लेकिन असम में भी सत्ता में आना भारतीय जनता पार्टी के लिए बहुत आसान नहीं है। वहां कुछ ऐसी घटनाएं घट रही हैं, जिनके कारण उसकी मुश्किलें बढ़ती जा रही है। एक घटना तो कुछ कांग्रेसी विधायकों का भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो जाना ही है। देखने से यह लगता है कि कांग्रेसी विधायकों के पार्टी में आ जाना से भाजपा का काम आसान हो गया है, लेकिन ऐसी बात नहीं है। इसका कारण यह है कि नये लोगों के पार्टी में आ जाने से पुराने लोगों का महत्व घटने लगता है और वे पुराने लोगों की चिंता पार्टी केा कमजोर करने लगती है।
भातीय जनता पार्टी में कांग्रेस से हेमंत विश्व शर्मा भी आए हैं। वे असम की कांग्रेस सरकार में मंत्री भी थे और मुख्यमंत्री बनने का दावा भी वहां पेश करते रहते थे। हाल हाल तक वे मुख्यमंत्री बनने की कोशिश कर रहे थे और चाहते थे कि कांग्रेस चुनाव के पहले उन्हें असम का मुख्यमंत्री बनाकर उन्हीं के नेतृत्व में चुनाव लड़ें। पर कांग्रेस का आलाकमान उसके लिए तैयार नहीं हुआ। उसने स्पष्ट कर दिया कि यह चुनाव कांग्रेस तरुण गोगोई के मुख्यमंत्री रहते ही लड़ेगी।
हिमंत विश्व शर्मा के पार्टी में आने से भाजपा के नेता खुश नहीं हैं। इसका कारण यह है कि हिमंत की छवि राजनैतिक क्षेत्रों मे एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति की है, जो अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए कुछ भी करते रहते है। हिमंत पहले उल्फा में हुआ करते थे। उन्हें हितेश्वर सैकिया ने सरेंडर कराया था। उसके बाद उनके कारण ही वे कांग्रेस में भी शामिल हो गए। सैकिया के कारण कांग्रेस के अंदर उनका रुतबा बढ़ा और वे मंत्री पद तक पा सके। लेकिन कांग्रेस के अंदर उनका रिकाॅर्ड एक परेशानी का सबब बने नेता की बनी रही।
भारतीय जनता पार्टी के नेताओ ंको भी लगता है कि हिमंत पार्टी में आकर शांत नहीं रहेंगे। वे सिर्फ विधायक बनने या मंत्री का पद लेने भाजपा में नहीं आए हैं और मुख्यमंत्री का पद हासिल करने के लिए वे सभी संभव प्रयास करेंगे।
भाजपा की असम ईकाई में मुख्यमंत्री पद के अनेक दावेदार हैं। उसमें अनेक ऐसे नेता हैं, जो दशकों से पार्टी के प्रति वफादार रहे हैं। उन्हें पता है कि शर्मा एक साधारण नेता बनकर रहने के लिए भाजपा में नहीं आए हैं, बल्कि उनकी महत्वाकांक्षा कुछ और बनने की है।
असम में बांग्लादेशी शरणार्थियों का मसला हमेशा से अहम रहा है और भारतीय जनता पार्टी उनके खिलाफ हमेशा आंदोलनरत रही है। लोकसभा चुनाव के पहले भारतीय जनता पार्टी की चुनावी सभा में नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि वे शरणार्थी जहां से आए थे, उन्हें वहीं भेज दिया जाएगा। लेकिन सत्ता में आने के बाद उन्होंने पलटी मार दी है। इसके कारण भाजपा का एक बड़ा समर्थक आधार केन्द्र सरकार से नाराज चल रहा है। इसके कारण भाजपा की स्थिति जमीन पर थोड़ी कमजोर जरूर हुई है।
आक्रामक हिन्दुत्व की छवि भी भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ जा सकती है। इसके कारण असम में आॅल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट का कांग्रेस के साथ गठबंधन हो सकता है। फ्रंट का एक बड़ा मुस्लिम जनाधार है। यदि वह कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लेता है और दोनों मिलकर चुनाव लड़ते हैं, तो भारतीय जनता पार्टी का काम बहुत ही कठिन हो जाएगा।
मुख्यमंत्री के अनेक दावेदारों के बावजूद असम में भाजपा का कोई ऐसा बड़ा नेता नहीं है, जिसके नाम पर लड़कर पार्टी चुनाव जीतने की उम्मीद पाले। जाहिर है, नेतृत्व संकट की समस्या भी पार्टी को परेशान कर रही है। (संवाद)
असम में भाजपा नेतृत्व संकट का कर रही है सामना
कांग्रेस कर रही है नये सहयोगी की खोज
बरुण दास गुप्ता - 2015-11-18 12:13
अगले साल देश के पांच राज्यों में विधानसभाओं के चुनाव होने हैं। वे राज्य है- तमिलनाडु, पुदुचेरी, केरल, पश्चिम बंगाल और असम। भारतीय जनता पार्टी की दृष्टि से पहले 4 राज्य महत्वपूर्ण नहीं हैं, क्योंकि उनमें से किसी मे भी उनका कोई राजनैतिक अस्तित्व उल्लेखनीय नहीं है। लेकिन असम की बात कुछ और है। वहां भारतीय जनता पार्टी एक बड़ी ताकत के रूप में उभर गई है और वह वहां अपनी सरकार बनाने का सपना देख सकती है।