महबूबा राजनीति में दो दशक से भी ज्यादा समय से सक्रिय हैं। वह इस बीच समाज के भिन्न भिन्ना समूहों तक अपनी पहुंच बनाती रही हैं। उग्रवादी तत्वों तक उनकी पहुंच है। यही कारण है कि कुछ लोग यह मानने लगे हैं कि उग्रवादियों के प्रति वे नरम रवैया रखती हैं। अपनी पीपल्स डेमाक्रेटिक पार्टी की अध्यक्ष तो वे 2003 में ही बन गई थीं। जब 2002 में उनकी पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन की सरकार बनाई थी, तो उस समय बातचीत का दारोमदार महबूबा के कंधों पर ही था। जब भारतीय जनता पार्टी के साथ उनकी पार्टी की सरकार 2015 में बनी, तब भी बातचीत का जिम्मा महबूबा मुफ्ती ने ही संभाल रखा था।

महबूबा की खासियत यह है कि वह जमीन से जुड़ी नेता हैं। उनकी पहचान सिर्फ मुफती सईद की बेटी की नहीं है, बल्कि राजनीति में उन्होंने खुद अपनी पहचान बना रखी है। जब कश्मीर के दूर दराज इलाके में एक औसत विधायक को घूमने में डर लगता था, तब भी महबूबा उन इलाकों में बिना डर के घूम आया करती थीं। इसके कारण ही उनकी पार्टी का विस्तार हुआ और वह एक मुख्यधारा की पार्टी के रूप में उभर कर सामने आ गई।

महबूबा 1996 में राजनीति में अपनी पहचान बनाने लगी थी। उस साल कांग्रेस के टिकट पर उन्होंने बिजबेहरा विधानसभा से जीत हासिल की। वह विपक्ष की नेता भी चुनी गईं और विपक्ष की नेता के रूप में उन्होंने फारूक अब्दुल्ला का सामना किया। पिता और बेटी ने 1999 में कांग्रेस छोड़ दिया और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की स्थापना की। जब उस पार्टी का गठन हुआ था, तो कुछ लोग मान रहे थे कि बाप-बेटी का तब के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का वरदहस्त प्राप्त था। वे इस समय अनंतनाग से लोकसभा की सदस्य हैं।

मुख्यमंत्री बनने में महबूबा को कुछ अवरोध का सामना भी करना पड़ सकता है। पहली समस्या तो पार्टी के अंदर उनके नाम पर आमराय बनाने की होगी। हालांकि उनके समर्थकों की संख्या बहुत है, लेकिन कुछ वरिष्ठ नेता उनका विरोध भी कर सकते हैं। सच तो यह है कि मुजफ्फर हुसैन बेग और तारिक हामिद कारा उनके खिलाफ बोल भी चुके हैं। ये दोनों पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं और सांसद भी हैं। दो विधायक भी महबूबा के खिलाफ अपने विचार जाहिर कर चुके हैं।

उसके अलावा गठबंधन की सहयोगी भारतीय जनता पार्टी की रजामंदी भी जरूरी है। भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेताओं मंे महबूबा को लेकर विरोध भी है, हालांकि वे मुफ्ती के साथ काम करने में परेशानी का अहसास नहीं करते हैं। यदि मुख्यमंत्री बदलता है, तो भारतीय जनता पार्टी अपने मंत्रियों की संख्या बढ़ाने की मांग कर सकती है और सत्ता के बंटवारे का फार्मूला बदलने की जिद भी कर सकती है।

एक अवरोध केन्द्र की तरफ से भी आ सकता है। इसका कारण यह है कि केन्द्र को यह नहीं लगता है कि मुख्यमंत्री पद के लिए महबूबा सही व्यक्ति हैं, क्योंकि केन्द्रीय खूफिया एजेंसियों का मानना है कि महबूबा उग्रवादियों के प्रति सहानूभूति रखती हैं। (संवाद)