों के पहले भी प्रशासन की स्थिति बहुत ही ढुलमुल थी। छोटी छोटी हिंसा की घटनाओं पर प्रशासन कोई कार्रवाई नहीं कर रहा था। उसके कारण ही भयानक दंगे होने लगे।

सच कहा जाय, तो अखिलेश सरकार अभी भी सतर्क नहीं है। अनेक अतिवादी संगठन पिछले कुछ समय से खड़े हो गए हैं और उन संगठनों के कार्यकत्र्ता खुलआम सांप्रदायिक तनाव पैदा करते हुए देखे जा सकते हैं। सरकारी एजेंसियो की नजर उनकी गतिविधियों पर होनी चाहिए और उन सांप्रदायिक गतिविधियों को रोका भी जाना चाहिए।

पिछले कुछ समय से सांप्रदायिक तनाव की 100 से भी ज्यादा घटनाएं उत्तर प्रदेश में घटित हो चुकी हैं। अखिलेश सरकार के लिए यह गंभीर मामला होना चाहिए, लेकिन प्रशासन के स्तर पर इसे गंभीरता से लिया ही नहीं जा रहा।

माहौल तनावपूर्ण है और छोटी छोटी घटनाओं को भी सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश स्वार्थी तत्वों द्वारा दिया जा रहा है।

अखिलेश सरकार ने मृत अखलाक के परिवार को 45 लाख मुआवजा देने की घोषणा की है और उसने परिवार पूर्ण सुरक्षा मुहैया कराने का भरोसा भी दिया है।

अखिलेश यादव ने उस घटना पर भारतीय जनता पार्टी पर हमला भी परोक्ष रूप से किया है। उनका कहना है कि जब से उनकी सरकार बनी है, सांप्रदायिक शक्तियां नफरत फैलाने का काम कर रही हैं, ताकि उनकी सरकार को अस्थिर किया जा सके।

लेकिन प्रशासन का हाल यह है कि धारा 144 लागू रहले के बावजूद भाजपा के विधायक संगीत सोम ने उसी मन्दिर के पास सभा कर डाली, जहां से अखलाक पर आक्रमण करने के लिए लोगों को उकसाया गया था।

केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि दादरी की घटना को सांप्रदायिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए और स्थानीय लोगों को जेल भेजने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इसके कारण कोई बड़ा आंदोलन हो सकता है।

भारतीय जनता पार्टी के एक बेटे को भी इस मामले में गिरफ्तार किया गया है। एफआईआर में उसका नाम था। अनेक युवा अभी फरार चल रहे हैं।

बहुजन समाज पार्टी ने भी इस कांड की निंदा की है। उसने पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दकी के नेतृत्व में अपने कुछ नेताओं को वहां भेजा था। उसने पीड़ित के परिवार को 11 लाख रूपये की सहायता की पेशकश की। लेकिन वहां की महिलाओं ने नसीमुद्दीन सिद्दकी की यात्रा का विरोध किया। वैसे बहुजन समाज पार्टी ने उस कांड की सीबीआई जांच की मांग की है।

राजनैतिक पर्यवेक्षक रमेश दीक्षित का कहना है कि दादरी जैसी घटना अखिलेश सरकार की विफलता का नतीजा है। (संवाद)