उधर दूसरी ओर अरविंद केजरीवाल भी सफाई दे रहे हैं कि उन्होंने तो सिर्फ हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ाया था और तब लालू यादव ने जबर्दस्ती उन्हें अपनी ओर खींच लिया और उनके लगे लग गए।
आरोप लगाना और आरोप पर सफाई देना- दोनो ही बचकाना है। अरविंद केजरीवाल ले पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश के नेतृत्व वाले गठबंधन का साथ दिया था। उसके पक्ष में प्रचार करने बिहार तो नहीं गए थे, लेकिन उन्होंने सोशल मीडिया में उसके पक्ष में अनेक बयान जारी किए थे, जो मुख्य मीडिया में भी सुर्खियां बने थे।
इसलिए यदि भारतीय जनता पार्टी केा अरविंद केजरीवाल को कटघरे में खड़ा ही करना है, तो उसे लालू की चुनावी मदद को मुद्दा बनाना चाहिए, न कि औरपचारिकता वश हाथ मिलाने और हाथ हिलाने को मुद्दा बना चाहिए।
लालू यादव की छोटी बेटी की शादी में नरेन्द्र मोदी ने हिस्सा लिया था और उस समारोह में भी नरेन्द्र मोदी और लालू ने एक दूसरे के साथ गले मिलाने का काम किया था। अब भारतीय जनता पार्टी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ तो कुछ बोल नहीं सकती, तो फिर अरविंद केजरीवाल के खिलाफ कुछ बोलने का क्या मतलब है?
अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चलाते हुए दिल्ली प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुए हैं। भ्रष्टाचार के मामले में उनकी सरकार का रिकार्ड अच्छा है। वे भ्रष्टाचार के खिलाफ और कठोर कार्रवाई करना चाहते हैं, लेकिन प्रदेश सरकार के सीमित अधिकारों के कारण वे चाहते हुए भी बहुत कुछ कर नहीं सकते। उनके काम में केन्द्र सरकार रोड़ा अटकाती है, यह भी एक सर्वज्ञात तथ्य है।
लेकिन जिस मोर्चे मे लालू यादव हों, उस मोर्चे को समर्थन देना केजरीवाल की एक कमजोर नस है। यह सच है कि केजरीवाल नीतीश को समर्थन देने की बात कर रहे हैं और नीतीश पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं हैं, लेकिन नीतीश के समर्थन का मतलब लालू यादव के उम्मीदवारों का समर्थन करना भी था, क्योंकि दोनों मिलकर चुनाव लड़ रहे थे।
यही कारण है कि बिहार चुनाव को लेकर केजरीवाल लगातार असमंजस में रह रहे थे। पहले उन्होंने नीतीश के मोर्चे के समर्थन का एलान किया था और बिहार चुनाव में उनके लिए प्रचार करने के भी संकेत दिए थे। लेकिन पार्टी के अंदर विद्रोह के सुर उभरने के कारण उन्होंने बिहार चुनाव में प्रचार करने से मना कर दिया था। फिर भी उन्होंने नीतीश गठबंधन के समर्थन करने के अपने विचार को वापस नहीं लिया था।
जब लालू यादव ने बिहार के चुनाव को बैकवर्ड बनाम फाॅरवर्ड की लड़ाई बताई, तो केजरीवाल ने स्पष्ट कर दिया कि उनकी पार्टी बिहार में किसी का समर्थन नहीं करती। पर चुनाव प्रचार के दौरान ही केजरीवाल के बयान नीतीश और लालू के मोर्चे के पक्ष मंे आने लगे थे।
जाहिर है, केजरीवाल ने नीतीश ही नहीं, लालू और कांग्रेस का भी समर्थन बिहार के चुनाव में किया। अब राजनैतिक मुद्दा उस सर्मािन का किया जाना चाहिए, न कि हाथ मिलाने या गले मिलने जैसी घटना का। इस तरह की बयानबाजी दिल्ली में भाजपा को और भी हास्यास्पद बना रही है। (संवाद)
लालू और केजरीवाल के गले मिलने पर राजनीतिक तूफान
क्या दिल्ली की जनता पर इसका असर पड़ता है?
उपेन्द्र प्रसाद - 2015-11-24 11:42
नई दिल्लीः दिल्ली प्रदेश भाजपा ने पटना मे नीतीश सरकार के शपथग्रहण के दौरान केजरीवाल और लालू के गले मिलने को एक राजनैतिक मुद्दा बना दिया है। यह बहुत ही आश्चर्यजनक है कि जब लोगों से जुड़े अनेक मसले मौजूद हैं, तो फिर एक फालतू बहस को बढ़ावा दिया जा रहा है।