आरक्षण के मसले पर नीतीश पर हमला बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा में बिहार के मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए बयान की काॅपी लोगों को दिखाई है, जिसमें नीतीश एक अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण की वकालत और 50 फीसदी की सीमा के अंदर उसे संभव बनाने का तरीका बताते दिखाई देते हैं। जो तरीका उन्होंने बताया है, उसके अनुसार मुस्लिमों को आरक्षण का लाभ पा रहे वर्तमान वर्गो के हिस्से से ही कोटा दिया जा सकता है।

कुछ दिन पहले जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बक्सर की चुनावी सभा में आरोप लगाया कि लालू, नीतीश और कांग्रेस एक साजिश कर रहे हैं, जिसके तहत दलितों और पिछड़ों के आरक्षण के कोटे से काटकर एक अन्य संप्रदाय को कोटा दिया जाना है। प्रधानमंत्री का वह बयान चैंकाने वाला था, क्योंकि वे जो बातें कह रहे थे, उसके बारे मंे पहले कभी नहीं सुना गया था। यह सच है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले ओबीसी आरक्षण के 27 फीसदी आरक्षण के साथ छेड़छाड़ की थी। ओबीसी को हिन्दू और गैर हिन्दू में बांट दिया गया था और साढ़े 22 फीसदी ओबीसी कोटा हिन्दुओं के लिए और साढ़े 4 फीसदी कोटा गेर हिन्दुओं के लिए तय कर दिया गया था। साढ़े चार फीसदी गैर हिन्दुओं के कोटे को मुस्लिम कोटे के रूप में प्रचारित कर कांग्रेस मुस्लिम मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रही थी। यह साढ़े चार फीसदी उन्हीं लोगों को दिया गया था, जिनकी जातियो के नाम पहले से ही ओबीसी सूची में थे, लेकिन प्रचार कुछ इस तरह से किया गया, मानो पूरे मुसलमानों के लिए साढ़े चार फीसदी कोटा दे दिया गया था।

साढ़े चार फीसदी कोई बड़ा आंकड़ा नहीं था, इसलिए कांग्रेस के कुछ नेता चुनाव प्रचार के दौरान मुसलमानों को 9 फीसदी आरक्षण की बात करने लगे थे। इसलिए लग रहा था कि नरेन्द्र मोदी उसी की ओर इशारा कर रहे हैं और चूंकि कांग्रेस द्वारा साढ़े चार फीसदी के उस आरक्षण दिए जाने के बाद लालू और नीतीश ने उसका विरोध नहीं किया था, इसलिए उन दोनों को भी कांग्रेस के साथ आरक्षण विरोधी खेमे में धकेल रहे हैं।

परन्तु अब नरेन्द्र मोदी ने एक ऐसा दस्तावेज जारी किया है, जिसके अनुसार वे साबित कर रहे हैं कि नीतीश कुमार खुद वर्तमान आरक्षण के कोटे से मुसलमानों को कोटा देना चाहते हैं। इसके साथ साथ नरेन्द्र मोदी अपने आपके अति पिछड़ा होने की बात भी लोगों से कह रहे हैं और कहते हैं कि लालू और नीतीश की उनसे नाराजगी का असली कारण यह है कि वे अति पिछड़ा होकर प्रधानमंत्री कैसे बन गए, जबकि पिछड़े वर्गो की राजनीति करते हुए उन दोनों को प्रधानमंत्री बनना था।

चुनाव अभियान की शुरुआत में ही लालू यादव ने पूरे चुनाव को अगड़ा बनाम पिछड़ा बना दिया था। बाद में मोहन भागवत का एक बयान आ गया, जिसमें वे वर्तमान आरक्षण नीति की समीक्षा करने की बात कर रहे थे। भागवत के बयान को लालू यादव ने आरक्षण समाप्त करने की मांग करने वाले बयान के रूप में पेश कर दिया। ऐसा कर वे अपने आरक्षण के मसले को और धारदार बनाने लगे और भागवत के बयान का खंडन करने की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चुनौती देने लगे। प्रधानमंत्री के समर्थकों में आरक्षण विरोधी अगड़ी जातियों के लोगों की भी काफी संख्या है, इसलिए इस मसले पर उनके द्वारा बयान जारी के अपने खतरे थे। लालू और नीतीश इस बात को जानते थे, इसलिए दोनों ने ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दी कि नहीं चाहते हुए भी प्रधानमंत्री मोदी को आरक्षण के इस विवाद में अपने आपको शामिल करना पड़ा।

पहले और दूसरे चक्र के मतदान के बाद चर्चा तेज हुई कि लालू और नीतीश का आरक्षण कार्ड काम कर रहा है और अमित शाह का बयान कि आरक्षण खत्म नहीं किया जाएगा, लोगों द्वारा गंभीरता पूर्वक नहीं लिया जा रहा है। तब नरेन्द्र मोदी को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी और उन्हें खुलकर आरक्षण के मसले पर बोलने पड़ा। पर नरेन्द्र मोदी रक्षात्मक से ज्यादा आक्रामक अभियान की नीति अपनाते रहे हैं। उन्होंने आरक्षण नहीं समाप्त करने की अपनी पार्टी की बात तो दुहराई ही, उल्टे उन्होंने लालू और नीतीश को ही आरक्षण समाप्त करने की साजिश करने वाला करार दिया।

नरेन्द्र मोदी का यह हमला लालू और नीतीश पर भारी पड़ रहा है। दोनों नेताओं के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि मुस्लिम आरक्षण का उनका समर्थन के क्या मायने है और वह आरक्षण बिना ओबीसी और दलितों के आरक्षण को प्रभावित किए कैसे संभव है। अब तक नरेन्द्र मोदी ने एक दस्तावेज भी जारी कर दिए हैं, जिसका खंडन तक नीतीश कुमार नहीं कर पा रहे हैं।

कहां तो लालू और नीतीश भागवत के बयान को आधार बनाकर नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी को आरक्षण विरोधी करार दे रहे थे, कहां अब उन दोनों पर ही आरक्षण विरोधी होने का आरोप लग रहा है। नीतीश कुमार ने नरेन्द्र मोदी के खिलाफ डीएनए शब्द वापसी अभियान चलाया था। उस अभियान से नीतीश कुमार का ही नुकसान हुआ, क्योंकि लोगों के सामने वह वाकया एक बार फिर सामने आ गया, जिसमें नीतीश ने नरेन्द्र मोदी को अपने द्वारा आयोजित भोज पार्टी में शामिल होने पर रोक लगा दी थी। भाजपा द्वारा उस शर्त को मानने से इनकार करने पर नीतीश ने पार्टी ही कैंसिल कर दी थी। नीतीश के उस कदम से छुआछूत और सामंतवाद की बू आती थी। इसलिए उनका वह अभियान उनके खिलाफ ही चला गया।

उसी तरह आरक्षण का मसला भी अब लालू और नीतीश के खिलाफ जाता दिखाई पड़ रहा है। लालू अगड़ा पिछड़ा कर रहे हैं, तो नरेन्द्र मोदी अपने को अति पिछड़ा बताकर लालू और नीतीश के पांवों के नीचे की जमीन खिसका रहे हैं। (संवाद)