गौरतलब हो कि नीचले सदन की कुल सीटों की संख्या 440 हैं, जिनमें 330 को चुनाव से भरा जाता है, जबकि शेष 110 पर सेना के नामांकित प्रतिनिधि होते हैं। ऊपरी सदन के 224 सीटों में से 56 यानी उसका 20 फीसदी सेना द्वारा ही भरी जाती है। यदि इन सीटों को नहीं गिना जाए, तो अंग सू की की पार्टी को दोनों सदनों मंे भारी बहुमत का समर्थन प्राप्त है। सू की को हमेशा राष्ट्रपति के चुनाव लड़ने से रोक दिया जाता है। हालांकि इस बार चर्चा है कि वह स्पीकर के पद के लिए चुनाव लड़ सकती हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि सू की की पार्टी की जबर्दस्त जीत के बाद अब सैनिक शासकों को, जो अपनी अलग पार्टी बनाकर उसके छद्म नाम से सत्ता पर काबिज हैं, सत्ता को बहुत हद तक छोड़ना पड़ेगा। शासन में असैनिक तत्व की भूमिका बढ़ जाएगी।
लेकिन यदि म्यान्मार में पूरी तरह लोकतंत्र को स्थापित होना है, तो वहां के संविधान को बदलना पड़ेगा। दोनों सदनों मे सेना द्वारा सदस्यों को मनमाने तरीके से मनोनयन की व्यवस्था को समाप्त करना पड़ेगा। सू की को राष्ट्रपति बनने से रोकने वाली व्यवस्था को भी समाप्त करना होगा। वर्तमान संविधान सेना ने बनाया है। उसे एक लोकतांत्रिक संविधान से बदलना पड़ेगा।
इस चुनाव के बाद स्थिति पूरी तरह स्पष्ट होना बाकी है। सबसे पहले तो राष्ट्रपति का चुनाव होना बाकी है। क्या सेना इसका निष्पक्ष चुनाव होने देगी? सू की ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा है कि वह राष्ट्रपति से भी ऊपर रहेंगी। उन्होंने कहा है कि वे राष्ट्रपति पद के लिए एक उम्मीदवार तय करेंगी। उनके द्वारा तय व्यक्ति राष्ट्रपति होने के बाद उनके आदेशों को ही मानेंगे, क्योंकि वह जीतने वाली पार्टी की नेता हैं।
सू की की एक समस्या बौद्ध प्रतिष्ठान को अपने पक्ष में लाने की होगी। इस समय वह प्रतिष्ठान सेना का समर्थन कर रहा है और वह मुसलमानों को वोटिंग का अधिकार देने से मना कर रहा है। यह प्रतिष्ठान मानता है कि सू की शासन करने योग्य नहीं हैं। रोहिंग्या मुसलमान को भी वोटिंग अधिकार देने का मामला लंबित है। इस साल रोहिंग्या को वोट का अधिकार मिला था, लेकिन बौद्ध भिक्षुओं के विरोध के बाद उन्हें उस अधिकार से वंचित कर दिया गया। सच तो यह है कि सरकार ने एक दिन में ही उनका वोटिंग अधिकार वापस ले लिया।
जब पूरी दुनिया म्यान्मार चुनाव में सू की की पार्टी की जीत का स्वागत कर रही है, तो चीन उसके बारे में कुछ अलग रवैया रखता है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि नई सरकार को अमेरिका से नजदीकी नहीं बनानी चाहिए। इससे पता चलता है कि चीन की सहानुभूति किधर है।
भारत सरकार को म्यान्मार से संबंध बनाते समय बहुत ही सतर्क रहना होगा, क्योंकि वहां की स्थिति बेहद संवेदनशील है। भारत का संबंध इसके कुछ पड़ोसियों के साथ बेहतर नहीं है। इसलिए म्यान्मार नीति बनाते समय भारत को फूंक फूंक कर कदम उठाने की जरूरत है। (संवाद)
चुनाव के बाद म्यान्मार में समस्याएं ही समस्याएं
भारत को उसके साथ रिश्ते को लेकर सतर्क रहना होगा
बरुण दास गुप्ता - 2015-11-25 18:47
कोलकाताः म्यान्मार में हुए चुनाव में अंग सन सू की की नेशनल लीग फाॅर डेमोक्रेसी की जीत हुई। सैनिक शासकों ने भी एक पार्टी बना रखी थी और उस पार्टी की जबर्दस्त हार हुई। संसद के नीचले सदन प्रतिनिधि सभा में 330 चुनावी सीटें हैं। उनमें 225 पर अंग की पार्टी का कब्जा हो गया और सैनिक शासकों के हाथों सिर्फ 25 सीटें ही आईं। ऊपरी सदन में अंग की पार्टी को कुल 224 में से 136 में जीत मिली और सैनिक शासकों की पार्टी को मात्र 12 सीटें ही मिलीं।