इस चुनाव के बाद यूडीएफ के घटक दलों के बीच जो एक दूसरे के खिलाफ तीखापन पैदा हुआ था, वह समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा है। सच तो यह है कि कटुता लगातार बढ़ती जा रही है।
असंतोष का सबसे बड़ा उदाहरण वयानाद जिले के सुलतान बथेरी नगरपालिका में केरल कांग्रेस (मणि) द्वारा एलडीएफ को दिया गया समर्थन है। नगरपालिका के चेयरमैन के लिए हो रहे चुनाव में केरल कांग्रेस (मणि) के पार्षद ने एलडीएफ को मत दिया। इसके कारण एलडीएफ के उम्मीदवार की जीत हो गई और यूडीएफ का उम्मीदवार पराजित हो गया।
उतना ही काफी नहीं था। केरल कांग्रेस (मणि) 4 अन्य पंचायतों में भी एलडीएफ के उम्मीदवारों को जीत दिलाने मे मदद की। यह गठबंधन धर्म का खुला उल्लंघन था। एलडीएफ ने भी मणि की पार्टी के एक उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करवा दी और वहां यूडीएफ का आधिकारिक उम्मीदवार पराजित हो गया।
इससे पता चलता है कि मणि के नेतृत्व वाली पार्टी ने कांग्रेस को अपने नेता के खिलाफ की गई कथित साजिश के लिए माफ नहीं किया है। गौरतलब हो कि के एम मणि वित्त मंत्री के पद से हटाए जा चुके हैं और उनके ऊपर बार घूस कांड में मुकदमा चल रहा है। उनको और उनकी पार्टी को लगता है कि एक साजिश के तहत उन्हें उसमें फंसाया गया है और उसमें खुद मुख्यमंत्री ओमन चांडी शामिल हैं।
गौरतलब हो कि जब बार घूस कांड का आरोप उनके खिलाफ आया था, तो उसके ठीक पहले उनके यूडीएफ से बाहर जाकर एलडीएफ के समर्थन से मुख्यमंत्री बनने की चर्चा चल रही थी। घूसकांड में फंसने के बाद एलडीएफ का वह समर्थन उनके लिए असंभव हो गया था।
यही कारण है कि मणि और उनके समर्थकों को लगता है कि उन्हें मुख्यमंत्री बनने से रोकने और अपनी सरकार बचाने के लिए चांडी ने उन्हें घूसकांड में फंसवा दिया। आरोप तो चांडी सरकार के राजस्व मंत्री पर भी लगा, लेकिन मुकदमा सिर्फ मणि पर ही चला।
अब केरल कांग्रेस (मणि) एलडीएफ से यूडीएफ की ओर खिसक रहा है। इसके कारण कांग्रेस की स्थिति खराब होती जा रही है। विधानसभा चुनाव के पहले घट रही यह घटना कांग्रेस के लिए कोई खराब सपने से कम नहीं है।
केरल कांगेस मणि ही नहीं, यूडीएफ की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग भी कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब बन रही है। पिछले निकाय चुनावों में कम से कम 24 पंचायतों में कांग्रेस के उम्मीदवारें के खिलाफ लीग के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे। चेयरमैन के चुनावों में भी लीग के पार्षदों ने कांग्रेस के साथ कुछ क्षेत्रों मंे छल किया और वोटिंग से अनुपस्थित रहकर उन्होंने उनके उम्मीदवारों को हराने और एलडीएफ के उम्मीदवारों को जिताने का काम किया।
कन्नूर नगर निगम में तो कांग्रेस के लिए हद हो गई। वहां कांग्रेस के ही एक असंतुष्ट ने पार्टी की नाव डुबो दी। कन्नूर में पिछले 140 साल से कांग्रेस का कब्जा था। वहां यूडीएफ और एलडीएफ दोनो ंको 27 - 27 सीटें थीं। कुल सीटों की संख्या है 55। कांग्रेस के असंतुष्ट पी के रागेश ने एलडीएफ के पक्ष में वोट डाल दिया और उस एक मत के कारण ही, कांग्रेस की वहां हार हो गई। कांग्रेस ने अपने असंतुष्ट पार्षद को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह काम नहीं आया।
कन्नूर की हार ने वहां गुटबाजी और तेज कर दी है। झगड़े और भी बढ़ गए हैं। चेनिंथाला गुट और चांडी गुट आमने सामने हैं। (संवाद)
भारत: केरल
विधानसभा चुनाव के पहले वामपंथियों के हौसले बुलंद
कांग्रेस के नेतृत्व वाले मोर्चे में असंतोष और मायूसी
पी श्रीकुमारन - 2015-11-23 11:53
तिरुअनंतपुरमः पिछले दिनों हुए स्थानीय निकायों के चुनावों में मिली हार से कांग्रेस और उसके नेतृत्व वाला यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट लगातार आहत महसूस कर रहा है।