नेहरू ने साफ साफ निर्देश दे रखा था कि अखबार के उद्देश्य आजादी की लड़ाई को बढ़ावा देने का है और लड़ाई का झंडा कभी नीचे नहीं होना चाहिए। गांधीजी ने कहा था कि यह एक निर्भीक अखबार है। जब भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ, तो ब्रिटीश सरकार की ओर से अखबारों को अनेक किस्त की हिदायतें दी जाने लगीं। तब गांधीजी ने सलाह दी कि उन हिदायतों को मानने से बेहतर है अखबार का बद हो जाना। नतीजा यह हुआ कि पुलिस ने अखबार के दफ्तर पर धावा बोल दिया। कर्मचारियों को बाहर निकाल दिया और अखबार को बंद कर दिया। कुछ साल तक अखबार बंद ही रहा, जबकि अन्य अखबार युद्ध के कारण बढ़ी बिक्री से मुनाफा बढ़ाते रहे।

1945 के अंत में जब जवाहरलाल नेहरू जेल से बाहर आए, तो एक बार फिर अखबार का प्रकाशन शुरू हो गया। दुबारा शुरू करने के बाद बाजार में टिकना कोई आसान काम नहीं था, लेकिन फिर भी उस चुनौती का सामना किया गया। जवाहरलाल नेहरू उस अखबार को अपना सहयोग हमेशा दिया करते थे। जब वे जेल से बाहर होते थे, तो लगभग प्रधान संपादक की भूमिका में ही होते थे।

जवाहरलाल नेहरू का एक सपना नेशनल हेराल्ड का दिल्ली प्रकाशन लाना था। उनका वह सपना 1963 में संभव हो सका। रफी अहमद किदवई और फिरोज गांधी का सपना भी वही था। जवाहरलाल नेहरू कभी नहीं चाहते थे कि नेशनल हेराल्ड किसी की चापलूसी करे और किसी मसले पर अस्पष्ट रहे।

नेशनल हेराल्ड के पहले संपादक के रामाराव थे। वे एक स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत छोड़ों आंदोलन के दौरान जब अखबार पर छापा पड़ा था, तो उस समय श्री रामाराव ने उसका सामना किया था और जेल चले गए थे। उसका दूसरा संपादक थे चलपति राजू।

एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड नाम की कंपनी वह अखबार निकाला करती थी। कंपनी उसके अलावा दो और अखबार निकालती थी। एक का नाम था- नवजीवन और दूसरे का कौमी आवाज। नवजीवन हिंदी में छपता था और कौमी आवाज उर्दू में।

जवाहरलाल नेहरू के बाद इन्दिरा गांधी ने इस अखबार में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई। राजीव गांधी ने उसकी स्थिति सुधारने की कोशिश जरूर की, लेकिन वे भी कुछ कर नहीं सके। सोनिया गांधी के समय तक अखबार की हालत बहुत खराब हो गइ्र्र थी। नेशनल हेराल्ड घाटे में चल रहा था और कंपनी पर उधार बढ़ता जा रहा था। लेकिन खराब दिनों मंे भी उर्दू प्रकाशन कौमी आवाज की प्रसार संख्या बढ़ी रही और वह अखबार हमेशा फायदे में रहा।

घाटे को देखते हुए अखबारों को 2008 में बंद कर दिया गया। बंद होने के समय कंपनी पर 90 करोड़ का कर्ज हो चुका था, हालांकि उसके पास अरबों की संपत्ति थी। कांग्रेस ने अपने कोष से वह कर्ज चुका दिया। कर्ज वापसी के रूप में नेशनल हेराल्ड यंग इंडिया कंपनी की हो गई। इसी पर सुब्रह्मण्यम स्वामी ने मुकदमा किया है, जिसके बारे में अदालत को स्पष्ट करना है कि वहां घपला हुआ या नहीं। (संवाद)