लेकिन सरकार की ये घोषणाएं महज घोषणाएं ही लगती हैं। उन वायदों को पूरा करने के लिए सरकार ने शायद ही कुछ किया है। अधिकांश राज्यांे ने अभी तक घोषित धन प्राप्त ही नहीं किया है। प्रधानमंत्री कार्यालय सिर्फ घोषणाएं करता जा रहा है। परियोजनाएं के सुन्दर सुन्दर नाम बताए जाते हैं। नामों की घोषणा कर उन पर तालियां पिटवाई जाती हैं। भाषा के इस खेल में योजनाएं के नामों के पहले अक्षरों को आपस में मिलाकर एक सुन्दर नाम बना दिया जाता है। वैसा ही एक सुन्दर नाम प्रधानमंत्री ने बनाया, जिसे वे ’जाम’ कहते हैं। जनधन योजना का ज आधार कार्ड का अ और मोबाईल कनेक्ट का म मिलाकर उन्होंने एक शब्द जाम बना दिया और कहा है कि इसके द्वारा समाज के उपेक्षित लोगों तक विकास के लाभ पहुंचाए जाएंगे। दूसरे शब्दों मंे कहें, तो देश के विकास में इन उपेक्षित लोगों को जाम के द्वारा शामिल किया जाएगा और देश का विकास सर्वसमावेशी हो, इसे सुनिश्चित किया जाएगा।
लेकिन सच कहा जाय, तो केन्द्र की सरकार और देश वास्तविक जाम के दौर से गुजर रहा है। अब मोदी के विकास का नारा ब्लैंक फायरिंग से ज्यादा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। यूपीए सरकार के दौरान सरकार के कामकाज पर जो जाम लगा था, जाम के उस दौर से भी मोदी की वर्तमान सरकार नहीं निकल पाई है। यूपीए सरकार के कार्यकाल को समाप्त हुए 18 महीने हो गए हैं। और उस समय जो 10 लाख करोड़ रुपये की जो परियोजनाएं लटकी हुई थीं, वे आज भी लटकी हुई हैं। उन्हें जाम से बचाने के लिए वर्तमान सरकार ने शायद ही अबतक कोई प्रयास किया है।
उन परियोजनाओं पर लगे जाम को तो समाप्त नहीं किया गया है, लेकिन वर्तमान सरकार ने कुछ और योजनाओ की घोषणा कर दी है। उसने 100 स्मार्ट सीटी बनाने की बात की है। लेकिन दुर्भाग्य से इस पर भी कोई काम नहीं हो पा रहा है। रोजगार स्जन के मोर्चे पर कुछ भी काम नहीं हो रहा है। इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास की कोई योजनाओं पर काम नहीं हो रहा है। पावर, स्टील और न जाने कितने विकास देने वाली परियोजनाएं अभी भी शुभ मुहूर्त का इंतजार कर रही हैं।
विकास के काम की परियोजनाओं को केन्द्र सरकार ने निजी सेक्टर पर छोड़ दिया है और निजी सेक्टर बहुत ही सुस्ती से उस पर काम कर रहा है। सरकार खुद मान रही है कि निजी सेक्टर निवेश परियोजनाओ पर बहुत सुस्ती दिखा रहा है। दिल्ली और मुंबई के बीच प्रस्ताविक व्यावसायिक काॅरिडोर पर काम नहीं हो पा रहा है। कोई बड़ा बंदरगाह भी नहीं बन पा रहा है। कोई बड़े व्यावसायिक जहाज भी नहीं खरीदे जा रहे हैं। कोई नया हवाई अड्डा भी नहीं बनाया जा रहा है। कोई नये स्टील संयत्र भी नहीं स्थापित किए जा रहे हैं।
इस माहौल में सरकार जो आर्थिक विकास की दर के जो आंकड़े पेश कर रही है, वह विकास की सही तस्वीर का बयान नहीं कर रहे हैं। आर्थिक विकास दर का निर्धारण कृषि, उद्योग और सेवा सेक्टर की विकास दर को जोड़कर आकलित किया जाता है। इस साल के पहले छह महीने मे सेवा सेक्टर की विकास दर 22 फीसदी रही है। इसके कारण औसत विकास दर देखने में आकर्षक लगती है, लेकिन सच्चाई यही है कि कृषि और उद्योग सेक्टर में संतोषजनक स्थिति नहीं है और इन दोनों सेक्टरों की नाकामियां सेवा सेक्टर की उपलब्धियों में दबकर रह जाती है। जाहिर है देश की अर्थव्यवस्था भी जाम में फंसी हुई है। (संवाद)
जाम में फंसी मोदी सरकार
विकास का विजन पर कार्रवाई नहीं
नन्तू बनर्जी - 2015-11-12 15:56
उपेक्षित लोगों को विकास के दायरे में लाना अच्छी बात है। भारत को साफ रखना भी अच्छी बात है। गंगा की सफाई भी स्वागत योग्य है। बेटियों को बचाना और उन्हें पढ़ाना भी जरूरी है। मेक इन इंडिया का विचार भी अच्छा है। गरीबी मिटाने की मंशा भी अच्छी है। यह सब अच्छी बातें हैं। केन्द्र सरकार ने बिहार और अन्य राज्यों के लिए भारी पैमाने पर धन उपलब्ध करने की प्रतिबद्धता दिखाई है। यह भी अच्छा है। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और जम्मू और कश्मीर को वास्तव में धन की जरूरत है। पश्चिम बंगाल को भी धन चाहिए। केन्द्र सरकार ने उसके लिए भी 16 हजार करोड़ रुपये की सहायता की प्रतिबद्धता जाहिर की है।