श्रमिकों की बहुलता के साथ साथ भारत में प्राकृतिक संसाधनों की भी बहुलता है, जिसके कारण उत्पादकों को अपने उत्पादन के लिए जरूरी इनपुट भारी पैमाने पर यहां मिल सकते हैं। भारत में कोयले का बड़ा भंडार है। यहां लौह अयस्क भी पर्याप्त मात्रा में मौजूद है। मैगनीज की बहुलता है। अबरख का दुनिया में सबसे बड़ा भंडार भी यहां ही है। इसके अलावा यहां ऐसे भंडार भी कम नहीं होगे, जिसके बारे में अभी तक पता नहीं चल पाया है। मेक इन इन इंडिया अभियान के तेज होने के साथ उनकी खोज भी तेज हो जाएगी।
उत्पादन के दो साधनो की बहुलता के साथ साथ भारत खुद एक बड़ा उपभोक्ता बाजार है। जाहिर है, उत्पादों के एक बड़े हिस्से की खपत भारत में ही हो सकती है। उत्पादकों को आखिर और क्या चाहिए? भारत 125 करोड़े लोगांे का देश है, जिसका 25 फीसदी आबादी एक बड़ा आधुनिक बाजार है। सच कहा जाय, तो भारत आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा आधुनिक बाजार है। जब उत्पादो की खपत के लिए उपभोक्ता बाजार मौजूद हो, तो फिर उत्पादकों को और क्या चाहिए?
प्रधानमंत्री मोदी भारत की आयात पर निर्भरता कम करना चाहते हैं। भारत इलेक्ट्रानिक गुड्स और तेल का बहुत बड़ा आयातक है। तेल के आयात को तो फिलहाल कम नहीं किया जा सकता, क्यांेकि घरेलू तेल उत्पादन बहुत कम है, लेकिन इलेक्ट्रानिक गुड्स के घरेलू उत्पादन को बढ़ाकर उसके आयात पर निर्भरता को कम किया जा सकता है। इसलिए मोदी चाहते हैं कि विदेशी कंपनियां इलेक्ट्रानिक गुड्स के उत्पादन की इकाइयां भारत में आकर खोले। इससे भारत के लोगों को रोजगार मिलेगा और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा।
लेकिन प्रधानमंत्री सिर्फ भारतीय उपभोक्ताओं को ध्यान में रखकर ’मेक इन इंडिया’ अभियान को नहीं चला रहे हैं। वे चाहते हैं कि भारत में किया गया उत्पादन दुनिया भर के बाजारों को भर दे। अंग्रेजों के भारत आने के पहले और यूरोप में हुई औद्योगिक क्रांति के पहले भारत पूरी दुनिया की 50 फीसदी आबादी को कपड़ा पहनाता था। मोदी चाहते हैं कि भारत में बने सामान पूरी दुनिया में निर्यात हों और उसके उत्पादक भी दुनिया भर से आकर भारत में उत्पादन करें।
पर दादरी जैसी घटनाएं भारत में घंटित हो रही हैं। सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या इससे भारत का निवेश माहौल तो प्रभावित नहीं होगा? अनेक राजनेता, अर्थशास्त्री तथा समाजशास्त्री सवाल उठा रहे हैं कि इस तरह की घटनाएं निवेशकों को बाहर भगाने का काम करती हैं।
इसमें कुछ सच्चाई भी है। उत्पादन क्रिया शांति और सौहार्द के माहौल में ही बेहतर ढंग से संपन्न होती है। जब अशांति रहती है, तो न तो उत्पादन का माहौल रहता है और न ही व्यापार का। इसलिए आदर्श स्थिति यही है कि यदि भारत को विश्व के उत्पादक का हब बनाना हो, तो यहां शांति भी बरकरार रखनी होगी। इसलिए दादरी जैसी घटनाओं को होने देने से रोकना होगा।
पर भारत एक बहुलतावादी देश है। यह सच है कि यहां अनेकता में एकता है, पर बहुलतावाद अनेक बार संधर्ष की स्थिति भी पैदा करता है। भारत में हम यह बार बार देख रहे हैं। इसके कारण भारत का एक बार विभाजन भी हो चुका है। यह भारत की ही नहीं, भारतीय उपमहाद्वीप में भी होता रहा है। भारत से टूटकर पाकिस्तान बना था और पाकिस्तान खुद भी टूटकर दो देश बन गया। अभी नेपाल में भी भारी आंतरिक संघर्ष चल रहा है।
आजादी के बाद से भी भारत में तरह तरह के तनाव होते रहे हैं। मुृबई में ठाकरे परिवार तरह तरह के बयान और गतिविधियों को माहौल को तनावपूर्ण बनाते रहता है। इसलिए यह मानने को केाई कारण नहीं कि आने वाले समय में भारत में शांति का साम्राज्य हो जाएगा और कहीं कोई अप्रिय घटना होगी ही नहीं। हालांकि आदर्श स्थिति तो यही है कि कहीं कोई अप्रिय घटना न घटे। दादरी नहीं दुहराई जाय और ठाकरे बंधु जिस अराजकता की पूजा करते हैं, वह पूजा बंद हो।
इन छिटपुट घटनाओं के बावजूद भारत दुनिया के निवेशकों को आकर्षित करने में सक्षम है, क्योकि निवेशक यह देखते हैं कि जिस देश में वे निवेश करने जा रहे हैं, वहां कोई अराजकता का माहौल न बने। भारत आजादी के बाद से ही छोटी मोटी और कभी कभी बड़ी बड़ी हिंसक घटनाओं का गवाह भी रहा है, लेकिन इसके बावजूद यहां अराजकता की स्थिति कभी भी उत्पन्न नहीं हुई है। भारत ने पाकिस्तान के साथ कई लड़ाइयां लड़ीं और चीन के साथ भी इसकी लडाई हुई, पर उनसे यहां का आंतरिक निवेश माहौल कभी खराब नहीं हुआ।
भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई है। उसे हम वाणिज्यिक राजधानी भी कह सकते हैं। वहां ठाकरे परिवार अपनी हरकतों से तनाव पैदा करता है। लेकिन इसके बावजूद वहां का व्यावसायिक माहौल ऐसा नहीं होता कि व्यवसायी वहां से भाग जाए। मुंबई पर आतंकवादियों ने एक बार हमला भी इसीलिए किया था कि भारत के व्यवसाय के सबसे बड़े केन्द्र को विघ्वंस कर वह यहां का निवेश माहौल खराब कर सके। पर उसमें वह विफल रहा। जाहिर है, कुछ छिटपुट और कभी कभी कुछ बड़ी बड़ी घटनाओं क बावजूद यहां का निवेश माहौल सुरक्षित रहा है। यदि इस माहौल को झटका लगता रहा है, तो वह यहां की भ्रष्ट और अक्षम नौकरशाही और कमजारे इन्फ्रास्ट्रक्चर से। इन दोनों कमियों को दूर कर भारत को विश्व उत्पादन का सबसे बड़ा केन्द्र बनाया जा सकता है। (संवाद)
भारत
दादरी जैसी घटनाएं और विदेशी निवेश
अराजक स्थितियों में ही भागते हैं उद्यमी
उपेन्द्र प्रसाद - 2015-10-26 15:52
'मेक इन इंडिया' प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की एक बहुत ही महत्वकांक्षी योजना है, जिसके तहत वे भारत को दुनिया के उत्पादकों की सबसे पसंदीदा जगह बनाना चाहते हैं। भारत में श्रम की बहुलता है और यह सस्ता भी है, हालांकि कुशल श्रमिकों की यहां कमी है। इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार कौशल विकास का अभियान चला रही है और प्रधानमंत्री को उम्मीद है कि श्रमिकों की कुशलता की अवस्था को भी भारत प्राप्त कर लेगा।