लेकिन भ्रष्टाचार समाप्त करने को लेकर प्रधानमंत्री से लोगों की अपेक्षाएं कहीं ज्यादा है। यदि नरेन्द्र मोदी को लोगों ने प्रधानमंत्री के रूप में चुना है, तो उसका असली कारण यह था कि लोग भ्रष्टाचार से तंग आ गए हैं। इसके कारण ही 2011 और 2012 में भ्रष्टाचार विरोधी बड़े बड़े आंदोलन हुए और उन आंदोलनो ने कांग्रेस और उसके सहयोगियों को जनता की नजर में पूरी तरह गिरा दिया। आंदोलन मोदी की पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने नहीं किया था, इसलिए इसका फायदा उसे अपने आप मिल नहीं सकता था। पर नरेन्द्र मोदी नाम का एक नेता उसके पास था, जिस पर भ्रष्ट होने का न तो कोई धब्बा लगा हुआ था और न ही लगाया जा सकता था, क्योंकि वे एक गृहत्यागी का जीवन जी रहे हैं और हम भारतीय जानते हैं कि घर और परिवार किसी व्यक्ति को भ्रष्ट बनाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं।
उनकी यह बेदाग छवि ने उन्हें लोगों का हीरो बनाया। उनकी ओर से विकास के गुजरात माॅडल की जरूर चर्चा हुई। कुछ लोगों को वह भी पसंद आया होगा, लेकिन विकास के नाम पर आजतक किसी पार्टी ने कभी चुनाव नहीं जीता है, क्योंकि विकास एक पूर्ण रूप से परिभाषित शब्द नहीं है और भारत के लोग भावनाओं में बहकर ज्यादा वोट देते हैं। देश में लोग भ्रष्टाचार और महंगाई से परेशान थे और यह भी महसूस कर रहे थे कि महंगाई अपने आपमें कोई समस्या नहीं है, बल्कि भ्रष्टाचार के कारण ही महंगाई बढ़ती है। यदि महंगाई को समाप्त करना है, तो भ्रष्टाचार को समाप्त करना होगा। उसके लिए नरेन्द्र मोदी से बेहतर कोई नेता उनके सामने नहीं था।
विकास के नाम पर तो नहीं, लेकिन गरीबी हटाओ का नारा देकर इन्दिरा गांधी जरूर एक बार 1971 में चुनाव जीत गई थीं। गरीबों की संख्या देश में बहुत ज्यादा है और जिधर वे झुकते हैं, जीत उसी की होती है। नरेन्द्र मोदी की पारिवारिक पृष्ठभूमि बहुत ही कमजोर रही है। वे खुद रेलवे स्टेशन पर अपने पिताजी की चाय की दुकान पर बैठते थे और चाय बेचते थे। वे ट्रेन के अंदर घुसकर भी चाय बेचते थे। इसके कारण नरेन्द्र मोदी देश की गरीब जनता के साथ भी अपने को जोड़ सके। गरीब तो लालू यादव का परिवार भी था और वे अपने चपरासी भाई के घर पर रहकर पटना में पढ़ा करते थे, लेकिन दोनों मंे अंतर यह था कि नरेन्द्र मोदी की छवि एक ईमानदार नेता की थी, जो भ्रष्ट हो ही नहीं सकता है, क्योंकि वह परिवार से दूर है, जबकि लालू यादव के बारे में ऐसी धारणा नहीं थी। यहां भी भ्रष्टाचार विरोधी माहौल नरेन्द्र मोदी के पक्ष में था, जिसका लाभ उनकी पार्टी को हुआ।
नरेन्द्र मोदी की सामाजिक पृष्ठभूमि ने भी उनका साथ दिया। वे एक ओबीसी समुदाय से हैं और उनकी जाति हिमाचल प्रदेश में तो अनुसूचित जाति हैं। गुजरात में वह घांची और हिन्दी प्रदेशों में उनकी जाति तेली के नाम से जानी जाती है। उनकी इस जातीय पृष्ठभूमि का लाभ उन्हें बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, दिल्ली, हरियाणा, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र में मिला। इसके कारण ही भारतीय जनता पार्टी को बहुमत मिला। पिछड़ी और दलित जातियों को भ्रष्टाचार के कारण सबसे ज्यादा नुकसान होता है। इसलिए उन्होंने लालू, मुलायम, माया और अन्य कथित ओबीसी और दलित नेताओं को छोड़कर नरेन्द्र मोदी को ही पसंद किया, क्योंकि वे भ्रष्ट नहीं किए जा सकते।
पर दुर्भाग्य से नरेन्द्र मोदी ने जनादेश को समझने मे गलती कर दी है। उन्हें लगता है कि विकास के मसले ने उनको बहुमत दिला दिया और उनके संघ परिवार को लगता है कि राम मन्दिर के कारण पार्टी सत्ता में आ गई। देश को विकास चाहिए, इसमे कोई दो मत नहीं, लेकिन यदि भ्रष्टाचार कायम रहा अथवा बढ़ता रहा, तो विकास भी भाजपा और नरेन्द्र मोदी को 2019 में चुनाव नहीं जिता सकता। विकास शांतिकालीन टास्क है, लेकिन जब घर में भ्रष्टाचार की आग लगी हुई हो, तो आपको भ्रष्टाचार मिटाने पर ही सबसे ज्यादा ध्यान देना होगा।
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी ने उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई, जो पिछले कार्यकाल में भ्रष्टाचार में लिप्त थे। शायद इसके लिए उनके पास समय नहीं है, क्योंकि वे देश के विकास में लगे हुए हैं। चुनाव में वोट पाने के लिए वे भ्रष्टाचार को मुद्दा जरूर बनाते हैं, लेकिन भ्रष्टाचारियों को सजा दिलान के लिए उनकी सरकार और उनकी पार्टी की राज्य सरकारें क्या कर रही हैं, इसके बारे में नहीं बताया जाता। लोग इसे बर्दाश्त कर रहे हैं, क्योंकि मोदी जी अपना समय विकास को दे रहे हैं, लेकिन जब भाजपा के नेताओं के खिलाफ ही भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हों, तो लोगों को प्रधानमंत्री की चुप्पी खलती है और इस चुप्पी का खामियाजा वे बिहार के चुनाव में भुगत चुके हैं। उन्होंने सुषमा स्वराज, वसुधरा राजे और शिवराज सिंह चैहान पर भ्रष्टाचार के लगे आरोपों पर चुप्पी साध ली थी, इसलिए बिहार में उन्होंने जब लालू के भ्रष्टाचार पर बोला, तो लोगों ने उनको अनसुना कर दिया। अब तो वे अरुण जेटली के पक्ष में भी बोलने लग गए हैं, जबकि जेटली पर अकाट्य सबूत के साथ भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं।
पता नहीं प्रधानमंत्री की क्या मजबूरियां है, लेकिन भ्रष्टाचार और भ्रष्टों के खिलाफ नरेन्द्र मोदी ने कार्रवाई नहीं की और उल्टे उन्हें संरक्षण दिया, तो उनकी स्थिति वही हो सकती है, जो मनमोहन सिंह की हुई। (संवाद)
मोदी को 2014 के जनादेश को फिर से पढ़ना चाहिए
भ्रष्टाचार पर समझौता उनके जादू को समाप्त कर देगा
उपेन्द्र प्रसाद - 2015-12-23 12:15
केन्द्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली के खिलाफ लगाए जा रहे भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच उनके समर्थन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आ जाने के बाद उन लोगों को झटका लगा है, जो सोचते थे कि नरेन्द्र मोदी देश और समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त कर देंगे या बहुत हद तक कम कर देंगे। इसमें दो मत नहीं कि प्रधानमंत्री ने अनेक ऐसे निर्णय लिए हैं, जिनसे भ्रष्टाचार पर अंकुश लग रहा है। तीसरी और चैथी श्रेणियों के कर्मचारियों के चयन में इंटरव्यू को समाप्त कर दिया गया है, जिसके कारण योग्य युवक अब बिना पैरवी और भ्रष्टाचार के सरकारी सेवाओं चुने जाने की संभावना को लेकर ज्यादा आशावान हो गए हैं। डिजिटल इंडिया की सहायता से भी सरकारी भ्रष्टाचार को कम करने की कोशिश की जा रही है।