राहुल गांधी ने इंटक के उस सम्मेलन मे सूट बूट की सरकार के खिलाफ अपना हल्ला जारी रखा और मजदूरों के लिए आंसू बहाते रहे। उन्होंने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि वह बड़े व्यापारिक घरानों की तिजौरी भरना चाहती है और मजदूरों की जिंदगी को असुरक्षित करने वाली नीति को अपनाने जा रही है।
सोनिया परिवार देश का नया वामपंथी सरकार बनकर उभरा है। उसका वामपंथ समझ मे आता है, क्योंकि वह एक बार फिर अपने परिवार के वामपंथी रूझान को पकड़ रहा है, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह वह गाना क्यों अलाप रहे हैं, यह समझ में आना कठिन है। मनमोहन सिंह ने न केवल राहुल गांधी के सुर में सुर मिलाया, बल्कि सोनिया गांधी के साथ कदम ताल करते हुए कहा कि नरेन्द्र मोदी के विकास का एजेंडा उनके सांप्रदायिक एजेंडे का स्मोकस्क्रीन है।
मनमोहन सिंह जब 1991 में केन्द्र सरकार के वित्त मंत्री थे, तो आर्थिक सुधार का दौर शुरू हुआ था और नेहरू के माॅडल को तोड़ना शुरू कर दिया गया था। उसके पहले देश की अर्थव्यवस्था एक बंद अर्थव्यवस्था थी और उसे खुलापन के दौर में लाने का काम प्रत्यक्ष तौर से मनमोहन सिंह ही कर रहे थे।
इसलिए यदि आज मनमोहन सिंह उन नीतियों के खिलाफ बोल रहे हैं, तो किसी को भी अचरज हो सकता है। यह सच है कि सोनिया और राहुल मनमोहन सिंह के नेता हैं। उनके कारण ही वे देश के प्रधानमंत्री बने, लेकिन फिर भी जिस तरह का यू टर्न उन्होंने आर्थिक सुधार कार्यक्रमों पर लिया है, वह हैरत भरा ही है।
यह सच है कि मनमोहन सिंह आज भी सोनिया और राहुल के खिलाफ नहीं जा सकते, लेकिन आर्थिक सुधार कार्यक्रमों पर चुप रहने का एक विकल्प भी मनमोहन के पास था।
यदि मनमोहन सिंह की वास्तव में अपने द्वारा शुरू किए गए आर्थिक कार्यक्रमों के प्रति प्रतिबद्धता होती, तो वह अकेले में अपने दोनो नेताओं को इसके फायदे बता सकते थे और कह सकते थे कि पार्टी को मोदी सरकार की इन नीतियों का समर्थन करना चाहिए। वस्तु सेवा कर विधेयक तो मनमोहन सिंह सरकार की पहल पर ही तैयार हुए था। उसके फायदे को भी मनमोहन अच्छी तरह जानते हैं। यदि उसके प्रति कोई प्रतिबद्धता होती, तो वे सोनिया और राहुल को अकेले में समझा सकते थे कि उस पारित कराया जाना देश के लिए कितना जरूरी है।
उधर सोनिया गांधी के सामने एक ही एजेंडा है और वह है कि मोदी सरकार के आर्थिक सुधार कार्यक्रमों का विरोध करते जाना। वह चाहती हैं कि मोदी सरकार के कार्यकाल मे देश का भला न हो, क्योंकि यदि देश का भला हुआ, तो उससे मोदी सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता और बढे़गी। इसलिए देश का तबाह रखकर ही सोनिया गांधी अपनी पार्टी को फिर से सत्ता में लाने का ख्वाब देख रही है। (संवाद)
भारत
बाजारवादी मनमोहन सोनिया के समाजवाद के सामने झुके
लोकप्रियतावाद के दौर मे वापस आ गई है कांग्रेस
अमूल्य गांगुली - 2015-12-08 10:04
इंटक के सम्मेलन में मनमोहन सिंह ने जो कुछ कहा वह बहुत ही हैरतअंगेज है। उन्होंने मोदी सरकार के प्रस्तावित आर्थिक सुधार कार्यक्रमों का विरोध किया, जबकि देश भर में आम धारणा है कि नई आर्थिक नीतियो के तहत आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को लागू करने की शुरुआत मनमोहन सिंह ने ही की थी। दरअसल, इंटक के सम्मेलन मे मनमोहन सिंह कांग्रेस के उत्तराधिकारी राहुल गांधी के विचारों का समर्थन कर रहे थे।