पिछले 17 दिसंबर को विधानसभा के 33 सदस्यों ने एक बैठक की, जिसे विधानसभा की बैठक घोषित कर दिया गया। वह बैठक विधानसभा भवन के बाहर हुआ, क्योंकि विधानसभा अध्यक्ष ने भवन को ताला लगाकर अपने कब्जे में कर रखा था। विधानसभा भवन के बाहर हुई उस बैठक का नेतृत्व विधानसभा के उपाध्यक्ष ने किया।

उस बैठक मे सत्तारूढ़ कांग्रेस के 20 विधायक, भारतीय जनता पार्टी के 11 विधायक और एक निर्दलीय विधायक शामिल थे। बैठक में वर्तमान विधानसभाध्यक्ष को उनके पद से हटा दिया गया। यह सब प्रदेश के राज्यपाल की जानकारी में हुआ।

विधानसभा की उस कथित बैठक में मुख्यमंत्री और कांग्रेस के 26 विधायकों ने हिस्सा नहीं लिया। उपस्थित विधायकों ने कलिखो पुल को सदन का नेता निर्वाचित कर दिया। गौरतलब हो कि श्री पुल कांग्रेस के नेता हैं और वे पिछले साल तक प्रदेश की कांग्रेस सरकार मे ंमंत्री थे। मुख्यमंत्री पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए उन्होंने अपने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था।

कांग्रेस ने गौहाटी हाई कोर्ट की शरण ली। विधानसभा के अध्यक्ष रबिया ने हाई कोर्ट मे याचिका दाखिल कर राज्यपाल की उस अधिसूचना को चुनौती दी, जिसके द्वारा उन्होंने विधानसभा के सत्र को 14 जनवरी, 2016 से बदलकर 16 दिसंबर 2015 कर दिया था। राज्यपाल की उस अधिसूचना के कारण ही विद्रोही विधायकों ने विधानसभा भवन के बाहर सत्र शुरू कर दिया था, क्योंकि भवन पर विधानसभा अध्यक्ष ने ताला जड़ दिया था।

हाई कोर्ट ने विधानसभा के उस निर्णय पर रोक लगा दी है और सुनवाई के लिए 1 फरवरी का दिन तय कर दिया है। इस बीच राज्यपाल ने कहा है कि वे हाई कोर्ट के उस निर्णय के खिलाफ अपील करेंगे, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया है कि वह अपील सुप्रीम कोर्ट में करेंगे कि हाई कोर्ट के दो सदस्यीय बेंच में।

यह संकट पिछले कुछ महीनो से पनप रहा था। मुख्यमंत्री के खिलाफ असंतोष बढ़ रहा था और उसका फायदा उठाने की कोशिश भारतीय जनता पार्टी कर रही थी। असंतुष्ट कांग्रेसी पार्टी हाई कमान को अपने असंतोष से अवगत करा रहे थे, लेकिन कांग्रेस हाई कमान उनकी बातों को गंभीरता से नहीं ले रहा था। कांग्रेस अध्यक्ष ने अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री को बातचीत के लिए बुलाया भी, लेकिन उन दोनों के बीच क्या बातचीत हुई, इसका पता किसी को नहीं। लिहाजा, कांग्रेसी विधायकों में असंतोष बढ़ता ही गया।

मुख्यमंत्री तुकी के खिलाफ आरोप यह है कि वे भ्रष्ट हैं। वे परिवारवाद को बढ़ावा दे रहे हैं और सत्ता के सभी पदों पर अपने रिश्तेदारों को भरते जा रहे हैं। आरोप यह भी है कि प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति लगातार खराब होती जा रही है और उसके कारण प्रदेश में टूरिस्टों की संख्या घटती जा रही है।

पिछले अक्टूबर महीने में 6 कैबिनेट मंत्रियों ने मुख्यमंत्री के खिलाफ बगावत कर दी और उनके खिलाफ सार्वजनिक रूप से गंभीर आरोप लगाए। उसकी प्रतिक्रिया में उनमें से 5 को बर्खास्त कर दिया गया। उसके बाद तो मुख्यमंत्री तुकी को हटाओ अभियान शुरू हो गया।

भारतीय जनता पार्टी ने अपने तरीके से इस राजनैतिक संकट का फायदा उठाना शुरू कर दिया और सबसे पहले तो उसकी केन्द्र सरकार ने वहां के राज्यपाल को बदल दिया। ज्योति प्रसाद राजखोवा को वहां का राज्यपाल बनाया। श्री राजखोवा सेवानिवृत नौकरशाह हैं और नौकरशाह के रूप में भी कभी उन्होंने अपने भाजपा प्रेम को नहीं छिपाया था। उसके बाद जो संकट उत्पन्न हुआ वह सामने है। अब हाई कोर्ट में मामला है। (संवाद)