मोदी सरकार ने कुछ ऐसे कार्यक्रम भी शुरू किए, जिनका लाभ गरीबों को बहुत जल्दी मिल जाता है। कौशल विकास उनमें से एक कार्यक्रम है। लेकिन इसे जिस तेजी से शुरू किया जाना चाहिए था, उतनी तेजी से इसे शुरू नहीं किया जा सका। विदेशी निवेश को आकर्षित करने पर ज्यादा जोर दिया गया। मेक इन इंडिया और डिजिटल इंडिया को ज्यादा पब्लिसीटी दी गई। यदि कौशल विकास कार्यक्रम को तेजी से लागू किया जाता, तो इससे करोड़ों बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिल सकता था। इससे गरीबों में विश्वास पैदा होता और इसके कारण उन्हें काम ही नहीं मिलता, बल्कि वे खुद उद्योग धंधे शुरू कर सकते थे।

सरकार के अपने आंकड़े ही बताते हैं कि देश की आबादी का मात्र 2 दशमलव 3 फीसदी ही आधिकारिक कौशल विकास का शिक्षण पाता है, जबकि यह आंकड़ा दक्षिण कोरिया के लिए 96 फीसदी, जापान के लिए 80 फीसदी, जर्मनी के लिए 75 फीसदी, इंग्लैंड के लिए 68 फीसदी और अमेरिका के लिए 52 फीसदी है। भारत की आबादी को काम करने वाला समूह कुल आबादी का 62 फीसदी है और उसके बाद भी हमारी कम उत्पादकता का मतलब यही है कि बहुत छोटी आबादी ही कुशल कारीगर है। यदि भारत ने अपने लोगों के कौशल का विकास नहीं किया, तो यह अपनी प्रतिस्पर्धी ताकत खो देगा, हालांकि अभी भी इसकी ताकत बहुत कम है।

अध्ययन से पता चला है कि ऐसे 24 क्षेत्र हैं, जहां कुशल श्रमिकों की मांग बहुत ज्यादा है और आपूर्ति बहुत कम। मांग और आपूर्ति में वहां काफी गैप है और 2022 तक यह गैप भरने के लिए 11 करोड़ कुशल लोगों की जरूरत पड़ेगी।

जाति आधारित पारंपरिक काम धंधे भी अनेक हैं, जिनमें काम करने के तरीके को उन्नत बनाया जा सकता है। वहां भी कौशल विकास को ले जाने की जरूरत है। सच तो यह है कि शिक्ष्ति ही नहीं, बल्कि अशिक्षित समुदाय में भी कौशल विकास को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है। (संवाद)