इस महीने के अंत में नई दिल्ली में अफ्रीका के देशों के साथ भारत का शिखर सम्मेलन हो रहा है। पहले 15 देशों के शासन प्रमुखों को भारत इस तरह की बैठक में बुलाता था। इस बार 54 देशों के सत्ताप्रमुखों को बुलाया गया है। लगभग सभी ने आमंत्रण को स्वीकार भी कर लिया है। इसके कारण 1983 के बाद का यह सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन भारत में होने वाला है। उस साल गुट निरपेक्ष देशों और काॅमनवेल्थ देशों का सम्मेलन भारत में हुआ था।

यह सम्मेलन विकास में सहयोग के लिए है। अब तक विकास की सहायता के लिए भारत अफ्रीकी संघ का इस्तेमाल करता था। लेकिन अफ्रीका एक बहुत बड़ा महादेश है और वहां के देशों में विविधता है। सबके विकास की समस्या क जैसी नहीं है। विकास के अनेक स्तरों पर सभी देश हैं। इसलिए सबके साथ संस्थानिक संबंध एक जैसे नहीं हो सकते।

अफ्रीकी संघ के अलावा वहां के देशों के साथ सहयोग का एक अन्य मंच भारत के लिए है अफ्रीका आर्थिक आयोग। उसके अलावे अफ्रो एशिया ग्रामीण विकास संघ, पान अफ्रीका संसद, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन जैसे संगठनों के द्वारा भारत अफ्रीका देशों के साथ विकास सहयोग करता रहा है। 2014 में दक्षिण अफ्रीका ने बिक्स देशों का सम्मेलन आयोजित किया था। भारत भी उसमें शामिल हुआ था।

इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि अफ्रीकी देश भारत के साथ मजबूत संबंध बनाना चाहते हैं, लेकिन भारत पर्याप्त उत्साह नहीं दिखाता। भारत में अफ्रीकी देशों के 43 मिशन हैं, जबकि भारत ने स्थाई रूप मंेम ात्र 25 देशों में अपने मिशन स्थापित किए हैं।

अफ्रीका में कुछ ऐसे देश भी हैं, जिनकी गिनती सबसे ज्यादा तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्थाओं के रूप मंे की जाती है। वहां का एक बड़ा इलाका उर्वरक खेती के लायक है और वहां प्राकृतिक संसाधनों की भी कोई कमी नहीं है। वहां तेल और प्राकृतिक गैस भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। वहां की 65 फीसदी आबादी 35 साल से कम उम्र की है। वहां समुदी सीमा 26 हजार किलामीटर की है। हालांकि यह भी सच है कि वहां के अनेक देशों के चारों ओर जमीन है।

भारत और अफ्रीका के बीच संबंध के लिए अनेक ऐेसे क्षेत्र उपलब्ध हैं, जिनसे दोनों पक्षों को लाभ हो सकता है। उम्मीद है कि आने वाले शिखर सम्मेलन में उन देशों के साथ भारत के सबंध बहुत ही मजबूत होंगे। (संवाद)