उसके साथ ही मध्यप्रदेश सभी प्रकार की दालों के उत्पादन में भारत का पहले नंबर का प्रदे्रश रहा है। लेकिन इस समय प्रदेश में दालों का भयंकर अभाव है। सोया की फसल बर्बाद हो चुकी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इस तथ्य को स्वीकार कर लिया है। समस्या की विकरालता को समझते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने केन्द्र सरकार से मदद की गुहार लगाई है।

मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि सोयाबीन की फसल बर्बाद हो गई है, लेकिन सरकार के अधिकारी मुख्यमंत्री की बात से सहमत नहीं दिखाई देते। कुषि मंत्रालय का कहना है कि सोया की बर्बादी उतनी नहीं हुई है, जितना बताया जा रहा है। जिला स्तर के अधिकारी भी इसी तरह की बात करते हैं और अपने दावे को सही ठहराने के लिए वे आंकड़े भी पेश करते हैं। उनका कहना है कि 25 लाख हेक्टर से ज्यादा जमीन पर सोया की बर्बादी नहीं हुई है।

दूसरी तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान कह रहे हैं कि 50 लाख हेक्टर पर लगी सोया की फसल पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है। कृषि निदेशक मोहनलाल मीणा का कहना है कि सोया फसल की हुई बर्बादी का सही आंकड़ा एक सप्ताह में सामने आ जाएगा। वे कहते हैं कि सोया के उत्पादन का अनुमान 77 लाख मेट्रिक टन था। अब इसने अपने अनुमान में संशोधन कर लिया है और इसका संशोधित अनुमान अब 40 लाख मेट्रिक टन है। उनका कहना है कि इस समय तो अंदाज ही लगाया जा सकता है कि सोया का उत्पादन कितना हुआ, क्योंकि सोया फसल की कटनी अभी जारी है। लेकिन उन्होंने यह स्वीकार किया कि फसल का भारी पैमाने पर नुकसान हुआ है।

मुख्यमंत्री और कृषि मंत्रालय के अनुमान में भारी अंतर है। इस महीने के अंत में ही सही स्थिति का पता लग पाएगा। मंत्री और अधिकारी गांवों का दौरा कर रहे हैं और किसानों से मुलाकात कर रहे हैं। उनसे मिलकर वे हुए नुकसान का अनुमान लगा रहे हैं।

स्थितियां बहुत ही भयावह हैं। यही कारण है कि मुख्यमंत्री अनेक कदम उठा रहे हैं। सबसे पहले तो वे हुई बर्बादी का सही आकलन करा रहे हैं। इसके आधार पर वे किसानों को राहत प्रदान करने की रणनीति बनाएंगे। किसानों की आत्महत्याएं हो रही हैं। उनको ध्यान में रखते हुए अनेक कदम सरकार द्वारा उठाए जा रहे हैं। उन कदमों में एक कदम मुख्यमंत्री द्वारा अघिकारियों को गांवों का दौरा करने का आदेश जारी करना है। आइएएस, आइपीएस और आइएफएस अधिकारी मुख्यमंत्री का आदेश पाकर गांवों का दौरा कर रहे हैं।

नरसिंहपुर जिले का गदरवारा इलाका दाल के व्यापार के लिए विख्यात रहा है। वहां अरहर, मूंग और उरद की दाल का भारी पैमाने पर उत्पादन होता रहा है। वहां की दालों की गुणवत्ता भी बहुत अच्छी होती है। यही कारण है कि उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम सभी दिशाओं के व्यापारी वहां जाकर दाल की खरीददारी किया करते थे। लेकिन इस बार मौसम ने दाल के उत्पादन को तबाह कर दिया हैं। न केवल दाल के उत्पादन में कमी आई है, बल्कि उनकी गुणवत्ता भी खराब है।

ऐसा पिछले कई सालों से हो रहा है। यही कारण है कि अब किसान दाल की खेती से कतराने लगे हैं। (संवाद)