इसलिए जब अरविंद केजरीवाल ने यह आरोप लगाया कि केन्द्र सरकार उनके खिलाफ सीबीआई का इस्तेमाल कर रही है, तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। हालांकि सीबीआई ने तुरंत कहा कि उसने मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव के कार्यालय पर छापा मारा है। लेकिन बाद में पता चला कि वास्तव में मुख्यमंत्री के कार्यालय में भी छापे मारे गए थे और वहां से कुछ ऐसे दस्तावेज सीबीआई के अधिकारी ले गए, जो सिर्फ मुख्यमंत्री के कार्यालय में ही होते हैं।
अरविंद केजरीवाल ने आरोप लगाया कि सीबीआई डीडीसीए के उन फाइलों को उनके कार्यालय में ढूंढ़ रही थी, जिनमें वित्तमंत्री की भ्रष्ट कारगुजारियों के कारनामे लिखे थे। गौरतलब हो कि वित्तमंत्री जेटली लंबे अरसे तक डीडीसीए के अध्यक्ष रह चुके हैं। उनके कार्यकाल के दौरान वहां भारी भ्रष्टाचार हुए और खुद जेटली पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए।
छापे के दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री के खिलाफ अशोभनीय भाषा का इस्तेमाल किया। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने उस भाषा की निंदा की। भाजपा यह भी कह रही है कि केजरीवाल अपने प्रधान सचिव को बचाने की कोशिश कर रहे हैं और इसलिए अरुण जेटली को बीच में ला रहे हैं।
नरेन्द्र मोदी को अबतक अरविंद केजरीवाल का स्वभाव समझ में आ जाना चाहिए था। श्री केजरीवाल शोर मचाने का कोई भी मौका नहीं चूकते। जब कभी उनके खिलाफ कुछ होता है, तो उसका राजनैतिक लाभ उठाने की कला उन्हें आती है। इस मामले में उनके प्रधान सचिव पर पड़े छापे को उन्होंने अपने ऊपर पड़ा छापा बताकर शोर मचाया और वित्त मंत्री अरुण जेटली पर उलटा भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप लगा दिए। केजरीवाल के स्वभाव को समझते हुए नरेन्द्र मोदी को बहुत ही सतर्कता के साथ उनके साथ कोई छेड़छाड़ करनी चाहिए।
सीबीआई ने भी इस मामले में गड़बड़ी की। उसके पास प्रधान सचिव राजेन्द्र कुमार के खिलाफ सर्च वारंट था। सर्च करते समय मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के दफ्तर में उसे फर्क करना चाहिए था। छापा मारते समय उन्हें अरविंद केजरीवाल को विश्वास में ले लेना चाहिए था। यह सच है कि छापा मारने या कार्रवाई करने के पहले उसे केजरीवाल से अनुमति लेने की कोई जरूरत नहीं थी, लेकिन व्यावहारिकता भी तो कोई चीज होती है। अब लगभग पूरा विपक्ष अरविंद केजरीवाल के साथ है और यह मामला संसद के कामकाज को होने नहीं दे रहा है।
यह हमारा दुर्भाग्य है कि देश की राजनीति बहुत ही नीचे चली गई है। ऐसी ऐसी भाषा का इस्तेमाल हो रहा है, जो पहले कभी नहीं हुआ था। अरविंद केजरीवाल ने तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कायर और मनोरोगी तक कह डाला। उन्होंने यह भी कह डाला कि नरेन्द्र मोदी के कर्म फूट गए हैं और वे अपने कुकर्मो के लिए माफी मांगें।
जब से दिल्ली के केजरीवाल की सरकार सत्ता में आई है, उसने केन्द्र सरकार की नाक में दम कर रखा है। अनेक मसलों पर केन्द्र से उसकी भिडं़त होती रहती है और केन्द्र राज्य के विवाद से संबंधित अनेक मामले अदालत में हैं। केन्द्र सरकार भी चैन से केजरीवाल सरकार को काम करने नहीं दे रही है। उसके काम में बात बात पर टांगे अड़ाई जा रही हैं। खासकर अरविंद केजरीवाल द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़े जा रहे अभियान को केन्द्र सरकार पंचर कर देती है।
नरेन्द्र मोदी कोआॅपरेटिव फेडरलिज्म की बात कर रहे हैं। लेकिन दिल्ली मे किसी तरह का कोआॅपरेशन है केन्द्र और दिल्ली की प्रदेश सरकार में, यह सबको दिखाई पड़ रहा है। इसलिए दोनों का झगड़ा खत्म होना ही चाहिए और इसके लिए नरेन्द्र मोदी और अरविंद केजरीवाल के बीच जल्द से जल्द संवाद होना चाहिए। (संवाद)
मोदी और केजरीवाल का झगड़ा बंद हो
सौहार्द के लिए अविलंब संवाद हो
कल्याणी शंकर - 2015-12-18 12:41
केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच मतभेद एक संघवादी व्यवस्था में स्वाभाविक है। यदि केन्द्र और प्रदेशों में अलग अलग पार्टियों की सरकारें हों, तो इसकी संभावना और भी ज्यादा बनी रहती है। हमारे देश की राष्ट्रीय विकास परिषद में अनेक बार मुख्यमंत्री बैठक का बहिष्कार कर चुके हैं। कई बार तो वे बैठक से बहिर्गमन भीी कर देते हैं। मुख्यमंत्री द्वारा अपने खिलाफ सीबीआई के दुरुपयोग किए जाने का आरोप भी पुराना पड़ गया है। सीबीआई एक स्वायत्त एजेंसी नहीं है और जो कोई भी केन्द्र की सत्ता में आता है, वह इसका दुरुपयोग करता है।